Home मेरी बात कुम्भ एक सांस्कृतिक उत्सव

कुम्भ एक सांस्कृतिक उत्सव

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144 साल के बाद आया है यह महाकुंभ. प्रश्न यह है कि कुंभ तो कुंभ है, फिर यह यह महाकुंभ क्यों है. इसका उत्तर यही है कि इसके पहले ग्यारह कुंभ आ चुके हैं. ग्यारहवें कुंभ के बाद जो कुंभ आता है, उसे महाकुंभ कहा जाता है और यह आदिकाल से चला रहा है. इस वर्ष के कुंभ को इसीलिए महाकुंभ कहा जा रहा है. इस महाकुंभ का साक्षी बनने के लिए दुनिया भर के सनातन प्रेमी पधार रहे हैं. मैं यह देखकर अभिभूत हूं कि प्रयागराज में में विदेश के भी अनेक श्रद्धालु मगन होकर डाल रहे हैं. मुख्यमंत्री के सामने उपस्थित होकर शिव तांडव स्त्रोत और रामचरितमानस की चौपाइयां सुन रहे हैं. यह है सनातन का असर. कुछ सनातन विरोधी हिंदू तथाकथित प्रगतिशीलता के रौ में बह कर ठंडी को कोस रहे हैं. प्रयागराज की भीषण ठंड में कुछ लोग मर गए. एक वामपंथी चिंतक ने लिखा, इसके लिए जिम्मेदार कौन है. वह परोक्ष रूप से मोदी सरकार को लांक्षित करने की कोशिश में थे. उनकी बातों से यही ध्वनि हो रहा था. जबकि ठंड तो हर साल पड़ती है. हर साल लोग प्रयागराज के संगम में जाकर स्नान करते हैं. प्रतिवर्ष कल्पवास होता है. माघ मेला लगता है. इसी तरह की भीषण ठंड पड़ती है. लेकिन लोग पूरी श्रद्धा के साथ जाते हैं. वहां स्नान करते हैं. मेरे पिताजी भी लंबे समय तक वहां जाते रहे. कुछ कमजोर शरीर वाले दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं. लेकिन जिनकी आस्था, श्रद्धा मजबूत होती है, इच्छा शक्ति भी, वे डुबकी लगा कर बाहर निकल जाते हैं. उन्हें कुछ नहीं होता. गंगा यमुना और लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के संगम में नहा कर लोग अपने आप को भाग्यशाली महसूस करते हैं. उन्हें ऐसा महसूस होता है कि उनके पापों का नाश हो चुका है. हालांकि मेरी अपनी निजी मान्यता यह है कि अगर कोई पापी है, तो वह यह सोचे कि संगम में डुबकी लगाने मात्रसे उसके पाप खत्म हो गए, तो यह भरम है. हाँ,इतना जरूर है कि पापी व्यक्ति संगम में डुबकी लगाने के साथ यह संकल्प करें अब से वह कोई पाप नहीं करेगा,तो उसके पुराने पाप खत्म हो सकते हैं. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि संगम में डुबकी लगाने के बाद वह फिर से पाप कर्म शुरू कर दे. ऐसे व्यक्ति को आत्ममंथन करना चाहिए कि आखिर वह कर क्या रहा है. कुंभ आत्म परिष्कार का एक अवसर है. कुंभ हमारी सांस्कृतिक यात्रा का एक पड़ाव है. कुंभ हमारी सनातन परंपरा का अद्भुत प्रकल्प है. जिसे देखने, महसूस करनेऔर उस पल को जीने के लिए दुनिया भर से भारतीय और विदेशी प्रयागराज पहुंचते हैं. लोग अपने-अपने हिसाब से वहां तरह-तरह के अनुष्ठान करते हैं. मुंडन करवाना, जनेऊ संस्कार तथा यज्ञ आदि करवाते हैं. कुल मिलाकर एक प्राचीन परंपरा का नाम है कुंभ, जहां पहुंचने वाले व्यक्ति को अपने धर्म प्राण होने का बोध होता है. इसमें दो राय नहीं की आत्मा भी निर्मल होती है. जब हम धर्म कर्म करते हैं तो हृदय को निर्मल करके जीने का भी यत्न करते हैं. का संदेश भी है. हमारा जीवन सत्कर्मों के कुंभ से भरा रहे. पाप का कुंभ वहां फूट जाए और सत्कर्मों का कुंभ लबालब भर जाए. प्रयागराज पर्यटन की जगह नहीं है. वह हृदय को पवित्र करने की जगह है. इस बार महाकुंभ है तो उम्मीद की जाती है कि यह कुंभ पूरे देश के लिए शुभ साबित होगा. पूरी दुनिया का कल्याण हो, ऐसी मंगल कामना भी महाकुंभ कर रहा है. बस अनुरोध यही किया जा सकता है कि हृदय रोगी वहां न जाएँ. जाएँ तो बिल्कुल सुबह डुबकी न लगाएं. इसी कारण कुछ बुजुर्गों की वहां मृत्यु हो चुकी. श्रद्धा अपनी जगह है और स्वास्थ्य अपनी जगह. प्रयागराज का यह सांस्कृतिक महाकुंभ विश्व में भारत की एक बेहतर छवि निकलने का एक सुंदर उपक्रम भी है।