Home मेरी बात भारत को भारत बनाएं, इंडिया नहीं

भारत को भारत बनाएं, इंडिया नहीं

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भारत केवल भारत के नाम से ही जाना जाए, वह इंडिया शब्द से मुक्ति पाए, यह हर राष्ट्र प्रेमी की इच्छा है । जब सिलोन श्रीलंका हो सकता है, बर्मा म्यांमार हो सकता है, तो हम इंडिया का नाम बदलकर भारत क्यों नहीं रख सकते । संविधान में संशोधन करना ही चाहिए । लेकिन उसके लिए बड़ी संकल्प-शक्ति की ज़रूरत होगी । देर-सबेर शायद ऐसा हो भी जाए । इंडिया शब्द से हम जितनी जल्दी हम मुक्ति पाएंगे, उतनी जल्दी हम एक स्वाभिमानी राष्ट्र बन सकेंगे। लेकिन एक महत्वपूर्ण बात कहना चाहता हूँ। भारत को भारत कर देने भर से भारत महान नहीं होगा। उसे इस दिशा में आगे भी बढऩा होगा। शहरों की झुग्गियां खत्म हों। गांव का किसान समृद्ध हो। उसकी फसल के भंडार की उन्नत व्यवस्था हो। गाँव सर्वसुविधायुक्त हों।
आर्थिक समृद्धि का मतलब शहरों के बड़े-बड़े भवन नहीं, झुग्गीमुक्त शहर और समृद्धि गांव का विकास होना चाहिए। गांधी जी ने जिस अंत्योदय की बात कही, उसकी सफलता ही भारत को समृद्ध राष्ट्र बनाएगी। देश के अंतिम आदमी के उदय से भारत का उदय होगा।
जब भारत भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाएगा, जब भारत की पुलिस ईमानदार हो जाएगी, जब प्रतिरोध में उठी कलम का दमन नहीं होगा, जब किसानों और छात्रों की आत्महत्या की खबरें आना बंद हो जाएंगी, जब बलात्कार की घटनाएं एकदम न्यून हो जाएंगी,जब अपराधी को तुरंत कड़ी सजा मिलेगी, जब भ्रष्ट अफसर फौरन बर्खास्त होंगे, जब भ्रष्ट नेताओं को वापस बुलाने का सच्चा अधिकार मिलेगा, जब मेडिकल इंजीनियरिंग कॉलेज में निशुल्क प्रवेश मिलेगा, जब इस देश की राष्ट्रभाषा हिंदी हो जाएगी, जब इस देश में गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लागू हो जाएगा; तभी मेरा भारत महान भारत, श्रेष्ठ भारत और विश्व गुरु भारत बनेगा, ऐसा मैं सोचता हूँ।
मुझे यह भी लगता है कि जब तक हमारे देश के नेता नहीं सुधरेंगे, सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधियों में सुधार नहीं होगा, तब तक भारत का संपूर्ण विकास संभव नहीं। हम सब ने देखा है कि कैसे हमारे जनप्रतिनिधियों को हमारी व्यवस्था महान बनने पर तुली रहती है । उनके आगे-पीछे ऐसा आडंबरी सुरक्षा कवच तैयार कर दिया जाता है कि जनता के बीच से चुना हुआ आदमी यकायक जनता से बहुत दूर हो जाता है, या कर दिया जाता है। इसमें हमारे प्रशासन की बहुत बड़ी भूमिका रहती है। जिला प्रशासन की, जिसमें पुलिस भी शामिल है। साधारण मंत्री हो या मुख्यमंत्री हो, उसकी ऐसी सुरक्षा की जाती है कि मत पूछिए । राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तक तो बात समझ में आती है, मगर छोटे-छोटे मंत्रियों के आगे पीछे भी पुलिस वालों का रेला दिखाई देता है। यह लोकतंत्र का अभिशाप ही है। हमारे जनप्रतिनिधि सत्ता पाते ही राजसी ठाटबाट के साथ जीवन यापन करने लगते हैं, जबकि विश्व के अनेक बड़े नेता सत्ता में रहते हुए भी सादगी के साथ रहते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद भी सामान्य नागरिक की तरह जीवनयापन करना पसंद करते हैं। जबकि हमारे यहां सेवानिवृत्त नेता भी वीआईपी ट्रीटमेंट चाहता है। वह सत्ता में रहते हुए इतनी दौलत कमा लेता है कि उसके बाद का पूरा जीवन भी किसी राजा-महाराजा से कम नहीं होता। जनप्रतिनिधियों को, मंत्रियों को बड़े-बड़े बंगले रहने के लिए दिए जाते हैं और मुख्यमंत्री राज्यपाल के भवन तो किसी राजमहल से काम नहीं होते। दूसरी ओर हमारे मजदूर- किसान छोटे से कमरे में तमाम तरह असुविधाओं के बीच रहते हैं। मैंने दुनिया के कुछ देशों की यात्राएं की हैं। मैंने यह पाया है कि वहां मजदूरों को रहने के लिए पक्के मकान दिए जाते हैं । उन्हें भरपूर वेतन और अन्य सुविधा दी जाती है।
हमारे देश में तो अनेक चुने हुए प्रतिनिधियों के यहां मुफ़्त का राशन पानी पहुंचता रहता है। यही हालत अनेक अफसरों की है। हर त्यौहार पर या किसी अवसर विशेष पर उनके घर मुफ्त में तरह-तरह की चीज पहुँचती रहती है। एक और उदाहरण देखिए आँखें खोल देने वाला। स्विट्जरलैंड की घटना है। एक महिला तीन-चार बैग उठाकर ट्रेन में चढऩे के लिए आगे बढ़ रही थी, तो उनका सहयोग करने के लिए एक सज्जन ने उनके दो बैग उठा लिए। महिला ट्रेन में चढ़ी तो एक खाली सीट पर जाकर बैठ गई । तभी टिकटचेकर वहां आया । उसने महिला से कहा कि यह विकलांगों के लिए आरक्षित सीट है । इतना सुनते ही महिला ने माफी मांगी और चुपचाप खड़ी हो गई । जानते हैं वह महिला कौन थी? वह स्विट्जरलैंड की उस समय की राष्ट्रपति थीं। मिशेलिन कालमी रे ।क्या हम अपने देश में ऐसी किसी घटना की कल्पना कर सकते हैं। एक घटना मुझे भी याद आ रही है । जब अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर सेवा निवृत्त हुए तो वह गांव जाकर खेती करने लगे थे। जिस दिन ऐसा दृश्य देखेंगे, तभी समझें कि भारत महान भारत बनने की ओर अग्रसर है।