छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र 1 मार्च से प्रारंभ होगा और 24 मार्च तक चलेगा। इस दौरान कुल 14 बैठकें होंगी, इसकी अधिसूचना जारी हो गई है। भूपेश बघेल सरकार के लिए चुनाव से पहले का आखिरी बजट इस सत्र में पेश किया जाएगा। बजट को पारित कराना सरकार का मुख्य कार्य होगा। लेकिन चुनाव का माहौल जिस तरह बन रहा है उससे विपक्ष इस सत्र में सरकार को घेरने का भरपूर प्रयास करेगा और सरकार भी आगामी चुनाव को देखते हुए लोक-लुभावना बजट प्रस्तुत करेगी। वैसे तो विधानसभा के 3 प्रमुख सत्र होते है और संविधान में कार्यवाही की एक प्रक्रिया है जिसमें प्रश्नकाल, शून्यकाल के बाद ध्यानाकर्षण के माध्यम से प्रदेश के महत्वपूर्ण विषयों की ओर सरकार का ध्यान आकर्षक करना होता है। समय के साथ विधानसभा के सत्र की अवधि छोटी होती जा रही है और निर्धारित समय से पहले ही सत्र समाप्त हो रहे है। सदन की कार्यवाही भी आधे दिन से ज्यादा समय स्थगित हो रहे है। बजट सत्र में सरकार की मजबूरी है कि उसे आगामी वित्त वर्ष के लिए बजट पारित कराना पड़ता है। इस लिहाज से आगामी सत्र की बैठकें मात्र 14 दिन की होंगी तो इसमें बजट पर चर्चा और विभागों की मांगों पर विस्तार से चर्चा नहीं हो पाएगी। ऐसा लगता है कि आगामी सत्र की गरमाहट का आभास सरकार को हो गया है। आगामी सत्र में विपक्ष जहां आरक्षण, धर्मान्तरण, कानून व्यवस्था की बदहाली और प्रदेश में अवरुद्ध विकास कार्य के साथ भ्रष्टाचार के मामलों पर सरकार को घेरेगा। वहीं विधानसभा द्वारा पारित आरक्षण विधेयक पर राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षर नहीं किए जाने के मामले पर सत्ता पक्ष भी आक्रमक रहेगा। जैसे भी हो सदन में प्रश्नकाल और ध्यानाकर्षण जैसे महत्वपूर्ण कार्य अवश्य होने चाहिए जिससे जनता की समस्या की चर्चा विधानसभा में हो सके। विपक्ष को भी चाहिए कि सत्र को अधिकाधिक चलाकर विभिन्न माध्यमों से चर्चा के द्वारा सरकार को घेरे। पिछले 3 सत्रों के दौरान यह देखा जा रहा है कि सत्ता पक्ष भी विपक्ष पर टिप्पणी करके माहौल को गरमाता है और उकसा कर उन्हें गर्भगृह में आने पर मजबूर करता है। छत्तीसगढ़ विधानसभा की विगत 22 वर्षों से यह विशेषता रही है कि विपक्ष गर्भगृह में आकर कम प्रदर्शन करता है। ऐसा करने पर नियमानुसार स्वमेव निलंबित हो जाते है। यही कारण है कि प्रदेश की विधानसभा में संसदीय कार्य सुचारु रुप से होते रहे है। भारतीय जनता पार्टी के केवल 14 विधायक ही सदन में प्रतिनिधित्व करते है और सत्ता पक्ष के 71 विधायक है। ऐसी स्थिति में भी सत्ता पक्ष को घेरने और जनहित के मुद्दों को सदन में उठाने में विपक्ष भी सक्रिय रहता है, यही संसदीय प्रणाली की विशेषता है।