पत्रकारिता की बेदी पर एक और कर्मठ पत्रकार मुकेश चंद्राकर की बली चढ़ गई। गहन नक्सल क्षेत्र बीजापुर में सार्थक पत्रकारिता को अंजाम देते नवजवान पत्रकार की एक रसूखदार ठेकेदार ने नृसंश हत्या कर लाश को अपने ही बाड़े में स्थित सेफ्टी टैंक में दफना दिया गया। जिस क्रूरता से मारा गया वह दिल दहला देने वाला प्रसंग है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शरीर व सर पर गहरी चोट के 15 निशान मिले हैं। बर्बरता की हद तो ये है कि पेट में लीवर के 4 टुकड़े गर्दन की हड्डी और पांच पसलियां टूटी मिली। साथ ही उसका दिल भी फटा हुआ मिला है। पोस्ट मार्टम करने वाले डॉक्टर ने बताया कि उन्होंने उनके 12 सालों के कार्यकाल में ऐसा केस कभी नहीं देखा था। यहीं तक क्रूरता नहीं उससे भी बढ़ कर लाश को ठेकेदार के अवैध कब्जे पर बने कैम्पस में स्थित सेफ्टिक टैंक में डाल कर ऊपर से सीमेंट से उसे चुन दिया गया। सोचिये समाज में अपने आप को समाजसेवी के रूप में अपने पैसे के दम पर प्रचारित करने वाले उस ठेकेदार का दिमाग कितना क्रिमिनल है। जिस सड़क निर्माण की गड़बड़ी की रिपोर्टिंग इस नवजवान पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने की थी, उस सड़क निर्माण में 120 करोड़ की हेराफेरी में अधिकांश राशि काम अधूरा रहने के बाद भी भुगतान हो जाना। हत्या करने की निडरता के साथ योजना को अपने ही घर पर बनाना। उसे योजनाबद्ध तरीके से अंजाम तक पहुंचाना। इस बात की ओर संकेत देती है कि संबंधित ठेकेदार की सिस्टम में कितनी गहरी पैठ रही होगी। दो दिन की गुमसुदगी के बाद भी पुलिस द्वारा खास तवज्जो ना देना। सेफ्टिक टैंक के पास अंतिम मोबाइल लोकेशन ट्रेस होना। वह भी पत्रकारों द्वारा ट्रेस किया जाना। पुलिस के अधिकारियों को शंका जाहिर करते हुए पत्रकारों द्वारा सेफ्टी टैंक की खुदाई करने के आग्रह के बाद भी पुलिस की ना नुकुर। दबाव बनाने के बाद खुदाई करना। पुलिस अधीक्षक द्वारा मुकेश के भाई से अजब गजब अंदाज में बात करना,अनेक संदेह को जन्म दे रहा था। अंतत: खुदाई हुई और पत्रकारों के संदेह की पुष्टि हुई। मुकेश का शव बुरी हालात में उसी सेफ्टी टैंक से निकला, जिसको तोडऩे के लिए पुलिस ना नुकुर कर रही थी। पुलिस ने तीन संदेहियों को हिरासत में लेकर पूछताछ की और पूरी कहानी का खुलासा किया। पुलिस ने बताया कि हत्या 1 जनवरी को देर रात ठेकेदार के बैडमिंटन कोर्ट वाले बाड़े में की गई। पुलिस के अनुसार हत्या की घटना को रितेश चंद्राकर और सुपरवाइजर महेंद्र रामटेके ने अंजाम दिया था। लाश को ठिकाने लगाने का काम दिनेश चंद्राकर ने किया था। यह भी बताया गया कि इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी ठेकेदार सुरेश चंद्राकर को भी थी। पुलिस ने चार लोगों को आरोपी बनाया है। ठेकेदार और उसके भाइयों की संलिप्तता का पता चलते ही प्रशासन ने ठेकेदार के 5 एकड़ जमीन पर अवैध कंस्ट्रक्शन यार्ड के कब्जे पर बुलडोजर चलाकर ध्वस्त करने का काम भी किया है। दूसरे कब्जों को भी चिन्हांकित करके उस पर भी कार्यवाही की बात भी कही गई है। ठेकेदार सुरेश चंद्राकर फरार हो गया था। एसआईटी के प्रयासों से उसे हैदराबाद से गिरफ्तार करना बताया गया है। चारों आरोपी अब पुलिस की गिरफ्त में हैं। इधर इस मामले में जबरदस्त राजनीति भी होने लगी। अपनी सरकार पर आंच आते देख भाजपा सरकार की ओर से गृहमंत्री विजय शर्मा ने पत्रकार वार्ता लेकर यह आरोपित किया कि ठेकेदार सुरेश चंद्राकर कांग्रेस का पदाधिकारी था। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष दीपक बैज से उसके करीबी रिश्ते थे। इसके साथ ही उन्होंने नियुक्ति पत्र के कुछ कागजात भी सबूत के तौर पर पत्रकारों को दिखाए। यह साबित करने का प्रयास भी किया गया कि सुरेश चंद्राकर पदाधिकारी था। आरोप का दीपक बैज ने तत्काल खंडन भी कर दिया था। कहा था कि जो घटना को अंजाम देता है वह पहले अपराधी है। विजय शर्मा ने यह कहते हुए भी कांग्रेस पर बड़ा राजनीतिक हमला किया कि बलौदा बाजार की घटना,सूरजपुर घटना, और बालोद समेत कई बड़ी घटनाओं में कांग्रेस के नेता ही हर अपराध में क्यों संलिप्त पाए जा रहे हैं। सफाई देते हुए उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मैं यह नहीं कहता कि हर कांग्रेसी अपराधी है, लेकिन प्रत्येक बड़े अपराध के पीछे कांग्रेस के नेता ही क्यों निकल रहे हैं। जेल जा रहे हैं।
पत्रकार की नृशंस हत्या के मामले को देश के पत्रकार जगत ने भी बड़ी गंभीरता से लिया है। यह इससे भी साबित होता है कि ना सिर्फ प्रदेश के सभी जिलों व ब्लॉक में प्रदर्शन हुए बल्कि देश की पत्रकारों की दिल्ली के बड़े संगठन गिल्ड व प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने भी प्रदर्शन किया श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। सरकार से कड़ी कार्यवाही करने को दबाव बनाया। यह भी सच्चाई है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस मामले को बड़ी गंभीरता से लिया है। 11 सदस्यीय एसआईटी का गठन करने में तत्परता दिखाई है। उससे कुछ हद तक संतोष हुआ ,लेकिन अनेक प्रश्न अब भी खड़े हुए है। एसआईटी में स्थानीय अधिकारियों को रखना उस बीजापुर के थानेदार को भी रखना जिस पर स्थानीय पत्रकारों ने शंका जाहिर की है। रायपुर मुख्यालय से किसी को रखे जाने की मांग पर विचार नहीं किया जाना। पुलिस अधीक्षक पर भी पत्रकारों ने शंका जाहिर की है। उसे वहां से ना हटाया जाना। कुल मिलाकर इस हत्याकांड में यदि पत्रकारों को व मृतक पत्रकार के परिवार को सही न्याय नहीं मिला। पिछली घटनाओं की तरह इसका भी अंजाम हुआ। मुख्य आरोपी अगर बच निकला तो यह भविष्य की पत्रकारिता के लिए काला समय आने का संकेत होगा।