भारत में हर दस साल में जनगणना की जाती है। अंतिम जनगणना 2011 में की गई थी, इस हिसाब से 2021 में अगली जनगणना होनी थी। जनगणना की शुरुआत एक साल पहले से हो जाती है। पूरे देश में मकान चिन्हित किए जाते है, उनको संख्या दे दी जाती है और फिर घर-घर जाकर एक सारणी में परिवार के सदस्यों की विभिन्न जानकारियों को एकत्रित किया जाता है। यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जो अनुच्छेद 246 के तहत संघ का विषय है। जनगणना का कार्य संचालन गृह मंत्रालय के तहत महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त द्वारा किया जाता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर नई जनगणना नहीं होने के कारण सरकारी योजनाओं के पात्रों का चयन करने में हो रही समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया है। यह बात सही है कि अगर जनगणना का कार्य प्रारंभ हो जाता तो अब तक जनगणना की अनंतिम आंकड़े मिल गए होते लेकिन 2020 में कोविड-19 संक्रमण के चलते देश में जनगणना की कार्यवाही पर रोक लग गई है। ऐसा नहीं है कि जनगणना नहीं होगी, हालात को देखते हुए कुछ विलंब जरुर होगा। इस बीच जनगणना को लेकर कई विवाद और बहस भी देश में होते रहे है। एक महत्वपूर्ण बहस जनजातीय समाज के धर्म को लेकर है। 2011 तक जनगणना की सारणी में किसी धर्म को नहीं मानने का भी स्तंभ होता था। पिछले कुछ जनगणनाओं के दौरान जनजातीय समाज अपने लिए धर्म का अलग कॉलम जोडऩे की मांग कर रहा है। देश में बहस चल रही है कि आदिवासी हिन्दू नहीं है इसलिए आदिवासियों के लिए अलग धर्म का प्रावधान होना चाहिए। पहली बात तो यह कि भारत में जनगणना की अवधारणा अंग्रेज लेकर आए और उन्होंने फूट डालो और राज करो नीति के तहत समाज में धर्म जाति और लिंग के आधार पर भेद करने का कार्य जनगणना के माध्यम से किया। 1881 में देश में पहली जनगणना हुई थी। शुरुआती जनगणना में जनजातीय समाज को वनवासी कहते हुए हिन्दू धर्म में ही शामिल किया था लेकिन बाद में उन्होंने आदिवासी शब्द का इस्तेमाल शुरु किया। स्वतंत्र भारत में भी जनगणना में देश के अंदर कुछ ही धर्म को मान्यता दी गई। जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई प्रमुख थे। भारत में तो बौद्ध, जैन एवं देश के विभिन्न हिस्सों में लोकप्रिय पंथों को भी हिन्दू धर्म का हिस्सा माना गया। भारत ऐतिहासिक दृष्टि से हिन्दुस्तान के रुप में पहचाना गया क्योंकि सिन्धु नदी के पार जो संस्कृति है वह हिन्दू संस्कृति है। हिन्दू शब्द भारत की भौगोलिक और सांस्कृतिक पहचान है। भारतीय धर्म को सनातन धर्म कहते है जिसकी कोई एक व्याख्या नहीं है। समय-समय पर सनातन धर्म के अंदर से अनेक पंथ और सम्प्रदाय जन्म लिए। वैष्णव और शैव के भी अनेक उपभेद हुए। भारत में वाममार्गी सम्प्रदायों का भी बड़ा प्रभाव रहा। जिसमें कपालिक, कालमुख, शाक्त, सूर्य आदि शामिल है। दक्षिण भारत में भी लिंगायत उत्तर में कश्मीर शैव जैसे सम्प्रदाय प्रकट हुए। लेकिन भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था में रहन-सहन, रस्म, तीज-त्यौहार और मान्यताओं में एकरुपता रही है। यही एकरुपता भारत के लोगों को हिन्दू की पहचान दिलाता है। जनगणना शुरु हो इसके पहले ही देश में जनजातीय समाज हिन्दू नहीं है ऐसी मान्यता के साथ संगठनों ने अपनी मांग शुरु कर दी। भारत में जनजातीय समाज का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक अनेक राजाओं ने शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। छत्तीसगढ़ में भी अनेक गोंड राजा हुए, इन शासकों ने अनेक देवालय और धर्म स्थानों का निर्माण करवाया जो शैव, वैष्णव व शक्ति की उपासना से संबंधित है। छत्तीसगढ़ का ग्राम्य जीवन और वन्य जीवन के रहन-सहन तीज-त्यौहारों एवं सामाजिक रस्मों में भी समानता देखने को मिलती है। भारत में विविधताएं है, इन विविधताओं का सम्मान है,हर रंग के फूल भारत को सुंदर गुलदस्ता बनाते है। लेकिन इन्हें अलग-अलग करने की कोशिशें भारत की एकता और अखंडता के लिए सही नहीं होगा।