Home बाबू भैया की कलम से जनहित से भटकते राजनैतिक दल बनाम आरोप प्रत्यारोपों की राजनीति

जनहित से भटकते राजनैतिक दल बनाम आरोप प्रत्यारोपों की राजनीति

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किसी योजना को अपनी उपयोगिता को साबित करने के पहले ही दम तोडऩा पड़ गया हो, यह देखना हो तो रायपुर राजधानी का स्काई वाक देखने जरूर आना चाहिए। वैसे छोटी मोटी किसी सामान्य योजना की बात हम नहीं कर रहे हैं, हम स्काई वाक जैसी तात्कालिक भाजपा सरकार की महत्वकांक्षी योजना की बात कर रहे हैं। जनता के विरोध व इसकी उपयोगिता पर उठ रहे विरोध के बाद भी तत्कालीन भाजपा सरकार की इसे पूरा करने की अजीबो गरीब जिद्द, खास कर लोकनिर्माण विभाग के मंत्री का इस योजना से लगाव देख कर लोग तब अचंभे में थे। मंत्री अपनी कल्पना को पूरी शिद्दत से साकार करना चाहते थे। चुनाव नजदीक आने पर निर्माण की जल्दबाजी देख कर ही लोगों को इस योजना में कुछ गड़बडी नजर आने लगी थी। लोग अपनी चर्चाओं में इस बात को उठाने लगे थे कि इस शहर को आखिर इसकी जरूरत या औचित्य क्या है ? लोग जानना चाहते थे कि आखिर सिर्फ पैदल चलने के लिए लोग इस ऊंचे स्काई वाक पर चढ़ेंगे ही क्यूं? जिन लोगों को वहीं वहीं बाजार में घूमना होगा वो यह उतरने चढऩे की कवायद करेगा क्यों? जनता के बीच चल रही इस उहापोह की स्थिति को तब कांग्रेस ने राजनीति के तहत हाथों हाथ उठाया और अनेक प्रश्नों के साथ इस पूरे प्रोजेक्ट को ही भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार का प्रतीक बता दिया। तब कांग्रेस ने भाजपा सरकार के खिलाफ़ इस मुद्दे पर जम कर राजनीति की थी। 2018 में कांग्रेस की सरकार आने के बाद यह इस सरकार की गले की फांस बन गई। सरकार भले ही चाहती हो कि जनता का करोड़ों का यह खर्च बेकार नहीं जाना चाहिए,लेकिन राजनीति की तात्कालिक चालें अब खुद के सामने प्रश्न बन कर खड़ी हो गई। इस निगोड़ी स्काई वाक का अब करें तो करें क्या? लगता तो यही है कि सरकार स्वयं से इस पर कोई निर्णय नहीं लेना चाहती। होना यह चाहिए था कि विरोध किया था तो तत्काल इसको रिजेक्ट करने का निर्णय लेकर ढांचा तोड़ दिया जाता। ऐसा करने का नुकसान कांग्रेस सरकार को होता। मां गया कि जब तक यह ढांचा खड़ा हुआ है, गाहे बगाहे इसे भाजपा शासन काल के भ्रष्टाचार का स्मारक बताकर उसे बदनाम करने का मौका होगा। यह बड़ा फायदा है। और इसी कारण तीन बार समिति निर्माण के बाद भी किसी नतीजे तक नहीं पहुंचना, वर्तमान सरकार की राजनीतिक रूप से चुनावी रणनीति का एक हिस्सा बन कर रह गया है। चुनाव करीब आते आते कांग्रेस सरकार ने हमला शुरू भी कर दिया है। चार साल बाद सरकार इस मुकाम तक आखिर पहुंच ही गई कि इस निर्माण में नियमों का पालन नहीं किया गया है। प्रथम दृष्टया अनियमितताएं साफ दिखने लगी हैं। मामला ईओडब्ल्यू व एसीबी को जांच के लिए सौंप दिया गया है। भाजपा को लग रहा है कि यह हमारी इडी के खौफ का जवाब इनकी एजेंसियों द्वारा दिए जाने का प्रयोजन किया जा रहा है। उसने सवाल खड़ा किया कि यह राजनैतिक बदला नहीं तो और क्या है? भाजपा सरकार के तात्कालिक लोक निर्माण मंत्री ने पत्र वार्ता लेकर जवाब देने के प्रयास में पलटवार करते हुए, उपरोक्त आरोप मढ दिया। कांग्रेस द्वारा उठाए गए तीन बिंदुओं के प्रश्न का साफ जवाब नहीं दिया। यह सलाह दे दी कि आपकी एजेंसी से नहीं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज से यानी हमारे केंद्र सरकार के समानता वाली किसी एजेंसी से जांच करा लें , हम डरते नहीं हैं। बयान ने जनता के बीच चर्चा का यह मौका दिया कि यहाँ की एजेंसी से डरते हैं। राज्य कि जनता ने इस बयान का तो यही सीधा अर्थ लगाया है। बहरहाल यह तो शरुवात है। चुनाव और नजदीक आते आते ना जाने कितने दांवपेंच खेले जाएंगे। मरहूम शायर राहत इंदौरी ने सही लिखा कि
सरहदों पर बहुत तनाव है क्या ?
जरा पता करो चुनाव हैं क्या ?
देश में चुनाव जीतने की कवायद में राजनैतिक दल किसी भी हद तक जाने लगे हैं। यह जांच तो बहुत ही छोटी सी बात है। प्रजातंत्र के लिए यह घातक है , सभी जानते हैं। उसके बावजूद चुनावी वैतरणी पार करने कुछ भी करने की लालच कोई नहीं छोड़ पा रहा है। छोटी छोटी बातें जनहित से बड़े मुद्दे बन रहीं हैं। सबकी जानकारी है कि सिस्टम ही गड़बड़ है। इसी सिस्टम पर राजकाज चलना मजबूरी है। सिस्टम को सुधारने की बजाय एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप प्रत्यारोप लगाते हैं।