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यह कैसा लोकतंत्र है?

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अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोटना इसी को तो कहते हैं। प्रयागराज के महाकुंभ में भगदड़ के कारण कुछ लोगों की मृत्यु हो गई। उस पर एक टीवी चैनल का रिपोर्टर समाचार बना रहा था, तो उसे वहां के कुछ लोगों ने रोकने की कोशिश की। यहां तक कि उसे धक्के मार कर बाहर निकला गया। वह रिपोर्टर मौत के आंकड़ों पर सवाल उठा रहा था और उसे रोका जा रहा था। इस देश में लोकतंत्र है। अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है। यही तो है अभिव्यक्ति की आजादी कि जो सच है, वह दिखाया जाए। रोज चैनल वाले यह दिखा रहे हैं कि 30 करोड़ आ गए 35 करोड लोगों ने संगम में स्नान कर लिए। इतना प्रमाणिक आंकड़ा आपको रोज मिल रहा है।लेकिन जो लोग भगदड़ में मर गए, उनके आंकड़े प्रशासन क्यों छिपा रहा है। आखिर इतनी पारदर्शिता तो होनी ही चाहिए कि कितने लोग मरे। अगर कोई पत्रकार जानना चाहता है, तो उसे जानने का पूरा अधिकार है।उसे रोकने का मतलब है कि आप कहीं न कहीं कुछ छुपा रहे हैं। यह अपने आप में अपराध है। पत्रकारिता के शाश्वत मूल्यों पर प्रहार है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यही है कि हमारे पूरे सिस्टम में कथनी करने का अंतर है। जो सच है, वह दिखाया जाना चाहिए। इसमें किसी को बुरा नहीं लगेगा। क्योंकि यह भगदड़ सहज रूप में उभर कर सामने आई। हालांकि भगदड़ के पीछे एक कारण तो लोगों का धैर्य खो देना भी है। दूसरा कारण यह है कि मेला स्थल में वी वीआईपीयों के लिए एक अलग रास्ता बनाया गया और सामान्य लोगों के लिए दूसरा रास्ता। इस देश में आखिर इतना वर्ग भेद क्यों होता है? क्यों इस देश के चंद लोग वीवीआईपी माने जाते हैं और एक बड़ी आबादी के लोग कीड़े-मकोड़े? अकसर धार्मिक स्थलों में इस तरह का अपराध देखने को मिलता है। मैं कई बार यह नहीं समझ पाता कि अगर वीवीआईपी भगवान के पहले दर्शन कर लेगा तो क्या भगवान उसे कुछ ज्यादा आशीर्वाद प्रदान कर देंगे? ऐसा कुछ नहीं होने वाला। बस उसकी आत्मा को संतुष्टि मिलती है कि वह बड़ा आदमी, नेता या अफसर है। ऐसी विषमता देखकर धर्म स्थलों में लोगों को बहुत गुस्सा आता है। कायदे से तो इस देश में यह वीवी आई पी-संस्कृति ही खत्म होनी चाहिए। भगवान के दर पर क्या राजा, क्या गरीब, सब बराबर हैं । लेकिन यहां भी भेद किया जाता है। इस देश में सच्चा लोकतंत्र तब आएगा, जब एक आम आदमी भी भीड़ में खड़ा हो और उसके ठीक पीछे या आगे राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री या कोई बड़ा अफसर। सबके लिए समान व्यवस्था होनी चाहिए। हां जो वीवीआई पी हैं,उनकी सुरक्षा के लिए अगल-बगल कमांडो आदि तैनात रहें, इसमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन उन्हें खड़ा होना चाहिए आम लोगों की कतार में। पर ऐसा होता कहां है। दुनिया के अनेक देशों में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आदि के लिए बहुत अधिक प्रोटोकॉल का पालन नहीं होता। सामान्य लोगों की तरह ही वे आना-जाना करते हैं। लेकिन हमारे यहां दिक्कत यह है कि सदियों की गुलामी के बाद देश आजाद हुआ तो कुछ लोगों के दिमाग से अभी भी राजशाही का भूत नहीं उतरा है। वे चुने हुए प्रतिनिधि को राजा समझ बैठते हैं। उनकी व्यवस्था में लगे लोग उनको राजा महाराजा बनाकर व्यवहार करते हैं। आम लोगों को जनप्रतिनिधियों से दूर कर दिया जाता है। उन्हें धक्का मारा जाता है। उन पर लाठियां बरसाई जाती है। इस देश में यह विषमतावादी लोकतंत्र आखिर कब तक चलेगा? इस पर विचार करना चाहिए। और अगर महाकुंभ में ज्यादा मौतें हुई हैं,तो उसमें घबराने की कोई बात नहीं। सच को सामने आने देना चाहिए। ऐसा करके हम अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान करेंगे और लोकतंत्र को लोकतंत्र बने रहने देंगे, उसे राजतंत्र नहीं बनाएंगे।