Home इन दिनों राजनीति में शराब घोटाले की धमक

राजनीति में शराब घोटाले की धमक

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भारतीय जनता पार्टी पिछले एक साल से सत्तारुढ़ कांग्रेस सरकार पर ईडी और सीडी के आरोपों में फंसी होने के आरोप लगा रही है। इधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पार्टी के प्रवक्ता प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के द्वारा पिछले दो वर्षों से की जा रही कार्यवाही को राजनीति से प्रेरित बता रहे है। एक बात समझने की है कि ईडी जांच करने वाली संस्था नहीं है। सीबीआई और आयकर विभाग छापा मारकर आर्थिक एवं अन्य अपराधों की जांच करते है और इस दौरान संबंधित दस्तावेज जप्त करते है। इन जप्त दस्तावेजों में विदेशों में धन के अवैध लेन-देन की कोई बात हो तब ईडी अपना काम शुरु करता है। प्रदेश में कोयला के परिवहन में अवैध कमाई और उस कमाई की अफरा-तफरी को लेकर ईडी ने उच्च अधिकारियों, कारोबारियों सहित बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार कर रखा है। अब पिछले कुछ दिनों से शराब के अवैध कारोबार से जुड़े लोगों को गिरफ्तार कर रहा है। इस सिलसिले में रायपुर नगर निगम के महापौर के भाई अनवर ढेबर को जब ईडी ने गिरफ्तार कर न्यायालय में 14 दिन की रिमांड मांगने के लिए जो आवेदन प्रस्तुत किया और उसके बाद विज्ञप्ति जारी की उससे शराब के अवैध धंधों से 2 हजार करोड़़ रुपए से अधिक की गड़बड़ी का दावा किया गया है। ईडी ने बकायदा किस प्रकार तीन तरह से शराब के कारोबार में अवैध वसूली और कारोबार का सिंडीकेट बनाकर पैसे की लूट की गई, इसकी जानकारी विज्ञप्ति में दी गई है। इस प्रकरण के बाद राजनीति गरमा गई है। भाजपा सरकार पर हमलावर है तो सरकार 2 हजार करोड़ रुपए के घोटाले को तथ्यहीन बता रही है। वैसे तो कांग्रेस की ओर से जो तर्क दिए जा रहे है वे ज्यादा गंभीर नहीं लगते। लेकिन इस बात के कयास लगने शुरु गए है कि ईडी की कार्यवाही से जो घोटाले सामने आ रहे है उनका चुनाव पर क्या असर होगा? एक बात देखने में आती है कि चुनाव में विकास और भ्रष्टाचार तब तक कोई मुद्दा नहीं बनते जब तक वह जनता के जीवन को प्रभावित न करें। इसलिए कोयला मामले में ईडी का कार्यवाही का उतना असर नहीं होगा लेकिन शराब के घोटाले को लेकर जो तथ्य सामने आए है वे चुनाव को अवश्य प्रभावित करेंगे। वह इसलिए क्योंकि मामला शराब से जुड़ा हुआ है और प्रदेश में शराबबंदी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में शराबबंदी का वादा किया था लेकिन अब तक शराबबंदी नहीं की जा सकी। सरकार यह निर्णय नहीं लेने के पीछे तर्क दे रही है कि अचानक शराबबंदी से लोगों को तकलीफ हो सकती है। इधर जो तथ्य ईडी के द्वारा सामने रखे गए है उससे लगता है कि जो कमाई शराब के कारोबार से हो रही थी उसे बनाए रखने के लिए शराबबंदी का निर्णय नहीं लिया गया। दूसरी ओर बिना आबकारी कर पटाए शराब के अवैध कारोबार से भी सैकड़ों करोड़ रुपए कमाए गए। इससे शराब पीने वाले और शराबबंदी की मांग करने वाले दोनों पक्ष नाराज होंगे। यह नाराजगी अगले चुनाव में कांग्रेस सरकार पर भारी पड़ सकती है।