शिवसेना, एनसीपी में चौंकाने वाली टूट के बाद अब अगली बड़ी टूट क्या कांग्रेस में होगी? इस सवाल का जवाब सकारात्मक है। बहुत संभव है कि अब महाराष्ट्र कांग्रेस में भी बिखराव आ जाए। महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता अजित पवार के पाला बदल कर सरकार में उपमुख्य़मंत्री बन जाने के अत्यंत आश्चर्यजनक राजनीतिक घटनाक्रम को कांग्रेस में काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। पार्टी के बड़े नेता भी मान रहे हैं कि अजित पवार के बीजेपी के साथ चले जाने के बाद अगले साल होनेवाले चुनाव में हार-जीत का गणित बदल चुका है और इस कारण कांग्रेस विधायकों के लिए भी पालाबदल करके सत्ता के साथ जाने का रास्ता खुल गया है। सतर्कता यह बरती जा रही है कि किसी को खबर तक नहीं लगे कि किस पर नजर रखी जा रही है और सावधानी यह भी कि पार्टी को लगातार एकजुट बनाए रखना है। खास ध्यान इस पर है कि कांग्रेस का कौनसा विधायक बीजेपी के किस बड़े नेता के संपर्क में है, किस विधायक पर किस बीजेपी नेता का प्रभाव है तथा कौन कौन से विधायक हार के गणित से डर कर किसी दूसरे रास्ते पर अपने कदम बढ़ा सकते हैं, इसका गहन आकलन किया जा रहा है। जानकारी इस बात की भी जुटाई जा रही है कि अजित पवार किस कांग्रेस नेता को अपने साथ लाने में सक्षम साबित हो सकते हैं। कांग्रेस में हालात सावधानी के हैं। दिल्ली में बैठा आलाकमान सतर्क है, और महाराष्ट्र में कांग्रेस के विधायक सहमे हुए हैं क्योंकि सब के सब स्कैनर पर हैं। फोन पर किसी से खुलकर बात करना भी उनको नहीं सुहा रहा। महाराष्ट्र में कांग्रेस की नजर अब अपने ही विधायकों पर इसलिए है, क्योंकि आलाकमान को पता है कि पार्टी में प्रादेशिक नेताओं के बीच व्यक्तिगत स्तर पर काफी खींचतान है। विधायकों में असंतोष भी है। कांग्रेस नेतृत्व इस तथ्य से भी बहुत ही अच्छी तरह से वाकिफ है कि एनसीपी में बड़ी टूट से प्रदेश के बदले हुए राजनीतिक हालात में कांग्रेस विधायकों को हार की चिंता सता रही है। बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस के ज्यादातर विधायकों के लिए अगला चुनाव जीतना मुश्किल होगा। ऐसे में हर विधायक सुरक्षित रास्ता अपनाना चाहता हैं। कांग्रेस विधायकों के लिए अब भाजपा की हिंदुत्व की विचारधारा से दूरी बनाकर रखना कोई बड़ा कारण नहीं हैं। क्योंकि कांग्रेस पहले भी कट्टर हिंदुत्व की विचार रखने वाली शिवसेना के साथ उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार में सहभागी रही है। इस कारण से भी कांग्रेस के विधायकों के लिए शिवसेना, भाजपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सामूहिक सरकार के साथ खड़े रहना ज्यादा आसान है। वैचारिक रूप से भी कांग्रेस सदा से राष्ट्रवादी कांग्रेस की सबसे करीबी पार्टी रही है। नई दिल्ली की नजर मुंबई पर इसी कारण है, क्योंकि उसे अपने विधायकों को साथ रखे रहना ज्यादा जरूरी हो गया है। हालात कांग्रेस में टूट के समर्थन में हैं और माहौल भी।