जब जब किसी घटी हुई घटना में उसकी दिशा बदलने वाला बयान आमने आता है। उस घटना का सच कभी बाहर नहीं आ पाता। वीभत्स झीरम हत्याकांड को ही ले लीजिए जिसमें कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के साथ अनेकों की हत्याऐं हुई।इस घटना में कांग्रेस के अग्रिम श्रेणी के लगभग सभी नेता मार दिए गए थे। प्रत्यक्षत: कहा गया कि यह नक्सलियों द्वारा की गई हत्याएं हैं। जिस तरह घटना घटी उसकी टाइमिंग को लेकर सवाल खड़े हुए। नक्सल घटना में किसी टारगेटेड नेता को मारने की बात कोई समझ सकता था। महेंद्र कर्मा उनके दुश्मन थे। उनसे बदला लिया गया होगा। उन्होंने स्वयं सरेंडर किया, कहा मझे मारो। बाकि किसी को कुछ मत करो। फिर भी बड़े नेताओं समेत कुल 30 लोग मारे गए। नंदकुमार के बड़े बेटे नये दिनेश पटेल को क्यों मारा गया,यह कोई समझ नहीं सका। यहीं पर घटना में शंकाएं उत्पन्न हुई। प्रभावित परिवारों को इस घटना में किसी राजनैतिक षड्यंत्र का आभास हुआ,उन्होंने घटना को षडय़ंत्र के दृष्टिकोण से किसी बड़ी व निष्पक्ष जांच की मांग की।मांग के बाद कोई जांच बैठ पाती उसके पहले ही राजनैतिक दिशा बदलने की शक्ति रखने वालों ने राजनैतिक रूप से दिशा भटकने वाले बयान देने शुरू कर दिए थे। तत्काल बयान आ गया कि रमनसिंह ने ये हत्याएं करवाई हैं,यह रमन सरकार का षडयंत्र है। उच्चस्तरीय जांच होकर षडयंत्र का पर्दाफाश होना चाहिए। दूसरे पक्ष ने भी जवाब में दिशा को और ज्यादा भटकाने का तुक्का फेंका, कहा कि बताएं अजित जोगी समय से पहले ही हेलिकॉप्टर से सभा स्थल से क्यों निकल गए। कवासी लखमा उनके कट्टर समर्थक नेता हैं, उन्हें पकडऩे के बाद भी बगैर कोई नुकसान पहुंचाएं क्यों छोड़ दिया। केंद्र ने जांच घोषित की जांच हुई। निष्कर्ष कुछ नहीं निकला। सामान्य नक्सली घटना ही सामने आई। इस रिपोर्ट पर प्रभावित परिवारों को जरा भी भरोसा नहीं हुआ है। वे पूछ रहे हैं कि घटना स्थल पर मौजूद रहे तथा भुक्त भोगी घायल हुए अनेक अन्य नेताओं व नेताओं की सुरक्षा में लगे जवानों से पूछताछ किये बगैर कैसे जांच पूरी हो गई। उनका बयान क्यों नहीं लिया गया । अन्य राज्य जांच समितियों व आयोग ने जांच को सरकार की जगह, जांच अधिकारी ने नहीं उनके सहायक ने सीधे राज्यपाल के सुपुर्द कर प्रभावित परिवारों के मन में और संदेह को बढ़ा दिया। कुल मिलाकर देखें तो राजनैतिक बयानबाजी व प्रयासों के कारण घटना का असली सच आज तक सामने नहीं आ पाया है। आज भी बार बार यह बात अनेक मंचों पर उठ रही है। भाजपा, कांग्रेस पर और कांग्रेस, भाजपा पर उंगली उठा रही है। प्रभावित परिवारजन दोनों के बीच इस दिशा बदलने वाली राजनीति में उलझ कर अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे हैं। कांग्रेस की तात्कालिक सरकार स्थानीय जांच एजेंसियों से जांच करने केंद्र सरकार की एजेंसी से फ़ाइल मांगते रह गई। सरकार ही चली गई लेकिन फ़ाइल नहीं मिली। झीरम के सच का आज भी सबको इंतजार है। अब ना तो केंद्र सरकार और ना ही राज्य की भाजपा सरकार इस मामले को महत्व दे रही हैं। शायद अब यह मामला दम तोड़ता नजर आ रहा है। और यह हुआ दिशा बदलने वाले राजनैतिक बयानबाजी के कारण।
सम्भवत: देश में पहली बार घटी एक घटना हमारे ही प्रदेश में फिर घट गई। हालांकि इसमें कोई हताहत नहीं हुए। बलौदा बाजार जिला व पुलिस मुख्यालयों को उग्र भीड़ ने जलाकर खाक कर दिया। सैंकड़ों वाहनों को आग के हवाले कर दिया। अधिकारियों समेत सबने भाग कर अपनी अपनी जान बचाई। निरंकुश भीड़ ने वो सब कुछ किया, जो नहीं किया जाना चाहिए। देश भर में इस घटना से छतीसगढ़ की ‘शांति का टापूÓ वाली साख को भारी बट्टा लगा। इस घटना से करोड़ों की सार्वजनिक सम्पति को बर्बाद कर दिया। कहा जा सकता है अपने ही घर को आग लगा दी घर के चिराग ने। यह घटना ऐसी जगह घटी जहां सतनामी समाज के बाबा गुरु घासी दास जीवन भर शांति सद्भाव के साथ रहने का संदेश देते थे। वे कहते थे ‘मनखे मनखे एक समानÓ किसी में कोई भेदभाव नहीं है। । फिर कैसे यह अपवित्र घटना घटी। इसमें किसी को संदेह नहीं है कि मंच समाज की मांग के लिए बना था। अनेकों ने मंच से भाषण भी दिया, क्या दिया ,कैसे दिया ,किसने दिया सरकार के पास सब सबूत मौजूद हैं। कौन उस भीड में सतनामी समाज के थे, कौन बाहरी यह भी समझना सरकार के लिए कठिन नहीं था। लेकिन जिस तरह लोगों को जेलों में ठूंसा गया। अपनी निर्दोषिता का सबूत प्रस्तुत करने के बाद भी नहीं छोड़ा गया। इस बात ने फिर झीरम की तरह दिशा बदलने वाली राजनीति शुरू हो गई है।