राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत जी के समय-समय पर आने वाले बयान उनके महान व्यक्तित्व का परिचय देते हैं. उनकी किसी भी बात में छोटापन नजर नहीं आता. वह बड़ी उदारता के साथ, बेबाक तरीके से अपनी बात रखते हैं. कुछ उनकी बातों से सहमत होते हैं, कुछ असहमत भी होते हैं. लेकिन वह इसकी परवाह नहीं करते और अपनी बात कह देते हैं. जैसे पिछले दिनों उन्होंने देश के कुछ मस्जिदों की खुदाई और कुछ लोगों द्वारा हिन्दुओं का नेता बनने को लेकर के जो बयान दिया, वह अपने आप में अभूतपूर्व था. इस बयान की उदारवादी लोगों ने खुलकर प्रशंसा की.विपक्षी दलों ने भी उनके बयान को हाथों हाथ लिया. हालांकि कुछ कट्टरपंथी लोगों ने उनके इस बयान से असहमति जाहिर की. कुछ धर्माचार्य ने नाराजगी भी व्यक्त की लेकिन इससे भागवत जी को कोई फर्क नहीं पडऩे वाला. वह वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जो व्यावहारिक सच है, उसको कहने में संकोच नहीं करते. इसलिए मैंने हमेशा उनके बयानों की तारीफ की है. समाज में अगर ऐसे प्रमुख लोग उदारता के साथ समरसता की बात करेंगे तो देश में कहीं कोई दंगा-फसाद न हो. कुछ समय पहले भागवत जी ने कहा था कि देश में रहने वाले हिंदू और मुसलमानों का डीएनए एक है. यह बहुत बड़ी बात थी. इससे लाखों मुसलमान को बहुत अच्छा लगा था. उन्होंने भी भागवत जी की खुलकर तारीफ की थी. यह राष्ट्र शुरू से सनातन रहा है. लेकिन जब आक्रमणकारी मुगल आए तो उसके बाद बहुत से हिंदू धर्म परिवर्तन करके मुसलमान हो गए.
इसमें दो राय नहीं की मोहन भागवत जब से संघ के सरसंघचालक यानी प्रमुख बने हैं, तब से समाज में संघ को लेकर एक सकारात्मक भाव जाग्रत हुआ है. संघ की छवि और निखरी है. मैंने भी बाल्यकाल से संघ की गतिविधियों को देखा है और यही पाया है कि यह संगठन राष्ट्र के उन्नयन हेतु सतत लगा हुआ है. अगर यह संगठन हिन्दू एकता की बात करता है तो कोई गलत नहीं करता. सभी को अपने धर्म की बात करने का अधिकार है. सभी मजबूत रहें,लेकिन उनमें किसी अन्य धर्म के लिए नफरत का कोई भाव न रहे. अगर मोहन भागवत जी हिंदुओं से कहते हैं कि सबसे अधिक बच्चे पैदा करो तो कोई गलत बात नहीं करते. देश की सामाजिक स्थिति जिस तरह होती जा रही है, उसे देखते हुए अब यह बहुत जरूरी भी हो गया है. इस बयान को किसी दूसरे धर्म की प्रतिद्वंद्विता के रूप में न देखकर, आत्म सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाना चाहिए. इसमें दो राय नहीं कि हिन्दुओं की अतिरिक्त सावधानी के चक्कर में जनसंख्या में गिरावट तो आई है. तुलनात्मक आंकड़े सच का बयान कर रहे हैं. इसलिए मैं कहता हूं कि मोहन भागवत जी का बयान हमेशा समयसापेक्ष आता है. जिस पर चिंतन की जरूरत है. रायपुर के पांच दिवसीय प्रवास में भी उन्होंने लगातार स्वयंसेवकों का अपने व्यक्तित्व के निखारने की सलाह दे रहे हैं. पेड़ लगाने की बात कर रहे हैं. पानी बचाने का संदेश और पॉलिथीन मुक्त समाज व्यवस्था पर भी उन्होंने जोर दे रहे हैं. उनकी बातों में कहीं भी नफरत कीटाणु नजर नहीं आते. वे उदारमन के साथ राष्ट्र के विकास में लगे रहने की सलाह देते हैं. उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को देखकर दूसरे धर्म के लोगों को यह सीख लेनी चाहिए कि उनके बयान भूल कर भी नफरत वाले नहीं होने चाहिए. क्योंकि घृणा नहीं प्यार से ही राष्ट्र का विकास संभव है. इस बात को भागवत जी अच्छे से समझते हैं. अगर उनकी बातों को हम भागवत -कथा की तरह आत्मसात कर लें, तो हिंदुत्व का विकास भी होगा, और राष्ट्र का भी।