जन चर्चाओं में तो फिर कांग्रेस की सरकार बन रही है। भाजपा कार्यकर्ताओं का उत्साह और बयान बाजी कुछ अलग ही चुनावी दृश्य पैदा कर रही है। कहा जा रहा है कि इस बार फिर से भाजपा सरकार। पूछा जा रहा है कि आधार क्या तो कुछ स्पष्ट नहीं , पर कहते हैं, चुनाव के पहले देखना भाजपा बड़ा धमाका करने जा रही है। धमाका क्या है पूछने पर कहा जाता है कि देखते जाओ। सवाल का जवाब देने के ढंग से साफ पता चल जाता है,कि इनको भी कुछ नहीं पता। बड़े किसी नेताओं से पूछो तो वे भी कहते हैं कि सरकार तो हमारी बनेगी बस देखते जाओ। अब क्या समझ जाएं यही किसी के समझ में नहीँ आ रहा है। ऐसा क्या चमत्कार होने वाला है कि उसके बाद वर्तमान सरकार की सारी योजनाएं व रणनीति धरी रह जायेगी। बस देखते जाइये कहने की शैली से लोग अनुमान के भंवरजाल में गोता लगाने लग रहे हैं। भाजपा के समर्थन के लिए यहां ईडी,आईटी,सीबीआई सब हैं ना तैयार यह अनुमान भी लगाया जाता है। भले ही इसका सर पैर हो या नहीं लेकिन अल्प शिक्षित ग्रामीण जनता इस बात को सच ही मानती है और केंद्र सरकार के साथ स्थानीय भाजपा नेताओं को कोसने भी लगती है।
कांग्रेस ने केंद्रीय एजेंसियों पर लगाए अपने आरोपों को धरातल पर प्रतिष्ठा दिलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। असर भी दिखाई दिया है। आंशिक ही सही गांव के लोगों के बीच बात पहुंची है। चर्चा चल पड़ी है कि वर्तमान सरकार तो हमको धान का बोनस देना चाहती थी। अड़ंगा तो केंद्र सरकार ने लगाया था कि अगर बोनस दिया तो समर्थन मूल्य में खरीदे धान का चावल हम नहीं खरीदेंगे। राज्य सरकार देना चाहती है, केन्द्र अड़ंगा लगा रही है। एक नजर में ग्रामीण जनता इस मामले में भूपेश बघेल के पक्ष में खड़ी दिखाई देती है। ग्रामीण जनता के बीच तो यही चर्चा है कि धान खरीदी के मामले में भूपेश बघेल ने जो कहा था वो किया है। कहा था 2500 दूंगा माने दूंगा, दिया , कैसे दिया किस तरह का रास्ता निकाला। अब सब सार्वजनिक तथ्य है। किसी से छुपा नहीं है। 2500 की जगह समर्थन मूल्य बढ़ा तो बिना प्रचार के उसे मिलाकर 2640 दिया। अब ग्रामीण जनता को भाजपा समझा रही है कि जो भी राज्य सरकार ने धान खरीदा वह हमारे पैसे से खरीदा है, सारा पैसा हम देते हैं। कहते हैं कि हम चावल खरीदने के लिए हामी सहमति नहीं देते तो राज्य धान इतनी मात्रा में खरीद पाते। ये सही भी है कि एक साल केंद्र ने कम मात्रा में चावल खरीदा तो धान हाथियों को खिलाना पड़ा था। बड़ी मात्रा में बर्बाद भी हुआ था। लोग प्रक्रिया पर चर्चा करते हैं कि धान खरीदने सरकार ऋ ण लेती है और धान खरीदती है। धान की मिलिंग करती है। चावल बनवाती है। मिलिंग का खर्चा उठाती है। उसके बाद केंद्र उस चावल को ही पैसा देकर खरीदती है। पैसा आने पर कर्ज पटाया जाता है। कुछ नुकसान भी उठाना पड़ता है। भरपाई सरकार के खजाने से होती है। पैसा केंद्र ने चावल खरीदी के एवज में दिया तो वह धान की खरीदी के लिए दिया कैसे कह सकती है? केंद्र सरकार यह जरूर कह सकती है कि हम अगर चावल नहीं खरीदें तो आप धान खरीद कर करोगे क्या? बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग का कहना कि यह कहना संघीय लोकतंत्र की तय व्यवस्थाओं के विरुद्ध होगा। बावजूद इसके केंद्र व राज्य के भाजपाई नेता ऐसा कहने से नहीं चूकते। किस गणित से कहते हैं किसी को बताते भी नहीं। कांग्रेस के किसान नेताओं का कहना है कि इस चुनाव में कुछ चले या नहीं चले धान खरीदी का जादू सर चढ कर जरूर बोलेगा। यह भी कि लोगों की नजर चुनाव के पहले ईडी-आईटी-सीबीआई व अन्य केंद्रीय एजेंसियों की चाही -अनचाही कार्यवाहियों पर भी है। वो कौन सा चमत्कार करती हैं? राज्य व केंद्र के नेता कौन सा चमत्कार करने वाले हैं? प्रदेश के भाग्य खोलने के लिए किस तरह की भाजपाई घोषणाएं सामने आती हैं। अंतिम फैसला तो दोनों दलों का घोषणा पत्र ही करेगा। देखें भाजपा या कांग्रेस अथवा आप किसकी घोषणाओं पर जनता का भरोसा होगा? या फिर भूपेश है तो भरोसा है के नारे पर जनता भरोसा करती है। इसका सबको इंतजार है।