विष्णुदेव सरकार के सुशासन के प्रचार के बीच स्थानीय चुनावों के आरक्षण में ओबीसी की घोर उपेक्षा और सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार की घटनाओं ने दाग लगा दिया है। इन मुद्दों ने विपक्ष को सरकार पर वार करने के लिए बैठे बिठाए राजनैतिक हथियार उपलब्ध करा दिए हैं। घात -प्रतिघात के दौर राजनैतिक मंच पर शुरू हो गये हैं। पहले सड़क निर्माण में गड़बड़ी व भ्रष्टाचार के समाचार सामने आये। बीजापुर के एक पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने एक ठेकेदार के द्वारा सड़क निर्माण में की जा रही बड़ी गड़बड़ी को उजागर कर दिया। सरकार ने व उसके पुलिस प्रशासन ने तो कुछ कार्यवाही नहीं की लेकिन ठेकेदार व उनके गुर्गों नें पत्रकार की नृशंस हत्या कर उसे अपने परिसर में स्थित सेफ्टी टैंक में दफन कर दिया। कहा जा सकता है कि उसे सीमेंट से चिनवा दिया। सरकार कुछ करती उसके पहले बीजापुर के पत्रकारों ने अगवाई कर पुलिस को जागने को मजबूर किया। पत्रकार का शव बरामद किया गया। पूरे देश -दुनिया में इस हत्या कांड की जितनी गूंज हुई उससे ज्यादा सरकार के पीडब्ल्यूडी विभाग के इस भ्रष्टाचार की गूंज देश दुनिया में गई। सरकार के कथित सुशासन की तरह तरह से चर्चा हुई। लोगों ने कहा यह कैसा सुशासन ? बीजापुर तो चलो उस बीहड़ क्षेत्र में स्थित है जहां कहा जाता है कि ,शासन प्रशासन की पकड़ नहीं के बराबर है। वहां की घटना कोई जाबांज पत्रकार ही उठाने की हिम्मत कर सकता है। ना जाने कितने मामले वहां इस तरह के हो रहे होंगें जिसे उठाना पत्रकार के बस में भी ना हो। वहां क्या चल रहा होगा,यह आसानी से समझा जा सकता है। विभागीय अधिकारियों व ठेकेदारों के अवैध गठबंधन प्रदेश भर में इसी तरह सरकार पर पलीता लगाने का ही काम कर रहे होंगें। यह समझा जा सकता है। बीहड़ों के बाहर आकर देखें तो अब राजधानी जहां जिम्मेदार आला अफसरों से लेकर अति जिम्मेदार मंत्रिमंडल के सभी सदस्य निवास करते हैं। अपने महंगे वाहनों से नित्यप्रति सड़के नापते रहते हैं। वहां वीआईपी के आवागमन के मार्ग पर पीडब्ल्यूडी द्वारा बनाई जा रही घटिया सड़क की पोल खोलने की हिम्मत ,अपनी जान की परवाह ना करते हुए एक पत्रकार ने ही की। सरकारी अमला तो आंख मूंद कर बैठा था। निर्माण स्थल पर सिर्फ ठेकेदार के गुर्गे ही मौजूद रह कर लीपापोती करते रहे। 7 दिन तक सड़क की आवाजाही बंद कर धड़ल्ले से यह काम होता रहा। पत्रकार की नजर से नहीं बचा। उसने सारी गड़बड़ी को सरकार के सामने अपने चैनल के माध्यम से उजागर करते हुए सरकार को जगाया। पीडब्ल्यू मिनिस्टर तत्काल सतर्क हुए घटना स्थल पर पहुंचे। निश्चित ही उनकी बहुत प्रसंशा हुई। उन्होंने बाकायदा ठेकेदार से डांटते हुए सबके सामने पूछा कि कभी सड़क बनाए हो। ठेकेदार ने कह दिया साहब फिर से बना देंगें। मंत्री जी ने सरकारी अधिकारियों को निर्देश दिए और बंगले पर वापस आ गए। ठेकेदार ने फिर भी मानक से सड़क नहीं बनाई और जानकारी के अनुसार मौके पर मौजूद अधिकारियों की भी नहीं सुनी। मनमानी तरीके से काम कर दिया। अब सवाल यह उठता है की जब राजधानी की सड़को में यह किया जा सकता है तो ठेकेदारों की हिम्मत व संबंधितों के आचरण को समझा जा सकता है। बीहड़ों में नक्सल क्षेत्र में हो रहे निर्माण का क्या हाल होगा सरकार ही समझेगी,और किसी के समझ में तो आएगा नहीं। जनता के टैक्स के पैसे का यह दुरुपयोग रोकने के लिए अब भगवान ही मालिक है। यह नहीं कि यह वर्तमान सरकार में ही हो रहा है सभी सरकारों में यही सिस्टम काम करता है।
साय सरकार पर दो और प्रश्न खड़े किये गए हैं। एक तो बड़ी शान से जिन्होंने बैलेट पेपर से नगरीय निकाय चुनावों को कराने की बात करके विपक्ष से भी अपनी पीठ ठोकवाने का काम किया था,उन्होंने ही बिना शर्मिंदगी से कुछ दिनों बाद ही कह दिया कि अब ईवीएम से ही चुनाव होंगें। जनता व विपक्ष सोचते ही रह गये कि यह अचानक परिवर्तन क्यों हुआ ? कोई कह रहा है कि बैलेट पेपर से सरकार को कुछ खतरे का आभास हुआ होगा। ईवीएम से कुछ अदृश्य वरदान मिलने की आशा में यह हुआ है। कोई कहता है कि ईवीएम में कोई खास राज छुपा हुआ है ,यानी जनता के बीच एक बार फिर ईवीएम संदेह के घेरे में आने को उत्सुक है। देखना होगा कि आखिर ये राज है क्या ? परिणाम बहुत कुछ इशारा कर ही देगा। विपक्ष ईवीएम को घेरने को अभी से तैयार है। इसके अलावा सरकार नगरीय निकाय चुनाव में आरक्षण को लेकर भी घेरे में आई है। ओबीसी वर्ग को आरक्षण से एकदम बाहर किया जाना चर्चा में है। आखिर यह क्या सोच कर किया गया। सरकार ओबीसी को 50 प्रतिशत आरक्षण देने के पोस्टर लगवा कर वाहवाही लूट चुकी है। अब वह कैसे इस वर्ग से गुरेज करने लगी। एक सीट भी ओबीसी को आरक्षण नहीं देना सरकार की मंशा पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि कोई बात नहीं हम सामान्य सीट पर ओबीसी को टिकट देंगें। अब सवाल यह आता है कि जब सामान्य सीट से देने तैयार हैं तो उन्ही को आरक्षण देने में क्या दिक्कत थी। यह भी कि सामान्य सीट से जीत मिलेगी या नहीं। ओबीसी बाहुल्य सीट पर अलग बात होती है सामान्य सीट पर अलग बात।ऐसी स्थिति में सुशासन की बात करके अपनी पीठ थपथपाने वाली इस सरकार पर जनता कैसे विश्वास करे कि यह साय के सुशासन की सरकार चल रही है। सरकार विश्वास के संकट से गुजर रही है।