बस्तर के नक्सल क्षेत्र में बड़े बदलाव देखने में आ रहे हैं। सुरक्षा बलों की लगातार सफलता ने नक्सल हौसले को काफी हद तक तोडऩे का काम किया है। यह साफ दिखाई भी पड़ रहा है। सुरक्षा बलों की आक्रमकता व सूचनाओं से लेस हो जाने का भय नक्सलियों को हताश व निराश करता प्रतीत होने लगा है। कहीं ना कहीं ऐसे निर्देश सुरक्षा बलों को हैं ,जिससे सुरक्षा बल को फ्री हैंड दिया गया प्रतीत होता है। प्रदेश सरकार द्वारा भी सुरक्षा बलों का लगातार उत्साह वर्धन किया जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का जगदलपुर में ग्रामीण ओलम्पिक के आयोजन में शिरकत करना तथा खुले आम चुनौती भरे शब्दों में यह घोषणा करना कि 31 मार्च 2026 तक हम बस्तर सहित देश के सभी प्रभावित क्षेत्रों से नक्सलवाद को जड़ से समाप्त कर देंगें। इस घोषणा व उनके कहे शब्दों की कड़ाई में संभवत: सुरक्षा बलों के लिए बड़े संकेत छुपे थे। इससे सुरक्षा बलों को गहन बीहड़ में नक्सलियों के कोर इलाके में घुसने व ऑपरेशन करने का हौसला व साहस में अपार वृद्धि देखी जा रही है। आये दिन उन्हें नक्सल गतिविधियों की जानकारियां मिलने में स्थानीय लोगों का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष सहयोग भी मिलने लगा है। खबर मिलते ही जिस तरह की सभी बलों व राज्यों की सामूहिक रणनीति से व्यूह रचना कर निरंतर सफलता हासिल की जा रही है,वह ग्रामीणों के लिए उत्साह जनक है। अब तक लगभग 414 नक्सलियों के मारे जाने की खबर से प्रदेश में भी यह बात चल पड़ी है कि अमित शाह की घोषणा की तरफ सुरक्षा बलों के कदम बढ़ रहे हैं। कुछ गंभीरता से रणनीति बनी है ,यह आभास होने लगा है। इस बीच कुछ निरपराध लोगों के मारे जाने की संभावना विपक्ष द्वारा जताई जा रही है। यह संभावना यूँ ही नहीं है,जब भी कोई बडा ऑपरेशन होता है तो वहां मौजूद ग्रामीण भी हताहत होते ही होंगे। पंजाब से आतंकवाद तब खत्म हो पाया जब बड़े ऑपरेशन में कुछ स्थानीय लोगों को भी अपनी शहादत देनी पड़ी। हम यहां यह नहीं कह रहे हैं कि ग्रामीणों की हत्या की जाए। सुरक्षा बलों को निर्देश होते हैं कि निर्दोष लोग हताहत ना हों ,इस बात का ध्यान रखा जाए। नक्सल क्षेत्र में कौन नक्सली है ,कौन ग्रामीण अनेक मौकों पर यह फर्क करना कठिन हो जाता है। इसलिए भी चूक होने की संभावना होती है। अब जब नक्सलवादी हताश व निराश दिखाई देने लगे हैं ,तो सभी दलगत राजनीति से उठकर नक्सल ऑपरेशन को जायज ठहराएं यह उम्मीद की जाती है। सुरक्षाबलों की आक्रमकता व सुनियिजित रणनीति के कारण मुठभेडों में नक्सली लगातार मारे जा रहे हैं। नक्सलियों के अग्रणी नेताओं को लक्ष्य किया गया है। अनेक इनामी नक्सली लीडर मौत के घाट उतारे गए हैं। रणनीति यह दिखाई देती है कि शीर्ष लीडरशिप समाप्त कर दी जाए। लीडरशिप के अभाव में बाकी नक्सलियों की कमर टूटेगी,और वे बगैर नेतृत्व , हताश होकर प्रदेश की राजनीति की मुख्य धारा में शामिल होने बाध्य होंगें। लगातार कुछ नक्सलियों का सरेंडर किया जाना भी इस बात की पुष्टि करता प्रतीत होता है। प्रदेश के एक पूर्व डीजीपी की माने तो प्रदेश में लगभग 4000 हजार नक्सलियों की उपस्तिथि थी। उन्हें सहयोग करने वाले भी 40000 के करीब हैं। अगर यह आंकड़ा सही माने तो नक्सलियों के इस चक्रव्यूह को तोडऩा आसान काम नहीं है। इस दिशा में नक्सल शीर्ष लीडर जिस तरह से लगातार मारे जा रहे हैं,उससे यह उम्मीद तो जाग रही है कि इसी तरह की रफ्तार बनी रही तो 2026 की गारंटी तो नहीं लेकिन एक न एक दिन नक्सलवाद समाप्त होने की संभावना बन जाएगी। 9 फरवरी को नक्सलियों के सुरक्षित कोर क्षेत्र इंद्रावती नेशनल पार्क के गहन जंगल में पुख्ता जानकारी के साथ हुई मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने 31 नक्सलियों को मार गिराया। शेष नक्सली अपनी जान बचाकर जंगलों में भाग खड़े हुए। उनको भी सुरक्षा बल वहीं डटकर खोजने में जुटे है। यह बात ही नक्सलियों के उखड़ते पैरो का व सुरक्षाबलों के हौसले का सबूत दे रही है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बड़ी मात्रा में खतरनाक हथियार भी बरामद करने में बल को सफलता मिलती जा रही है। यह भी नक्सलियों की कमर तोडऩे के लिए महत्वपूर्ण तथ्य है। हथियार की कमी भी नक्सलियों के हौसले को कमजोर करने का काम करेगी। लंबा अरसा गुजरा नक्सल ,सुरक्षा बलों या थानों पर हमला करके हथियार लूटने की घटना को अंजाम नहीं दे पाए हैं। बाहरी सहयोगियों पर भी सरकार व सुरक्षा बलों की नजर है,ताकि हथियारों की आमद नक्सलियों को ना हो पाए। पहली बार केंद्र सरकार व राज्य सरकारें साथ मिलकर वाकई सही व सटीक रणनीति से मिलकर काम करती दिखाई दे रहीं है। अब वे खबरें नहीं दिखाई देती कि नक्सली अंधेरे व जंगल की आड़ लेकर भागने में सफल हो गए। यह भी नहीं कि नक्सलियों ने जवानों को अपने एम्बुश में फंसा कर जवानों को शहीद होने मजबूर कर दिया हो। अब आये दिन बड़ी तादाद में नक्सलियों के मारे जाने व हथियार बरामद होने की खबर यह उम्मीद तो जगा ही देती है कि सम्भवत: वाकई एक साल में नक्सल समस्या से निजात मिल जाएगी और हमारा बस्तर भी विश्व पर्यटन के नक्शे में बड़ा स्थान बनाते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त कर लेगा। अंत में नक्सल आतंक समाप्त होने की मंगल कामना करते हुए,बस्तर के इस उद्धार के लिए अपनी शहीदी देने वाले समस्त सुरक्षा बलों व अन्य शहीदों को नमन है। यह कामना भी करते हैं कि 2026 मार्च के बाद हमारा बस्तर क्षेत्र का पर्यटन देश विदेश के लिए और भी आकर्षण का केंद्र बने।