भारतीय जनता पार्टी की सरकार छत्तीसगढ़ की सत्ता में काबिज है। तो पुराने में भी अपना किया हुआ, कुछ नया दिखना चाहिए। कृषक पशु परिरक्षण(संशोधन)अधिनियम,छत्तीसगढ़ कृषक पशु परिरक्षण नियम 2014,पशु के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम 1960,और पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण नियम 2017 को छत्तीसगढ़ की वर्तमान विष्णुदेव साय सरकार संशोधन के माध्यम से नए प्रावधान के साथ फिर सामने लाई है। गृहमंत्री विजय शर्मा की सूचना के अनुसार सारे पुराने प्रावधानों के साथ अब यह जुड़ गया है कि बगैर लायसेंस कोई भी, किन्ही भी परिस्थिति में ,चाहे पैदल ले जा रहा हो ,चाहे किसी भी वाहन के माध्यम से ले जा रहा हो,चाहे एक हो या कितनी भी संख्या हो एक बार में 20 पशुधन ले जा रहा हो, तो उसे सक्षम अधिकारी से लायसेंस लेना अनिवार्य होगा। सिर्फ यही नहीं बल्कि वाहन के सामने एक फ्लैक्स भी प्रदर्शित करना होगा कि वह किस प्रयोजन हेतु कहाँ उपरोक्त पशुधन ले जा रहा है। अन्यथा उसे अवैध मान कर कड़ी कार्यवाही की जाएगी। यह कार्यवाही सात साल की जेल तथा 50हजार का जुर्माना की हो सकती है। हालांकि इतनी ही कड़ी सजा व जुर्माने का प्रावधान पुराने कानून में भी है। इसे नए बयान के द्वारा पुन: दोहराया गया है। इन नियमों के बाद भी यदि कोई प्रकरण अवैध परिवहन का पकड़ा जाता है तो जिस जिस थाना क्षेत्र व जिले से वह गुजरा हो,अपराधी निकला हो उन थानों के अधिकारियों व कलेक्टर के सर्विस बुक में नेगेटिव टिप्पणी अंकित किये जाने की बात भी कही गई है।यह नया प्रावधान जोडऩे की बात कही गई है। शायद सरकार आये दिन हो रही ,पशु परिवहन की सूचनाओं व घट रही घटनाओं से परेशानी महसूस कर रही है।माब लीन्चिग जैसी घटनाएं भी घट चुकी हैं। जिस पर एक समुदाय के लोगों पर हमला होने पर सरकार की भी आलोचना हो रही है। सरकार की मंशा है कि ऐसे प्रकरण व घटनाओं पर रोक लगे। जो वास्तव में कुछ अवैध कर रहे हैं, उनको चिन्हित करके कार्यवाही भी हो। ऐसे लोग भविष्य के लिए निगरानी में रखे जा सकें। एक कड़ा प्रावधान यह भी महत्वपूर्ण है कि अगर बगैर लायसेंस परिवहन करते पकड़ा जाता है। उस पर गैर जमानती कार्यवाही होगी। वाहन राजसात करने के साथ वाहन मालिक पर भी कड़ी प्रभावी कार्यवाही की जा सकेगी। इसके साथ ही इस तरह के कार्यों से जो भी पैसा कमाई की जा रही है अथवा सम्पति बनाई गई है,उसे कुर्क किया जाएगा। छत्तीसगढ़ पशुधन की रक्षा के लिए इस तरह कड़ा कानून बनाने वाला पहला राज्य नहीं है। इससे पहले ही 20 राज्यों में गौहत्या व गौमांस बिक्री पर रोक के लिए अलग अलग नियम बने हुए हैं। महाराष्ट्र में गौ हत्या पर 10 हजार जुर्माना व 5 साल की सजा है। मप्र में तस्करी पर 5 साल की सजा व 50 हजार जुर्माना,गुजरात में सबसे कड़ा कानून मौजूद है। गौहत्या पर वहां उम्रकैद की सजा का प्रावधान है। हरियाणा में 1 लाख जुर्माना व 10 साल तक की सजा है।उत्तर प्रदेश में 10 साल जेल व 5 लाख के जुर्माने का प्रावधान है। पहले सिर्फ गौ हत्या पर सजा का प्रावधान था लेकिन अब गौ तस्करी पर भी सजा का प्रावधान किया गया है। गौ हत्या -तस्करी अब गैर जमानती अपराध की श्रेणी में शामिल हैं। प्रयास बुरा नहीं है। गौ को हम माता की श्रेणी में मानते ,पूजते हैं। हमारे सनातन धर्म में मां का क्या स्थान होता है ,हम वही स्थान गौधन को देते हैं। गौधन से उत्पन्न सभी उत्पादन मानव स्वास्थ्य व शरीर के लिए अमृत माने जाते हैं। हम गौ के सारे शरीर में ब्रह्मांड के दर्शन करते हैं। गाय के दूध से लेकर गोबर तक हमारे दैनिन्दिनी जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मानव सेहत,संस्कृति की सेहत,धार्मिक भावनाएं गौमाता द्वारा संरक्षित हैं। उसकी रक्षा करना ना हमारा सिर्फ कर्तव्य है बल्कि हमारा धर्म भी है। गौरक्षा के लिए जो भी किया जा सके करना चाहिये। अब प्रश्न यह है कि कैसे किया जा सकता है। क्या सिर्फ सरकारी प्रावधान कर देने मात्र से या चाह लेने से यह सम्भव हो जायेगा। आपने अधिनियम बना लिए कह दिया नोडल अधिकारी बनाएंगें। अब तक अधिकार जिला के कलेक्टर या उनके द्वारा नियुक्त अधिकारी को है। कचहरी के चक्कर का अनुभव हिंदुस्तान की जनता को कडुआ रहा है। वहां हर आमआदमी की पहुंच पकड़ नहीं हो पाती। एक किसान को अगर अपने बीमार पशु को इधर उधर ले जाना हो। या अपने पशुधन को बेचना हो। परिवहन की जरूरत होगी। बड़े अधिकारियों तक पहुंचना किसान के लिए परेशानी का सबब हमेशा रहा है। क्या उसके लिए वकीलों का सहारा लेना पड़ेगा। क्या गांव स्तर के किसी संस्थाओं को अधिकार दिया जाएगा। कहीं यह भ्रष्टाचार का रास्ता तो नहीं खोल देगा। अभी अनेक राज्यों में राज्य के बाहर पशु परिवहन अनुमति के लिए कलेक्टर के कार्यालय में 5 हजार जमा करवाने पड़ते हैं। अनुमति लेने में पसीने छूट जाते हैं। अब यह अनिवार्य कर दिया गया है। इसका फायदा सिस्टम नहीं उठाएगा ,इसकी गारंटी लेनी होगी। अंत में यह भी कि गौ रक्षा की बात करने वाले कितने लोग अपने दैनिन्दिनी जीवन में गौसेवा करते हैं। कितने लोग उन्हें प्लास्टिक पन्नी खाने से रोकने उनकी खाने की व्यवस्था करते हैं। रोकना उन्हें भी चाहिये जो दूध निकालने के बाद गौमाता को लावारिस सड़क पर वाहनों की चपेट में आकर अंतिम सांस लेने छोड़ कर चैन की नींद सोते हैं। अपने अपने दिल पर हाथ रख कर विचारना होगा, गौमाता के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना होगा। आपको यह भी ध्यान रहे कि तभी आप गऊमाता के बारे में बात करने के अधिकारी हो सकेंगें। काम बहुत अच्छा है सबको मिलकर गौमाता की रक्षा का काम करना चाहिए। सिर्फ बंदिशों की घोषणाओं से कुछ नहीं बदलेगा,पहले अपने आपको बदलना होगा।