Home बाबू भैया की कलम से धान खरीदी किसानों का वार्षिक उत्सव, विपक्ष मनाती है आरोपोत्सव

धान खरीदी किसानों का वार्षिक उत्सव, विपक्ष मनाती है आरोपोत्सव

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धान खरीदी प्रदेश का आज के दिन सबसे बडा काम हो चुका है। इससे बड़ी व्यापक योजना दूसरी नहीं है। किसान हित की यह योजना जब से बनी है तब से ही इस पर विपक्ष हमेशा विवाद खड़ा करता ही है। चाहे विपक्ष में कांग्रेस हो या भाजपा। पूरे प्रदेश में हजारों की संख्या में बने खरीदी केंद्रों में कितना भी सतर्कता से काम होता हो,पर विपक्ष बाल की खाल निकाल ही लेता है। फिर शुरू होता है खामियां गिनाने का दौर। सरकार किसी की भी हो आरोप से नहीं बच पाई। कम खरीदी,तौल में गड़बड़ी,बारदाना की कमी,टोकन आबंटन में गड़बड़ी,भुगतान में विलंब,मिलरों द्वारा धान का उठाव ना करना ये कामन आरोप हैं जो तत्कालीन विपक्ष के हाथ लग ही जाते हैं। प्रदेश भर में हजारों केंद्रों में खरीद में चाहे कितनी भी सतर्कता बरती जाए कुछ ना कुछ कमी तो बड़े काम में मिल ही जाती है। ना हुआ तो बारदाना की कमी ,मिलों के असहयोग से केंद्र सरकार द्वारा आबंटन के बाद भी नहीं मिल पाती,यह कमी तो मिल ही जाती है। सिस्टम में सेट कर्मचारी-अधिकारी की अपनी मानसिकता भी होती है जिसके चलते कम तौल की गड़बड़ी कहीं ना कहीं मिल ही जाती है। टोकन आबंटन भी एक बड़ा व सरदर्दी का सबब बन जाता है,जब पर्दे के पीछे से कुछ विशेष निर्देश दिए जाते हैं। सरकार के बजट की भी अपनी एक मर्यादा है। उसके चलते भी अनेक परेशानियां खड़ी हो जाती हैं। यानी कुल मिलाकर इतने बड़े काम में कुछ ना कुछ खामियां तो मिल ही जाती हैं जो विपक्ष के लिए राजनैतिक संजीवनी का विषय बन जाता है। धरना प्रदर्शन ,आंदोलन का हाथ थाम विपक्ष जनता के बीच यह स्थापित करने का भरपूर प्रयास करता है कि ,सरकार धान खरीदी में अनियमितता कर रही है। उसको इस विरोध में अपनी विचार धारा से जुड़े किसानों का साथ भी मिल ही जाता है। चाहे कांग्रेस विपक्ष में हो या भाजपा धान पर प्रतिवर्ष रार -तकरार का दौर शुरू हो जाता है। धान खरीदी की कभी विपक्ष प्रसंशा नहीं करता,कभी भी बोनस देने पर तारीफ नहीं होती,कमी ही बताई जाती है। ना वर्तमान सरकार के 3100 में धान खरीदी व 72 घंटे में भुगतान की तारीफ होती। बल्कि कोई कहीं एक दो भुगतान के विलंब की घटना अगर हो जाए तो इतना बड़ा तूफान जरूर खड़ा कर दिया जाता है,मानों सरकार कहीं भी भुगतान नहीं कर पा रही है। कांग्रेस सरकार के दौर में भी और भाजपा सरकारों के दौरान भी यही होता आ रहा है। अब तो यह लगने लगा है कि अगर धान खरीदी पर जिस सरकार के विरुद्ध कोई आरोप विपक्ष नहीं लगा पाएगी, उस सरकार का 15 साल कोई बाल भी बांका नहीं कर पायेगा। धान प्रदेश में राजनीति का सबसे बड़ा हथियार बन चुका है। हर साल विपक्ष सरकार के खिलाफ वार करने को अपनी आरोपों की तलवार पर धार लगाता है। वो मानता है कि पांच साल अगर सफलता के साथ धान खरीदी पर एन-केन-प्रकारेण सरकार पर प्रश्नचिन्ह लगा कर बदनाम किया जाए और उसमें अगर सफल हुए तो अगली सरकार अपनी बन जाएगी। प्रदेश की 80 प्रतिशत आबादी किसानों की है। राजनैतिक दलों के लिए वोट का सबसे बड़ा बैंक किसान है,उसे कौन अपने पक्ष में नहीं करना चाहेगा। इसके लिए कुछ भी करना पड़े तो किया ही जाएगा। चाहे सच बोलकर, चाहे झूठ बोलना पड़े सरकार को बदनाम करना तात्कालिक विपक्ष का सबसे बाद धर्म बन जाता है। विपक्ष ये देखना नहीं चाहता की कांग्रेस सरकार ने किसानों के लिए क्या किया ना यह देखना चाहता की भाजपा सरकारों ने किसानों के लिए क्या अच्छा किया। सिर्फ बाल की खाल निकाल कर उसे सरकार के खिलाफ मुद्दा बनाने का काम ही विपक्ष करता है। धान खरीदी प्रदेश के किसानों के हृदय के पास है। या यूँ कह सकते हैं की किसानों की जीवनरेखा है। इस जीवनरेखा को मिटाने की कोशिश की जगह दोनों दल या कहें सभी दल मिलजुल कर किसानों का हित पर सोचें,प्रदेश में ऐसा माहौल बन सके इसका प्रयास करें तो किसानों का भला होगा। जो नहीं हो सकता उसे साफ कहें,बड़ी बड़ी बात करके अप्रत्यक्ष रूप से योजना में पलीता लगाने की सोच को छोड़ दें। पारदर्शिता का प्रयोग करें, विपक्ष की बात को नकारे नहीं सकारात्मकता से लें, अगर गलती है तो उसे स्वीकार करते हुए सुधार किया जाये। सब जानते हैं कि बड़े काम में त्रुटियां होंगीं ही और जहां इस काम में हजारों दिमाग लगे हों इसका क्षेत्र व्यापक हो तो वहां ‘मुंडे मुंडे मतिर्भिन्नाÓ की स्थिति भी बन सकती है। बड़े काम में गलतियों के साथ सुधार की पूरी गुंजाइश होती ही है। सरकार सुधार करे विपक्ष उन गलतियों व सिस्टम की मनमानी को सरकार के सामने लाये, यह होना चाहिए,यही होता भी है,पर नकारात्मकता के साथ होता है। सकारात्मकता के साथ होना चाहिए। उसके बाद भी सरकार ना सुने तब आंदोलन होना चाहिए।