Home इन दिनों पार्टी बदली, गठबंधन बदला, नाम- नारा बदला

पार्टी बदली, गठबंधन बदला, नाम- नारा बदला

20
0

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तैयारियों का बिगुल बज गया है। नेताओं ने पार्टियां बदलना शुरू कर दिया है, पार्टियों ने गठबंधन बदलना शुरू कर दिया है और गठबंधनों ने नाम और नारे बदलना शुरू कर दिया है। हम आपको बता दें कि कांग्रेस ने 2004 में जिस संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानि यूपीए की स्थापना की थी उसका नाम बदल कर इंडिया कर दिया गया है। इस इंडिया नामक विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस विरोधी आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस भी शामिल हो गयी हैं। एक तरफ विपक्षी गठबंधन में शामिल दलों की संख्या 26 तक पहुँच गयी है तो दूसरी और देश में पहली बार गठबंधन सरकार के प्रयोग को सफल बनाने वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल दलों की संख्या 39 तक पहुँच गयी है। अब, आगामी लोकसभा चुनावों को एनडीए बनाम इंडिया करार दिया जा रहा है। इंडिया गठबंधन वाले टैगलाइन दे रहे हैं- जीतेगा भारत तो दूसरी ओर एनडीए कह रहा है कि आजादी के शताब्दी वर्ष तक हमें विकसित, आत्मनिर्भर और मजबूत भारत बनाना है। यानि एक तरफ सिर्फ इंडिया है तो दूसरी ओर विकसित और आत्मनिर्भर भारत। आप जरा गौर करेंगे तो यह भी पाएंगे कि इस समय नेताओं, राजनीतिक पार्टियों और गठबंधनों की जोरदार तरीके से रि-ब्रांडिंग हो रही है, यानि आपको नये कलेवर में पुराना माल ही परोसा जा रहा है। जमाना बदला है तो राजनीतिक दलों ने भी अपना अंदाज बदला है इसीलिए आपको आजकल नेता बाइक ठीक करते, खेत में धान रोपते, गली के बच्चों के साथ क्रिकेट खेलते, गरीब के बच्चों को गोद में उठाते, ढाबे पर खाना खाते और मेट्रो ट्रेन या अन्य सार्वजनिक परिवहन के साधनों में आम यात्रियों के साथ यात्रा करते हुए दिख जाएंगे। आलीशान जिंदगी जीने वाले सभी नेताओं का प्रयास है कि अपने को गरीब और वंचितों के बीच का ही दिखाया जाये ताकि चुनावों के समय मतदाता ध्यान रखे कि अमुक नेता तो हमारे जैसा ही है इसलिए यदि उसे सत्ता मिली तो वह हमारा ध्यान रखेगा। जरा बेंगलुरु में हुई विपक्ष की बैठक को देखिये। उस बैठक में देश के गरीबों, वंचितों और शोषितों के हित में मिलकर काम करने का निर्णय लिया गया। लेकिन गरीबों, वंचितों, शोषितों के बारे में चिंता करने के लिए बेंगलुरु आने के लिए सभी नेताओं ने चार्टर्ड प्लेन का इस्तेमाल किया। एनडीए की बैठक को देखेंगे तो यह भी राष्ट्रीय राजधानी के एक बड़े पांच सितारा होटल में हुई। इन बैठकों का खर्च भी लाखों रुपए में आया होगा। बात यदि पार्टियों और गठबंधनों के नये रंग-रूप की करें तो इससे भले इन नेताओं, पार्टियों और गठबंधनों को लाभ हो जाये लेकिन जनता के लिए कुछ नहीं बदलने वाला है। क्योंकि पार्टी या गठबंधन का नाम भले बदल जाये नेता तो वही रहेंगे। और जब नेता वही रहेंगे तो उनकी नीयत भी वही रहेगी। जब नीयत वही रहेगी तो देश की नियति भी वही रहेगी।