छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रमन डेका खुद ही जिलों के अधिकारियों की समीक्षा बैठक जिलों में जाकर ले रहे हैं। प्रदेश के जिलों के प्रत्येक विभागों के क्रियाकलापों को समझने का स्वयं प्रयास कर रहे हैं। बिलासपुर से इसकी शुरुवात देखने में आई। ये बैठकें जिलों में जाकर वे क्यों ले रहे हैं ? क्या चाहते हैं ? ये तो उन्हें ही पता होगा। जनमानस को लगा है कि शायद यह प्रक्रिया सभी राज्यों के राज्यपालों को अपनाने की सलाह केंद्र ने दी होगी या राज्यपाल यह स्वयं अपनी मर्जी से कर रहें हैं। अथवा छत्तीसगढ़ की विष्णु देव साय सरकार से उनको कोई नाराजी हो गई है। हम यहां ये नहीं कहना चाहते कि राज्यपाल को अधिकारियों से बातचीत के अधिकार नहीं है। सरकार उनके नाम पर चलती है ,यह भी सब जानते हैं। अब तक देखा जा रहा था कि सभी राज्यपाल एक परम्परा से बंधे रहते हैं। राज्यपाल को वैसे तो सीमित अधिकार होते हैं,जिसका संविधान में स्पष्ट उल्लेख है। उसके बावजूद समय समय पर देखा जा रहा है कि राज्यपाल अपनी परम्परागत सीमाओं से बाहर जाने लगे हैं। पश्चिम बंगाल जैसे अनेक प्रदेशों के राज्यपालों ने इसके उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। जिस पर जन मानस सोचने को मजबूर भी हुआ है। जब जब राज्यपालों ने सीमाओं के बाहर राजनीतिक बयानबाजी की है,तब तब देश में इसकी चर्चा व्यापक रूप से हुई है। जनमानस दो विचारों के द्वंद में फंस गया है। एक विचार राज्यपालों के परम्परा से हट कर राज्यों में हस्तक्षेप करने को उचित मानने वालों का है। दूसरा इसे संविधान में किये उल्लेख का उल्लंघन मान रहा है। संविधान के अनुच्छेद 167 (क) में स्पष्ट कहा गया है कि राज्य के कार्यों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्तावों संबंधी मंत्री परिषद के सभी विनिश्चय राज्यपाल को संसूचित किये जाएं।167 (ख) में साफ उल्लेख है कि राज्य के कार्यों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्तावों संबंधी जो जानकारी राज्यपाल मांगें वह दे और (ग)में कहा गया है कि किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने कोई विनिश्चय किया हो ,किंतु मंत्रिपरिषद ने विचार नहीं किया है,राज्यपाल द्वारा अपेक्षा किये जाने पर परिषद के समक्ष विचार के लिए रखे। यह साफ उल्लेख है उसके बाद कौन सी ऐसी बात राज्यपाल जानना चाहते थे कि उन्हें जिलों में जाकर जानने की जरूरत पड़ रही है। यह प्रश्न विष्णुदेव सरकार के समक्ष पैदा हो सकता है। कौन सही है कौन गलत जनमानस इस बात पर असमंजस में दिखाई देता है। सब देखते आ रहे हैं कि राज्यपाल जब भी कोई बात समझना चाहे या किसी संज्ञान में आये मामले में कुछ कहना चाहे,निर्देश देना चाहे तो राजभवन से पत्र व्यवहार करते हैं। अथवा सम्बंधित अधिकारी को तलब कर बात कर लेते हैं,अथवा मुख्य सचिव या मंत्रीगण को बुलाकर बात करके समाधान करते हैं। मुख्यमंत्री जब जब उनसे मिलते हैं तब सारी शंकाओं का समाधान भी किया जा सकता है। जिलों में जाकर विभागीय अधिकारियों से बातचीत सिर्फ औपचारिकता नहीं हो सकती। इसकी चर्चा जनमानस में है कि कहीं वर्तमान सरकार के कामकाज से राज्यपाल नाखुश तो नहीं हैं। राज्यपाल रमन डेका अभी हाल छत्तीसगढ़ आये हैं। भेंट मुलाकात ,जान पहचान करना अलग बात है। समीक्षा बैठकें लेकर हालात जानना अलग बात है। अभी तक विभागीय मंत्रीगण,मुख्यमंत्री के साथ विभागीय प्रमुख सचिव,सचिव ,जिलों के प्रभारी सचिवों तथा मुख्य सचिव की जिम्मेदारी है कि वे जिलों तक पहुंचें व विभागीय समीक्षा कर सम्बन्धितों को रिपोर्ट करे। वो रिपोर्ट क्रम से मुख्यमंत्री व राज्यपाल तक को पहुंचे ताकि प्रशासन सुचारू ढंग से चले। क्षेत्रों की जरूरतों की समझ बने,आंतरिक हालात से सरकार रूबरू हो। सुधार के निर्देश दिए जाएं या अच्छा काम हो रहा है तो पीठ थपथपाई जा सके। जब जरूरत हो तो प्रदेश की सारी प्रशासनिक स्थिति से केंद्रीय आलाकमान को भी अवगत कराया जा सके। जनमानस में एक और चर्चा चल पड़ी है कि अगर राज्यपाल स्वयं ही समीक्षा बैठकें लेकर जानकारी प्राप्त करने लगेंगें तो मन्त्रीगण व अधिकारी गण क्या करेंगें ? किसको रिपोर्ट करेंगें। इस बात पर कोई रोक नहीं है कि राज्यपाल जिलों में जाकर किसी से मिलें, लेकिन अगर अधिकारियों से राज्यपालों की समीक्षा बैठकें होने लगें तो क्यों ना मान लेना चाहिए कि कहीं केंद्र से राज्यपालों को राज्यों पर नकेल कसने के कोई विशेष निर्देश तो नही हैं, या प्रदेशों के प्रशासनिक तरीकों में कोई बड़ा बदलाव तो होने नहीं जा रहा है। राज्यपाल स्वयं प्रदेश का दौरा कर प्रशासनिक स्थिति पर नजर रखने की कोई नई प्रक्रिया तो अपनाने नहीं जा रहे हैं। सविधान में उनको ऐसा करने से मना करने के किसी प्रकार के प्रावधान नहीं हैं कि वे समीक्षा बैठकें नहीं कर सकते। लेकिन अनुच्छेद 167 में कुछ निर्देश हैं जिससे यह समझ में आता है कि वे जब चाहें किसी प्राधिकारी को बुलाकर सारी जानकारी ले सकते हैं। इसके ये राज्य के प्राधिकारी जानकारी देने बाध्य हैं। जनता में चर्चा है कि फिर जिलों में जाकर बैठकों की जरूरत क्यों पड़ी है यह विचारणीय बात है।