कानून व्यवस्था हमेशा से हर सरकार के लिए समस्या बनती रही है। चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर भाजपा की सरकार रही हो। कानून व्यवस्था के प्रश्न ने सबको बराबर परेशान किया है। विपक्ष के आंदोलन के लिए यह प्रिय विषय बना है। कांग्रेस सरकार के दौर में भाजपा ने तो भाजपा के दौर में कांग्रेस संगठन ने एक दूसरे का ढोल बजाया है। रोज हत्याओं,बलात्कार,दुराचार,छेड़छाड़,चाकूबाजी,मारपीट,लूटपाट,एक्सीडेंट में मौतों की खबरें अखबारों के हर पेज की सुर्खियां बनती हैं। एक शहर या कस्बा अथवा गांव,मोहल्ले की बात नहीं है। प्रदेश के सभी जिले इस स्थिति की चपेट में हैं। बलरामपुर से बस्तर, राजनांदगांव से सराईपाली,या यूं कहें कि उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम कोई जगह नहीं छूटी जहां अपराध की आए दिन घटनाएं ना घटी हों। यह स्थिति कांग्रेस शासन काल में भी थी, अब भी है। अब भाजपा शासनकाल में कुछ ज्यादा ही घटनाएं देखने सुनने में आ रहीं हैं। कोई दिन ऐसा नहीं बीत रहा है जब अखबार इस तरह की कानून व्यवस्था तोडऩे या भंग करने वाली घटनाओं की खबर ना छाप रहा हो। यहां तक कि सोमवार को ‘नो नेगेटिव न्यूज़Ó वाले एक बड़े अखबार को अपनी इस चाल को छोड़ कर यह टिप्पणी करते हुए समाचार छापना पड़ रहा है कि ‘वही खबर जो आपको जानना जरूरी हैÓ . अब तो वर्तमान सरकार में बात आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रही है। भाजपा के अनुभवी विधायक पुरन्दर मिश्रा को अपने अनुभव सांझा करते हुए अपनी ही सरकार को पत्र लिख कर मांग करनी पड गई। उन्होंने सरकार को लिख कर सार्वजनिक किया है कि कानून व्यवस्था की स्थिति प्रदेश में बिगड़ती जा रही है। इस पर तत्काल सरकार व उसके सिस्टम द्वारा नियंत्रण जरूरी है। अपनी पीड़ा कानून व्यवस्था पर व्यक्त करते हुए जिस तरह पुरन्दर मिश्र ने अपनी चिंता व्यक्त की है,उसी तरह सीमेंट के दाम एक ब एक 50 रुपये बढ़ा दिए जाने पर वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व मंत्री वर्तमान सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने भी नाराजी भरा पत्र अपनी ही सरकार को लिखा है। इसके पहले दुर्ग सांसद विजय बघेल ने भी कर्मचारियों की मांग पर सुहानुभूति दिखाते हुए अपनी सरकार को पत्र लिख कर इसे सुलझाने के लिए आग्रह किया है। विपक्षी दल कांग्रेस तो बार बार इन मुद्दों पर सरकार को घेरते ही आ रही है। आखिर प्रदेश की सरकार को क्या हो गया है कि विपक्षी तो विपक्षी बल्कि अपने ही लोग उसे घेर रहे हैं। यही स्थिति पिछले विधान सभा सत्र के दौरान सदन के भीतर भी देखने में आई थी। जहां अजय चंद्राकर व अन्य कुछ भाजपा सदस्य भी अपनी ही सरकार व मंत्रियों को घेरने में कहीं कसर नहीं छोड़ रहे थे। इन सबका प्रभाव जनता के बीच विपरीत पड़ रहा था। लाख आप कह रहें हों कि विष्णुदेव साय की सरकार सुशासन की सरकार है। परन्तु प्रतिदिन की घटनाओं से तो यही सामने आ रहा है कि प्रदेश में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पहले तो विपक्ष कहता था तो वजन इस रूप में कम आंका जाता रहा कि विपक्ष का काम विरोध ही करना है। चाहे सरकार अच्छा करे तो भी विपक्ष उसे कभी भी अच्छा नहीं कहेगा। अच्छे काम में भी नुक्स निकाल ही लेगा। अब तो स्वयं अपनों ने ही हमला करना शुरू कर दिया है। जब विपक्ष ऐसी बातें करता है तब उसका खंडन करते तत्काल कोई ना कोई बड़ा नेता दिखाई दे जाता है। टीवी से लेकर अखबारों में वह सामने भी आ जाता था। अब खुद के अपने जब हमलावर हैं, तो कुछ कहते ही नहीं बन रहा है। ना अखबारों में खंडन-मंडन ना टीवी डिबेट में कोई जवाब,ना कोई इस विषय में बाईट ही सुनने देखने में आई है। सबकी बोलती बन्द है। जनता चाहती है कि कम से कम उस बात का जवाब तो सार्वजनिक रूप से आना चाहिए कि सरकार उन बड़े महत्वपूर्ण नेताओं की चिंता का समाधान क्या करने जा रही है।उनकी बातों के प्रति कितनी चिंतित है। अगर ऐसा नहीं किया जा रहा है तो जनता जो प्रतिदिन सुशासन का नारा सुनते सुनते अपना कान पका रही है,उसके मन में कैसे बैठेगा कि यह विष्णुदेव साय सरकार का सुशासन है। लोग तो अब इस सरकार अथवा मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के राजनैतिक दृष्टिकोण(विजन) के बारे में चर्चा करने लगे हैं। लोगों में इस बात की चर्चा है कि भले ही जनता ने चुनाव में कांग्रेस को ठुकरा दिया हो ,लेकिन कम से कम ग्रामीण योजनाओं व ग्रामीण विकास,छत्तीसगढिय़ा भावना का दृष्टिकोण(विजन) तो स्पष्ट दिखाई देता था। उस विजन के सराहना करने वाले भी थे, तो आलोचना करने वाले भी थे। विजन स्पष्ट तो था । वर्तमान सरकार का सुशासन किस दृष्टिकोण से है यह कोई नहीं समझ पा रहा है। लोग कहते हैं विष्णुदेव साय एक सज्जन व सौम्य, सरल व्यक्ति हैं। दूरदृष्टि रखने वाले गंभीर नेता हैं।वे सम्हल कर और धीरे धीरे कदम रखने वाले नेता हैं। आगे देखने पर उनका दृष्टिकोण साफ दिखाई देने लगेगा। 10 माह सरकार को बने हो गया ,भले ही सरकार के पास अपना विजन हो पर वह विजन कहीं पर साफ नहीं हो पाया है। प्रदेश सरकार का अपना कोई विजन अब तक समझ में किसी को ना आया हो लेकिन जानकारों का कहना है की बस ‘मोदी की गारंटीÓ ही सरकार की साख है।