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अविश्वास प्रस्ताव पर भाजपा का ईरानी दांव

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मणिपुर हिंसा को लेकर लोकसभा में सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने को मंजूरी मिल गई है। सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों खेमे इसे अपने-अपने नजरिए से देख रहे हैं। यूं भी कह सकते हैं कि एनडीए और इंडिया, दोनों को इसमें अपना सियासी फायदा नजर आ रहा है। अविश्वास प्रस्ताव पर भाजपा को मोदी के ईरानी दांव पर भरोसा है, तो वहीं विपक्ष इस हार के सौदे में अपनी जीत मानकर चल रहा है। मणिपुर हिंसा पर, विपक्षी दल लंबे समय से प्रधानमंत्री द्वारा बयान देने की मांग कर रहे थे। सत्ता पक्ष ने प्रधानमंत्री की जगह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बयान दिलाने की बात कही, जिसके लिए विपक्ष तैयार नहीं हुआ। अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले कांग्रेस पार्टी के सांसद गौरव गोगोई कहते हैं, देखिये, ये हार जीत का सवाल नहीं है। यह विपक्ष का संवैधानिक दायित्व है। ये इंसाफ की लड़ाई है। विपक्षी दलों का गठबंधन इंडिया चाहता है लोकतंत्र जीवित रहे। दरअसल, मणिपुर को लेकर अविश्वास प्रस्ताव की स्क्रिप्ट कई दिनों से लिखी जा रही थी। सत्ताधारी पार्टी यह बात जानती थी कि विपक्ष, सदन में प्रधानमंत्री से बयान दिलवाने की जिद से पीछे नहीं हटेगा। मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में मणिपुर को लेकर बहुत कुछ क्लीयर कर दिया था। उसमें भाजपा सांसदों को यह संदेश दिया गया था कि वे मणिपुर हिंसा पर विपक्ष को करारा जवाब दें। उसी बैठक में पीएम की तरफ से ऐसा इशारा भी हुआ था कि जल्द ही विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी मिल सकती है। भाजपा सांसदों से कहा गया कि अपने अपने क्षेत्रों में लोगों को मणिपुर का सच बताएं। बैठक में मौजूद हरियाणा के एक सांसद का कहना था। अविश्वास प्रस्ताव से भाजपा को डरने की कोई जरूरत नहीं है। पहलवानी में कई तरह के दांव होते हैं। उसमें से एक ईरानी दांव भी होता है, जिसमें बड़े कद काठी वाले पहलवान को फायदा मिलता है। वजह, बड़े कद वाला पहलवान, हल्के पहलवान को आसानी से उठा सकता है। अगर सामने वाले पहलवान का वजन भी कुछ कम है, तो उसे उठाकर पीठ के बल पटका जा सकता है। इससे बड़े कद वाला पहलवान जीत जाता है। पीएम मोदी के साथ भी कुछ वैसा ही है। अविश्वास प्रस्ताव पर हार से विपक्ष के दो मकसद पूरे होंगे। एक तो इंडिया की एकता का टेस्ट होगा और दूसरा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मणिपुर हिंसा पर बोलने के लिए बाध्य करने के बाद लोगों को बताया जाएगा कि ये विपक्षी दलों की जीत है। अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा में पीएम मोदी भाग लेते हैं तो इसे विपक्षी खेमा अपने लिए एक मजबूत कदम के तौर पर देख रहा है। दूसरा, विपक्षी दलों को यह शिकायत रही है कि उन्हें सदन में बोलने का पर्याप्त समय नहीं मिलता।