प्रदेश में पिछले दिनों नारायणपुर जिले में इसाई धर्म मतांतरित और मूल आदिवासी समूह के बीच में हिंसक झड़प हुई थी। दरअसल बस्तर में इसाई धर्म में परिवर्तन हुए जनजाति परिवारों को लेकर स्थानीय जनजातीय समाज नारा•ा है। उनका आरोप है कि इसाई धर्म अपनाए जनजातीय धीरे-धीरे अपनी परंपरा और संस्कृति को त्याग देते है। जनजातीय समाज के लिए उनकी संस्कृति ही मुख्य पहचान है। इस घटना के बाद एक तरफ राजनीति शुरु हो गयी है तो दूसरी तरफ चुनावी वर्ष में संभावित नुकसान को देखते हुए शासन-प्रशासन भी इस तरह की घटना को रोकने की तैयारी कर रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में शासन ने 33 में से 31 जिलों में कलेक्टरों को किसी भी तरह के साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाडऩे की कोशिश करने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्यवाही करने का अधिकार दिया है। सरकार का मानना है कि उनके पास इस तरह की जानकारी मिली है कि प्रदेश में साम्प्रदायिक भावना बिगाडऩे वाले तत्व सक्रिय है। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लग जाने के बाद कलेक्टर के पास अधिकार होगा कि वह किसी भी संदेही को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर सकता है। ऐसी स्थिति में गिरफ्तार किए हुए व्यक्ति को बिना जमानत 12 महीने तक जेल में बदी बनाया जा सकता है। इसका मतलब है कि 2 साल पहले सुकमा के पुलिस अधीक्षक सुनील शर्मा ने जो पत्र लिखकर प्रशासन को आगाह किया था वह सही था। इसका दूसरा अर्थ यह है कि शासन ने उक्त मामले पर गंभीरता से कोई कदम नहीं उठाया जिसकी परिणीति हाल के हिंसक घटनाओं के रुप में देखने को मिल रही है। सवाल यह भी है कि इस स्थिति के लिए दोषी कौन है? मामला इसाई धर्मान्तरण से जुड़ा हुआ है। जबकि प्रदेश के मंत्री कहते है कि बस्तर संभाग में एक भी धर्मान्तरण का मामला नहीं है। अगर ऐसा है तो फिर बस्तर संभाग में साम्प्रदायिक सौहर्द किन समुदाय के बीच में बिगडऩे का खतरा है। छत्तीसगढ़ जातीय एवं साम्प्रदायिक सद्भाव का गढ़ है। यहां कभी साम्प्रदायिक दंगों वाली स्थिति नहीं बनी। लेकिन पिछले 4 वर्षों में यह वातावरण क्यों बिगड़ रहा है, इसका कारण जानना जरुरी है। अगर शासन को लगता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा देने से माहौल बदल जाएगा तो यह गलत सोच है। बस्तर संभाग की मूल समस्या इसाई धर्म में परिवर्तन कराने की है। इसके लिए आदिवासी समाज और मिशनरी के जनप्रतिनिधियों से चर्चा कर समाधान निकालने की जरुरत है।