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भारतीय सीमा की रक्षा की जिम्मेदारी

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9 दिसम्बर की रात चीनी सैनिकों ने भारत के अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर की सीमा को पार कर भारत की सीमा में घुस आए। वैसे तो इस बात की जानकारी अगर सेना किसी को नहीं देती तो शायद किसी को पता ही नहीं चलता। लेकिन यह एक महत्वपूर्ण घटना थी इसलिए सेना ने इस संबंध में एक बयान जारी कर वस्तुस्थिति की जानकारी दी। जानकारी के अनुसार लगभग 200 चीनी सैनिक लाठी और कुछ नुकीले हथियारों के साथ भारतीय सेना में घुस आए थे। यह घुसपैठ अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर 1700 हजार फुट ऊंची चोटी पर पहुंचने के लिए किया था। यह चोटी सामरिक दृष्टि से भारत और चीन के लिए महत्वपूर्ण है। यह घटना लगभग उसी तरह की जिस प्रकार 1999 में पाकिस्तान ने चोरी छिपे कारगिल की पहाडिय़ों पर घुसपैठ कर कब्जा कर लिया था। अच्छी बात यह रही कि आधी रात को भारतीय सैनिकों को इस घुसपैठ की खबर मिल गयी और उन्होंने मुंहतोड़ जवाब देते हुए चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया। इस बात के लिए भारतीय सैनिकों की पीठ थपथपाई जाना चाहिए थी। लेकिन देश में जिस तरह के बयान आ रहे है या मीडिया में जिस तरह की रिपोर्टिंग हो रही है उससे लगता है कि देश के जिम्मेदार लोगों को अपनी सेना पर भरोसा नहीं रहा। संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है। स्वाभाविक है चीन जैसे महत्वपूर्ण पड़ोसी देश की सीमा पर सेना के जवान आपस में भिड़ गए तो इस संबंध में सरकार को स्पष्टीकरण देना चाहिए। यह संसदीय परिपाटी भी है और इसके तहत रक्षामंत्री को संसद में अपना बयान देना था। लेकिन विपक्ष सरकार पर इस तरह आक्रमण कर बैठी मानो भारत अपनी सीमा की रक्षा करने में फेल हो गया। प्रश्नकाल तक चलने नहीं दिया गया। कई बार समझ में नहीं आता कि भारत राष्ट्र की रक्षा करने की जिम्मेदारी क्या केवल केंद्र में शासन करने वाली सरकार की है या केवल सेना की या सभी नागरिकों की? यह समझ से परे है कि राष्ट्रहित के विषयों पर खासकर जिसमें सेना का कोई पक्ष हो और उसकी सफलता की कोई घटना हो उस पर विपक्ष सवाल क्यों उठाता है? बेहतर होता कि संसद में सरकार के साथ विपक्ष बैठकर चर्चा करती और चीनी सैनिकों की इस कार्यवाही की एक स्वर में निंदा करती। देश पर कोई संकट हो तो पूरे देश को एक हो जाना चाहिए। कई बार राजनीति में विरोधी का विरोध करते-करते देश का विरोध करने लगते है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है डोकलाम हो, गलवान हो या सर्जिकल स्ट्राइक। सेना को कटघरे में खड़े करना एक विपक्ष की आदत बनती जा रही है।