छत्तीसगढ़ में चुनाव निकट है, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी एक दूसरे पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं। केंद्र में स्थिति अलग है, भाजपा आज भी कांग्रेस के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार को 9 साल बाद भी मुद्दा बनाए हुए हैं। शुक्रवार को एनडीए सरकार के कार्यकाल में हुए कोयला घोटाले के आरोपी कांग्रेस पार्टी के सांसद और उनके पुत्र को कोर्ट ने दोषी ठहराया है। लेकिन विपक्ष के पास अभी केंद्र सरकार के खिलाफ कोई भ्रष्टाचार का मुद्दा नहीं है। छत्तीसगढ़ में विचित्र स्थिति है, कांग्रेस पार्टी की सरकार है और डॉ. रमन सिंह सरकार पर अभी भी कांग्रेस के नेता भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है। यह समझ से परे है कि सरकार की ताकत कांग्रेस के पास है। प्रशासनिक अमला है, भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही करने वाली व्यवस्था है, कोर्ट है, सब कुछ है लेकिन सरकार कारवाई नहीं कर पा रही है। ऐसी बात नहीं है कि भूपेश सरकार कुछ करना नहीं चाहती, 2018 दिसंबर में सरकार बनने के बाद एक के बाद एक जांच टीम एसआईटी का गठन किया है। लेकिन पौने पांच साल के बाद भी एसआईटी की टीम किसी आरोप को साबित नहीं कर पाई है। दूसरी ओर प्रदेश सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं, कोयला में परिवहन परमिट के नाम पर अवैध वसूली का घोटाला 500 करोड़ से ऊपर का है। शराब घोटाला तो अपने आप में अनोखा है। कोई सरकार पर अपने खजाने में आने वाले राजस्व की चोरी करने जा आरोप तो निराला ही है। ये आरोप कोई हवा में नहीं हैं बल्कि प्रवर्तन निदेशालय ईडी ने बकायदा जांच करके कोर्ट में जो चलन प्रतीत किया है उसमें पूरा विवरण दिया है। जब भी इस प्रकार के भ्रष्टाचार का उल्लेख भाजपा करती है तो कांग्रेस पार्टी के नेता भाजपा सरकार के समय भ्रष्टाचार की दुहाई देने लगते हैं मानो पिछली सरकार पर आरोप लगाने से वर्तमान सरकार को घोटाले करने का परमिट मिल जाता है। अपने घोषणा पत्र में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने कांग्रेस पार्टी ने मजबूत लोक आयोग बनाने का संकल्प लिया था जिसकी सीमा में मुख्यमंत्री भी आते हैं लेकिन सरकार बनने के बाद भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना तो दूर जो आरोप खुद कांग्रेस लगाती थी, उन पर कार्यवाही करने में सरकार अक्षम है। लगता है छत्तीसगढ़ की राजनीति में भ्रष्टाचार का मुद्दा केवल आरोप प्रत्यारोप तक सीमित रहेगा। इन्हीं कारणों से जनता के मन में राजनेताओं के बारे में धारणा बनती जा रही है कि सभी भ्रष्ट होते हैं। ऐसा विचार फिर समाज में भ्रष्टाचार को मान्यता दे देता है जैसे कि प्रशासन में अधिकायिों और कर्मचारियों को मान्यता मिली हुई है। नेता भी अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं लड़ेगा तो इस नासूर का ईलाज कौन करेगा?