तुम हमारे राम को छीनने का प्रयास करोगे तो हम तुम्हारे हरेली, कांचा, भंवरा, गेडी, के मुद्दे को छोड़ेंगे क्या ? कभी नहीं। यही संदेश इस बार मुख्यमन्त्री भूपेश बघेल द्वारा हर वर्ष अपने सरकारी निवास पर मनाए जाने वाले हरेली त्योहार को भाजपा ने भी मनाकर दिया है। प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने यह तो बिल्कुल ही सही कहा है कि हरेली त्योहार कोई भूपेश बघेल के आने के बाद ही छतीसगढ़ में नहीं मनाया जाने लगा। यह तो हमारी पारम्परिक त्योहार मनाने की सामान्य प्रक्रिया है और सदियों से मनाया जा रहा है। यह नहीं बताया गया कि अगर ऐसा ही है तो इससे पहले भाजपा ने अपने संगठन के द्वारा इसका कोई सार्वजनिक आयोजन क्यों नही किया, जो अब किया जा रहा है। बात साफ है , जिस राम को भाजपा अनेकों साल पहले से अपने राजनैतिक दायरे में लाकर राजनीति की नई सोच से काम कर रही है। सफलता भी मिली है। लगातार मात से कांग्रेस को राम को अपने पाले में करने की समझ आई। कांग्रेस ने शनै: शनै: श्री राम की राजनीति को अपने तरफ मोडऩे के लिए कौशल्या माता का भव्य मंदिर निर्माण,रामवन गमन पथ व उसके क्षेत्र में आने वाले राम द्वारा पवित्र किये गए स्थलों को सजाने ,प्रभु श्री राम की भव्य मूर्तियों का निर्माण करने,शिवरीनारायण में शबरी माता का मंदिर व प्रतीक बनवाने जैसा महत्वपूर्ण विषय हाथ में लिए। युद्ध गति से काम भी लगभग पूरा कर लिया। रही सही कसर रायगढ़ में भव्य रामायण महोत्सव करके पूरी कर दी।अब इस रामसेवा से लगता है प्रभु श्रीराम भी प्रभावित ही हुए होंगे। कांग्रेस तो यही मान कर ही चल रही है, पआशीर्वाद ही दिया होगा ,तभी तो राम के अनुयायी की तरह कांग्रेस अपने प्रचार में सफल हो रही है कि राम हमारे भांजे हैं। मां कौशल्या हमारी छतीसगढ़ महतारी के बेटी हैं। हमारे हैं जय सियाराम।
इधर जय सियाराम और उधर जयश्रीराम यानि राम भी राजनैतिक रूप से छतीसगढ़ में दो स्वरूपों में विभाजित से हो गये। अब राम को आप इस तरीके से अपनी ओर खिंचेंगें,तो आपका एजेंडा भी छीनने का प्रयास तो होगा ही । इस हाथ ले इस हाथ दे वाली शैली भाजपा ने भी अपना ली। हरेली में एक तरफ मुख्यमंत्री निवास पर हरेली की धूम थी तो दूसरी तरफ भाजपा ने भी हरेली पर धूम मचा दी। अरुण साव,बृजमोहन अग्रवाल,संजय श्रीवास्तव के साथ अनेक भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने गेड़ी व भंवरा का भरपूर आनंद लेकर हरेली के इस आनंद को आत्मसात किया। भाजपा ने सिर्फ कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में ही नहीं बल्कि तेलीबांधा तालाब के पास,पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में मथुरा नगर में भी कार्यक्रम आयोजित किये। मथुरा नगर के डुमर तालाब में तो अरुण साव ने गेड़ी चढऩे का आनंद लिया। बृजमोहन अग्रवाल,जयंती पटेल, और भी बड़े नेता शामिल हुए। चर्चा में है कि आखिरकार कांग्रेस ने भाजपा नेताओं को संस्कृति का प्रदर्शन करने पर अपने तरीकों से मजबूर कर ही दिया। जिस तरह कांग्रेस ने राम को अपने पाले में किया है। भाजपा ने भी कमर कस कर उसका जवाब उसी की शैली में देने की कोशिश में की है। हालांकि भाजपा ने यह त्योहार राजनीति की छांव में पहली बार ही मनाया हो लेकिन कांग्रेस को कहना पड़ा कि भाजपा, कांग्रेस के भूपेश बघेल के असली पन की नकल कर रही है। नकल नकल ही होती है। अब राजनीति में राम असल में किसके हैं ,और छत्तीसगढिय़ा संस्कृति के रक्षक कौन है ? यह जनता के विवेक पर ही छोडऩा होगा। चुनाव सर पर हैं ,दोनों दल अपने अपने आड़े तिरछे जो भी हो, दांव खेल रहे हैं। जनता में चर्चा इस बात की चल रही है कि कुछ भी हो पर भूपेश बघेल का छत्तीसगढिय़ा चेहरा जिस तरह उनकी ग्रामीण योजनाओं ने व संस्कृति की रक्षक के रूप में कांग्रेस के प्रचार तंत्र ने बनाया है उसका कोई तगड़ा तोड़ अभी हाल तो भाजपा के पास दिखाई नहीं देता। बाजी पलटना है तो ईडी-आयकर बाद के लिए छोड़ कर , उन जमीनी स्थानीय बातों पर जोर देना पड़ेगा जिसका महत्व जनोन्मुखी हो। जनता के पेट की बात करनी होगी हंगामा खड़ा करने से बात नहीं बनेगी। समाधान पर बात होना चाहिए।