समीकरण बदल रहे हैं। रूस और यूक्रेन के बीच जंग अपने आखिरी और खतरनाक मोड़ पर पहुंच रही है और दोनों राष्ट्रों से मिल रही खबरें भी चिंता जगाती हैं। परदेसी मदद से लड़ रहे यूक्रेन के तेवर बेहद आक्रामक हो गए हैं। दूसरी ओर रूस भी बौखलाया हुआ है। अब वह अपने सर्वाधिक घातक हथियारों का उपयोग करने जा रहा है। असल में यह लड़ाई अब इस स्थिति में पहुंच गई है, जब विश्व बिरादरी का दखल अनिवार्य हो गया है। अगस्त के पहले सप्ताह में सऊदी अरब की पहल पर एक शांतिवार्ता होने जा रही है। इसमें तीस देश हिस्सा ले रहे हैं। भारत भी इनमें से एक है। हम आशा कर सकते हैं कि इस बैठक से युद्ध की समाप्ति का फॉर्मूला निकल आएगा। वैसे तो दोनों मुल्कों के बीच सऊदी अरब की सुलह की कोशिशें लंबे समय से चल रही हैं। उसके साथ यूक्रेन भी अपने को सहज पाता है और रूस भी। हालांकि जेद्दाह में होने वाले इस शिखर सम्मेलन में रूस हिस्सा नहीं ले रहा है। वह सऊदी अरब पर इतना भरोसा कर सकता है कि उसके हितों की हिफाजत हो जाए। तेल उत्पादन के क्षेत्र में दोनों देश अभी भी मिलकर काम कर रहे हैं। सऊदी अरब तथा रूस की तेल-दोस्ती पर अमेरिका कई बार आपत्ति जता चुका है। दूसरी तरफ यूक्रेन और सऊदी अरब के बीच भी भरोसे की मजबूत दीवार है। सऊदी अरब ने इसी साल यूक्रेन को 400 मिलियन डॉलर की मदद भी पहुंचाई है। वह संयुक्त राष्ट्र में इस जंग को समाप्त करने वाले प्रस्ताव का समर्थन भी कर चुका है। इसी कारण से बैठक में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पहुंच रहे हैं। सऊदी अरब इसमें रूस को अभी आमंत्रित नहीं कर रहा। शायद वह इस शिखर बैठक के बाद रूस को मनाने का एक अवसर अपने पास रखना चाहेगा। बड़े देशों में भारत के अलावा ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका भी जेद्दाह शांति सम्मेलन में भाग ले रहे हैं। कुछ समय पहले जेद्दाह में अरब लीग समिट हो चुकी है। इसमें जेलेंस्की को खासतौर पर बुलाया गया था। जेलेंस्की ने अपने देश के लिए अरब देशों से खुले समर्थन की अपेक्षा की थी। आपको याद होगा कि पिछले महीने दक्षिण अफ्रीका की पहल पर सारे अफ्रीकी देशों ने इस जंग को खत्म करने के लिए शांति प्रस्ताव तैयार किया था। लेकिन इसमें रूस के जीते हुए क्षेत्रों को वापस लौटाने की बात शामिल नहीं थी। यूक्रेन के राष्ट्रपति ने इसलिए इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। जेलेंस्की ने कहा था कि युद्ध तभी समाप्त हो सकता है, जब यूक्रेन से छीनी गई सारी जमीन रूस लौटा दे। गौरतलब है कि इसमें यूक्रेन के नाटो की सदस्यता लेने वाला बिंदु नदारद था, जिसकी वजह से रूस ने पहला आक्रमण किया था। इसका अर्थ यह भी निकलता है कि रूस अब यह जिद छोडऩे पर राजी हो गया है। उसने चीन की बारह सूत्री योजना को पसंद भी किया था। गतिरोध खत्म करने की दिशा में यह बड़ा कदम माना जा सकता है।