भारत की संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में चुनाव के समय राजनीतिक दलों के बीच जमकर आरोप-प्रत्यारोप होता है। एक बार सरकार बन जाए तो फिर पक्ष और विपक्ष मिलकर राज्य के लिए कार्य करते। यही अवधारणा लोकतंत्र की है। समय के साथ लोकतांत्रिक प्रणाली में अनेक कमजोरी आईं, जिनमें से एक राजनीतिक दलों के बीच में परस्पर बैर-भाव की व्याप्ति है। अब राजनीति केवल चुनाव के समय नहीं होती बल्कि पूरे 5 साल सत्ता और विपक्ष राजनीति में लीन रहती है। अगर सरकार कुछ राज्य के हित में भी काम कर रही है तो विपक्ष केवल उसका विरोध करता है। विपक्ष ऐसा करे तो भी समझ में आता है लेकिन सरकार चलाने वाली पार्टी भी जनता के कल्याण और राज्य के विकास करने के स्थान पर राजनीति करने लग जाए तो क्या होगा? छत्तीसगढ़ की राजधानी में निर्माणाधीन (भूपेश सरकार के गठन के बाद आधे अधूरे पड़े) स्काईवॉक को लेकर राजनीति शुरु हो गयी है। वैसे तो चुनाव के पहले ही स्काईवॉक की उपयोगिता को लेकर सवाल खड़े होने लगे है। लेकिन फिर भी कुल बजट का लगभग आधा पैसा 36 करोड़ रुपए खर्च कर जयस्तंभ चौक से लेकर अंबेडकर अस्पताल तक एक ढांचा खड़ा हो चुका था। सरकार बदलने के बाद स्काईवॉक के निर्माण कार्य को रोक दिया गया। अब 4 साल बाद इसे पूरा करना भी चाहे तो एक ओर इसके निर्माण की लागत बढ़ गई है तो दूसरी ओर जो पहले बना था वह जर्जर हो गया है। इसका भविष्य क्या होगा इसकी एक समिति भी बनी थी। लोगों ने सुझाव भी दिए थे लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका। अब अचानक कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं ने इसके निर्माण में अनियमितता के आंकड़े प्रस्तुत कर इसकी जांच करने की मांग कर दी है और सरकार ने इसे मान भी लिया है। अब सरकारी एजेंसियां भ्रष्टाचार की जांच कैसे करती है और इसमें देरी कितनी लगती है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। स्काईवॉक को लेकर केवल राजनीति हो रही है। जनता की गाढ़ी कमाई से जो हिस्सा बनकर तैयार हुआ है उसके उपयोग की जवाबदेही किसी के पास नहीं है। इसी तरह की राजनीति प्रदेश में आरक्षण को लेकर हो रही है। प्रदेश का बेरोजगार युवा कई वर्षों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटा हुआ है। कुछ परीक्षाएं स्थगित है तो कुछ परीक्षाओं के परिणाम की प्रतीक्षा है। आरक्षण विवाद को लेकर मामला अटका हुआ है। राज्य चलाने के लिए सरकार को रास्ता निकालना चाहिए। मामले को उलझाकर उस राजनीति करें यह ठीक नहीं है।