केंद्र सरकार ने फिर एक बार देश में नक्सल गतिविधियों में लिप्त क्षेत्र की सूची जारी की है। इस सूची में छत्तीसगढ़ को सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र बताया गया है। छत्तीसगढ़ के 33 जिलों में से 15 जिलों को नक्सल गतिविधियों का केन्द्र बताया गया है। इस अनुसार देश की सूची में दिए आंकड़ों में 40 प्रतिशत जिले सिर्फ छत्तीसगढ़ के हैं। केंद्र सरकार द्वारा जारी इस सूची में बस्तर संभाग के सभी सात जिले यानि बस्तर, दंतेवाड़ा,बीजापुर,नारायणपुर,सुकमा,कोंडागांव और कांकेर नक्सल प्रभावित हैं। इस सूची में अब सरगुजा के बलरामपुर को नक्सल गतिविधियों से मुक्त हुआ बताया गया है। इसके स्थान पर बिलासपुर संभाग के मुंगेली को शामिल बताया गया है। इसी तर्ज पर दुर्ग संभाग के कबीरधाम,राजनांदगांव मोहला- मानपुर,अम्बागढ़ चौकी,और खैरागढ़ को नक्सल गतिविधियों से प्रभावित बताया गया है। रायपुर संभाग के धमतरी,गरियाबंद,महासमुंद,जिले भी नक्सलवाद की चपेट में बताए गए हैं। झारखंड के 5 जिले,ओडि़सा के 7 जिले , महाराष्ट्र-तेलंगाना के 2-2 जिलें नक्सल प्रभावित हैं। मध्यप्रदेश के 3 जिले भी प्रभावित बताए गए हैं। जबकि मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मीडिया से चर्चा में गर्व के साथ बताया था कि उनका प्रदेश डकैत समस्या के साथ-साथ नक्सल गतिविधियों से भी पूरी तरह मुक्त हो चुका है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या शिवराज सिंह चौहान ने फर्जी आंकड़ों के सहारे यह बात की थी। एक बात यह भी कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी छत्तीसगढ़ में तीन साल में नक्सल वाद को जड़ से समाप्त करने की घोषणा करके उसे एक जुमला बना दिया है। जो आंकडे केंद्र ने जारी किये हैं वे तो अमित शाह के बयानों के विपरीत जा रहें है। दरअसल सारे बयान बेकार साबित हो रहे हैं। नक्सलवाद समाप्त नहीं होता ,बल्कि कुछ समय के लिए शांत हो जाता है। समय के साथ फिर से लौट लौट कर यह समस्या फिर अपना सिर उठा लेती है और किसी नई घटना के साथ सामने आ जाती है। यह माहौल देश-प्रदेश में 4 दशकों से बना हुआ है ,अनेक केंद्रीय गृह मंत्री आये सबने अपने अपने ढंग से जाबांजी वाले बयान दिए-गरजे। किसी ने जवानों की दी गई शहीदी पर कहा ,जवानों की शहीदी बेकार नहीं जाने देंगें। नक्सलियों की मांद में घुस कर मारेंगें,किसी ने कहा घर में घुस के मारेंगें, हमें उनकी चुनौती स्वीकार है,कभी कहा सेना का प्रयोग करेंगें। यूपीए की सरकार के समय तत्कालीन गृह मंन्त्री पी.चिदंबरम ने रायपुर में कहा था इन्हें नहीं छोड़ेंगे,राजनाथ सिंह ने दो घटनाओं के दौर में कहा था कि हमें नक्सलियों की चुनौती स्वीकार है। बयान रायपुर में दिए गए दिल्ली जाकर मंत्री ही नही बयान भी मौन हो गए। बयान आते रहे ,नक्सल गतिविधियां होती रही। ज्यादा पुराने आंकड़ों पर ना जाते हुए देखिए 15 मार्च 2007 को बीजापुर के एक घटना में 55 जवान शहीद हुए,बयान यही आया,नहीं छोड़ेंगे,शहीदी बेकार नहीं जाएगी। दिल्ली जाकर शांति हो गई।तीन साल बाद 16 अप्रेल 2010 को ताड़मेटला में सर्वाधिक 76 जवानों का एक साथ एक घटना में नक्सलियों ने सामूहिक नरसंहार किया। वही बयान फिर आया,दिल्ली जाकर फिर शांति। एक माह बाद 17 मई 2010 में दंतेवाड़ा में 36 जवानों की शहीदी हुई। वही बयान,दिल्ली जाकर फिर शांति। फिर 29 जून 201 0 को नारायणपुर में एक घटना में 27 जवान शहीद हो गए। फिर वही बयान,दिल्ली जाकर मौन। 25 मई 2013 को प्रदेश में भीषण व वीभत्स हत्याकांड घटित हुआ जिसमे कांग्रेस के लगभग सभी अग्रणी वरिष्ठ नेताओं को मार दिया गया। सुरक्षा जवानों समेत कुल 30 नेताओं की मौत हुई। बातें तो खूब हुई पर सब कुछ शांत। शहीद हुए कांग्रेस नेताओं के परिजन आज भी न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं। घटनाएं व बयानबाजियां यहीं खत्म नहीं हुई। सुकमा के भेज्जी में 11 मार्च 2017 को 12 जवान,सुकमा के बुर्कापाल में 24 अप्रैल 2017 को 25 जवान,सुकमा के किस्टाराम में 9 जवान शहीद हुए। सभी इन घटनाओं के बाद वही कुछ दोहराया गया,जो हमेशा दोहराया जाता था। मदनवाड़ा की दर्दनाक घटना जिसमे एक आपीएस शहीद हुआ कई जवान मारे गए,हथियार लूटे गए। बात वहीं की वहीं घूमती है। इन सब घटनाओं में बड़ी संख्या में नक्सली भी मारे गए इसमें कोई किसी को शक नहीं है। लेकिन जवानों व नेताओं का हताहत होना प्रदेश के शरीर पर कोढ़ की तरह का दाग बन कर रह गया। एक बडा बयान आया कि तीन साल में नक्सलवाद देश से समाप्त कर देंगें। 11 साल हो गए वो तीन साल पूरे नहीं हुए हैं। आमजनता बयानबाजी के मायने ढूंढ रही है। एक बात जरूर हुई है कि छत्तीसगढ़ में वर्तमान भाजपा सरकार थोड़ी कड़ाई बरतते दिखाई दे रही है। नक्सली बड़ी संख्या में मारे भी गए हैं और मुख्यधारा में लौटे भी हैं। सरकार सख्ती दिखा जरूर रही है। पर इतने से यह कहना अतिशियोक्ति होगी कि नक्सलवाद को समाप्त कर दिया जाएगा। यह देखा गया है कि जब जब नक्सल गतिविधिया थमी सी दिखती है , उस दौर में नक्सली अपनी मजबूती बढ़ाने में लग जाते हैं। लंबे अरसे के बाद बड़ी वारदात के साथ सामने आते हैं।वतर्मान सरकार ने आपसी बातचीत के रास्ते भी खोलते हुए सीधा आह्वान भी किया है कि हम किसी भी माध्यम से नक्सलियों से बातचीत के लिए तैयार हैं। इस मामले पर नक्सलियों की ओर से सकारात्मक जवाब का अभी तक अभाव दिखाई दे रहा है।माना जा रहा था कि छत्तीसगढ़ से धीरे धीरे ही सही यह समस्या समाप्त होने लगी है। हमारे सुरक्षा बल पूरी ताकत के साथ ना सिर्फ वहां अपनी मौजूदगी का अहसास करा रहै हैं,जहां तक अब तक सुरक्षा बलों की व सरकार की पहुंच नहीं के बराबर थी। कहा जा रहा है की अब अबूझमाड़ अबूझ नहीं रहा। अब शायद वह समय आ रहा है, जब नक्सल क्षेत्र में सांझा प्रयास से केंद्र व राज्य मिलकर तथा सभी दलों को सहमत कराकर इस आतंकी समस्या का समाधान खोजने की दिशा में बढ़ सकते हैं।