देश में वन और पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले 8 प्रतिशत से अधिक जनजाति समुदाय अपनी संस्कृति की विशेषता के लिए जाने जाते है। प्रकृति प्रेमी यह समाज आधुनिक विकास की परिभाषा से अभी भी अछुता है, हालाकि शिक्षा प्राप्त कर नौकरी करने समाज के युवा जब शहरों और महानगरों में बस जाते है तो उनकी संस्कृति में बदलाव आने लगता है। दूसरी ओर अंग्रेज हुकुमत के समय से इसाई मिश्नरियों ने सबसे ज्यादा जनजातिय क्षेत्रों में अपने धर्म का प्रचार किया और धर्मांतरण करने में सफल रहे। संविधान में भी अनुसुचित जनजातिय की विशिष्ट संस्कृति को अनुच्छेद 342 में परिभाषित किया। इन व्यवस्थाओं के अनुसार अगर कोई अनुसुचित जाति वर्ग का व्यक्ति या पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तित कर अन्य धर्म को अपना लेता है तो उसे अनुसुचित जाति वर्ग के अंतर्गत आरक्षण सहित अन्य लाभ से वंचित कर दिया जाता है किन्तु यह व्यवस्था अनुसुचित जनजातिय वर्ग के व्यक्ति के लागू नहीं की गई। कोई अनुसुचित जनजातिय वर्ग का व्यक्ति अगर अपना धर्म परिवर्तित कर ले तो भी उसे आरक्षण का लाभ मिलेगा। पिछले कुछ वर्षों में जनजाति समाज के भीतर मतांत्रित जनजातियों से मतभेद बढ़ा है। छत्तीसगढ़ में पिछले दो-ढाई वर्षों से इसाई धर्म अपनाने वाले जनजाति परिवारों के विरूद्ध परंपरा को मानने वाल जनजाति समाज ने मोर्चा खोल रखा है। अपनी परंपरा को मानने वाले आदिवासी समाज का आरोप है कि जो परिवार अपना धर्म परिवर्तन कर लेते है वो धीरे-धीरे अपनी मूल परंपरा, संस्कृति और धर्म को छोड़ देते है। ऐसी स्थिति में वे जनजातिय वर्ग का हिस्सा नहीं रह जाते। यह मामला पिछले दिनों सवोच्च न्यायालय भी गया। झारखंड में ऐसे आदिवासियों को जनजाति प्रमाण-पत्र नहीं देने का निर्णय लिय गया जिन्होंने धर्म परिवर्तन कर इसाई या अन्य धर्म को अपना लिया है। इस संबंध में 2006 में सवोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को आधार बनाया गया था। अंजन कुमार बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सांस्कृतिक और धार्मिक संस्कृति आदिवासियों की पहचान है जिनका पालन नहीं करने वालों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इस निर्णय के बाद यह मामला फिर से सवोच्च न्यायालय गया जहां सर्वोच्च न्यायालय ने जाति प्रमाण-पत्र देने के लिए कुछ परीक्षण बनाए जाने के सवाल पर विचार किया हालाकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे परीक्षण को अंतिम सत्य नहीं माना। इन मामलों के बीच जनजातिय समाज ने भी धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण का लाभ नहीं देने की मांग शुरू कर दी है। इसे डिलिस्टिग कहा जा रहा है। प्रदेश की राजधानी रायपुर में बीते रविवार एक महारैली का आयोजन किया गया था जिसमें हजारों की संख्या में जनजातिय हिस्सा लेने पहुंचे। इसमें केन्द्र सरकार से धर्मांतरित हुए आदिवासियों को आरक्षण नहीं देने संविधान के अनुच्छेद 342 में संशोधन की मांग कर रहे है। ऐसा लगता है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव के पहले डिलिस्टिग का मुद्दा और गरमाएगा। प्रदेश में पहले से ही धर्मांतरण को लेकर बवाल मचा हुआ है। पेसा कानून, वनाधिकार पट्टा के साथ ये प्रश्न भी विधानसभा चुनाव के दौरान पूछे जाएंगे।