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पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून

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गुटनबर्ग ने जब छापा खाने का आविष्कार किया था, तब उसने भी यह कल्पना नहीं की रही होगी कि दुनिया में बड़ी-बड़ी क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में यह प्रिटिंग मशीन कारगर साबित होगी। गांव-गांव तक लोगों को सूचना देने, देशभक्ति की भावना जागृत करने और अंग्रेजी राज की समस्याओं को पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से पहुंचाकर देश में जनता को आंदोलित कर दिया था। स्वतंत्रता के बाद जैसे-जैसे साक्षारता बढ़ी, शहरों का विकास हुआ, वैसे-वैसे समाचार पत्र-पत्रिकाओं की संख्या बढऩे लगी। समय के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने कम्प्यूटर, इंटरनेट और मोबाईल का आविष्कार किया और सूचना पहुंचाने के माध्यम में भी बदलाव आने लगा। आज हम सूचना क्रांति के युग में जी रहे हैं। पलक झपकते सूचना दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंच जाती है। इन्हीं सूचनाओं में कुछ सही और कुछ गलत होती हैं, जिनसे हिंसा, उपद्रव और वैमनस्यता को भी बढ़ावा मिलता है। पत्रकारिता अब मीडिया जगत कहलाने लगा है। मीडिया में किसी के खिलाफ खासकर सरकारी तंत्र के खिलाफ समाचार प्रकाशित या प्रसारित हो जाए तो इससे बवाल मच जाता है। सच के प्रकाशन को रोकने के लिए सरकारी और निजी तंत्र साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल करता है। इसका एक पक्ष यह भी है कि मीडिया जगत में झूठ फैलाने के नाम पर इसी साम, दाम, दंड, भेद के जरिए पैसे की उगाही भी करता है। इस समीकरण के दोनों पक्ष में प्रताडि़त होते हैं। जो सच्चाई से पत्रकारिता करता है या करना चाहता है और जो सच और ईमान के साथ काम करना चाहते हैं दोनों ही भयभीत हैं। समय की मांग को देखते हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा में मीडिया कर्मी सुरक्षा विधेयक पारित किया गया है। राज्यपाल की स्वीकृति के बाद जब इसके नियम राजपत्र में प्रकाशित हो जाएंगे तो सच्चाई से जनता के लिए सूचनाएं देने और संकलित करने के काम में लगे मीडिया कर्मी को सुरक्षा मिल सकेगी। इस कानून की सबसे बड़ी खामी यह है कि पत्रकार को परिभाषित करना बहुत कठिन है। मीडिया कर्मी का पंजीकरण तो होगा लेकिन उनमें जो शर्तें हैं, उनका पालन करना छोटे संस्थानों, ग्रामीण अंचलों व क्षेत्रीय स्तर पर काम करने वाले मीडिया कर्मियों का पंजीकरण मुश्किल होगा। यह कानून पारित होने से पहले भी पत्रकारों की सुरक्षा की व्यवस्था थी। वह भी अधिकारियों के हाथों में थी। इस कानून में भी कानून को पालन कराने वाले अधिकारी ही है। इसलिए कितना परिवर्तन होगा यह कहना मुश्किल है। यह देखने वाली बात होगी कि कानून सच्चाई और ईमानदारी को बढ़ावा देने में मदद करेगा या इस कानून का दुरुपयोग करने वालों की ताकत को और बढ़ाएगा।