सरगुजा के पूर्व महाराजा व वर्तमान में छतीसगढ़ के उप मुख्यमन्त्री टीएस सिंहदेव (बाबा साहेब) की पहचान ही अपनी सच्चाई ,बेबाक विचार शैली,व सीधी सपाट बयानबाजी की है। वे कभी भी अपनी विवेक का इस्तेमाल करते हुए हमेशा दिल से बोलते हैं। दिल में कुछ और जबान पर कुछ और यह उनकी मर्यादा के खिलाफ है। राजनीति में जितनी , जब जरूरत हो उतनी ही राजनैतिक भाषा का इस्तेमाल करते हैं। सदैव सीधी सपाट बात कहने की कोशिश उनकी रहती है। उन्हें अपने अस्तित्व व मर्यादा का हमेशा ख्याल रहता है। उसके लिये वो कुछ भी कर सकते हैं। चंद मिनटों में वे राजनीति को भी छोड़ सकते हैं। पद तो अहम तो कभी उनको छू भी नहीं पाता। महाराजा वाली आन- बान- शान, वे प्रजातंत्रिक जीवन में भी बना कर रखते हैं। उससे कोई समझौता उनकी फितरत में नहीं है। इसी आन-बान-शान को खण्डित करने का प्रयास बृहस्पति सिंह ने विधानसभा और विधान सभा के बाहर शिद्दत के साथ सोच समझ कर किया। कह दिया महाराजा है , मुझे कभी भी मरवा सकते हैं। मेरी हत्या करवा सकते हैं। राजनीति में छोटे मोटे आरोपों को तो सहन पड़ता है। लेकिन इतने बड़े आरोप के साथ चरित्र पर लांछन लगना , कोई मर्यादाशील व्यक्ति जो कभी एक महत्वपूर्ण स्टेट का महाराज रहा हो ,कैसे बर्दाश्त कर सकता है। इस आरोप की चर्चा विधान सभा में पहुंची और कांग्रेस के सदस्यों ने इस पर चुप्पी साधी तो इस प्रजातांत्रिक महाराजा को भी दिल पर ठेस पहुंची। बर्दाश्त नहीं हुआ। विधानसभा से यह कह कर उठ कर चले गए कि इस विधान सभा में इतने बड़े आरोप लगने के और माफी ना मांगने के बाद मेरे विधान सभा में बैठने का औचित्य ही क्या है। तत्काल निर्णय लेकर जो व्यक्ति विधानसभा का त्याग करने की सोच सकता है, वह उस घटना को इतनी जल्दी कैसे भूल सकता है। हालांकि गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने इस घटना के लिए विधानसभा में खेद व्यक्त जरूर किया लेकिन बृहस्पत सिंग पर कोई कार्यवाही की बात नहीं हुई। चोट पर चोट महाराजा बर्दाश्त नहीं कर पाए। बावजूद इसके शालीनता से पार्टी से जुड़े रहे। यह जरूर कि समय समय पर पत्रकारों द्वारा पूछे गए राजनैतिक सवालों के जवाब में यदा कदा उनका दर्द लोगों ने उनके शब्दों में महसूस जरूर किया। पहले ढाई-ढाई साल का नाटकिया अपमान,फिर आरोप प्रत्यारोप का दंश लंबे समय तक बर्दाश्त कर रहे महाराजा साहेब को उपमुख्यमंत्री का पद जब हाई कमान ने नवाजा,तब महाराजा को अपने दर्द का अहसास तेजी से हुआ। किसी पत्रकार ने पूछा तो उनका वह दर्द शब्दों के रूप में बाहर आ ही गया। उन्होंने कहा दिया कि 90 विधानसभाओं में एक विधानसभा ऐसी है जिसकी जिम्मेदारी मेरी नहीं होगी। यह बयान बृहस्पति सिंह के लिए बड़ा संकेत दे रहा है। इसीलिए तो बाबा ने ऐसा इशारा करते बयान दिया है, जिससे बृहस्पति सिंह की नींद उड़ी हुई है। जिन्होंने उसे बाबा पर बयानबाजी करने को तब उकसाया होगा वो भी अब उपमुख्यमंत्री की मंशा के विपरीत जाकर बेवजह पंगा लेंगें इसकी भी आशंका नहीं है। सोचना तो तब था जब आप गड्डे में गिरने तैयार हुए थे। अब उससे बाहर निकालने वाला कोई नहीं है। इसे ही तो कहते हैं कुल्हाड़ी पर खुद पैर मारना। एक तो टिकट मिलेगी नहीं, मिल गई तो, जीतना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा। पहले बाबा को ये प्रिय थे। अब वतर्मान परिस्तिथि में यही कह सकते हैं कि ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम ना इधर के रहे ना उधर के हो पाये, सही भी है कि कोई सामान्य इंसान भी अपने बेवजह के अपमान को यूं ही तो नही भूल जायेगा। फिर ये तो सच के महाराजा है। जो होगा वो तो अब हो के रहेगा। इसके साथ ही कांग्रेस के अंदरखाने की एक नई तस्वीर भी लोग इसके आईने में देखने का प्रयास जरूर करेंगें। यह राजनीति है , इसमें जंग और प्रेम की तरह अब सब कुछ जायज माना जाने लगा है।