Home बाबू भैया की कलम से बड़ी चुनौतियों के साथ भाजपा की वापसी

बड़ी चुनौतियों के साथ भाजपा की वापसी

42
0

छतीसगढ़ में पहली बार हिदुत्व की राजनैतिक स्थापना कवर्धा व साजा विधानसभा सीट पर साफ साफ देखी गई। अब यह सनातनी धारा इस धरा पर और तेजी से बहेगी यह दिखाई देने लगा है। इन क्षेत्रों के साथ अब यह सुगबुगाहट सम्पूर्ण छतीसगढ़ में चल पड़ेगी इसकी पूरी संभावना बन गई है। अगले चुनाव के पहले बल्कि यूं कहें कि लोक सभा के चुनाव में सनातन धर्म का जागरण तेजी से स्थानीय सनातनियों को जगा देगा तो अतिशियोक्ति नहीं होगी। कवर्धा की घटना के बाद बेमेतरा के साजा विधानसभा क्षेत्र में भूवनेश्वर साहू की हत्या को सांप्रदायिक रंग में देखा गया,इसका असर बेमेतरा ,नवागढ़ की विधानसभा के साथ छतीसगढ़ के अन्य कुछ विधानसभाओं में भी दिखाई दिया है। इस बार इस विधा को पुराने विधायक पूर्व मंत्री रहे बृजमोहन अग्रवाल ने भी एक मौके में तब्दील कर बेहतर ढंग से भुनाया और अभूतपूर्व सफलता हासिल भी की। पहले माना ये जाता था कि इस शांति के टापू पर सीधे सादे लोग रहते हैं ,उनके बीच नफरत व विभेद की व जातिभेद की राजनीति असर नहीं करती और हर चुनाव में यह दिखाई भी देता था। लेकिन इस बार कवर्धा व साजा बेमेतरा के रास्ते भाजपा का हिन्दू कार्ड प्रभाव डाल गया है। लगता था धर्मांतरण,हिदुत्व का एजेंडा नहीं चलेगा लेकिन ना सिर्फ चल गया बल्कि दिखने लगा है कि स्थापित होने लगा है। आगामी चुनाव में यह मुद्दा अब बडा मुद्दा रहेगा यह भी स्पष्ट संभावना बन गई है।
देश के दिग्गज बुद्धिजीवियों को भी भाजपा की यह आंतरिक मारक रणनीति समझ नहीं आई। सभी का आंकलन था कि कमोबेश कांग्रेस सत्ता पर लौट आएगी,सरकार बचा लेगी। क्या खुफिया विभाग ,क्या बुद्धिजीवी,क्या पत्रकार सभी परिणाम से चकित हैं। अब यही लोग कहते हैं कि शायद अपनी ग्रामीण योजनाओं के प्रभाव को असरदार मान कर कांग्रेस के मुखिया आत्ममुग्ध हो गए। वे अपने प्रदेश के अन्य शीर्ष नेताओं के मिजाज को व उनकी आंतरिक नाराजी को समझ नहीं पाए या समझना नहीं चाहा। इससे हुआ यह कि सभी सिर्फ अपने अपने विधानसभा क्षेत्रों में ही सिमट गये। सारा भार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने ऊपर ले लिया। लोगों को साफ समझ आ गया कि नेतागण एक नहीं है। हमारा भला कर पाएंगे या आपसी द्वंद इनमें बढ़ेगा। बस यहीं जनता असहज हो गई और विकल्प खोजने लगी ,अच्छा विकल्प भाजपा ही नजर आया। मोदी की व्यक्तिगत गारंटी भूपेश बघेल के सामूहिक घोषणा पत्र पर भारी पड़ गई। रही सही कसर महतारी वंदन योजना में 1000 प्रति शादीशुदा देने के लिए भरवाए गए लाखों फॉर्म ने पूरी कर दी। जैसे जैसे फॉर्म भरवाए गए वैसे वैसे वोट प्रतिशत भाजपा के खाते में बढ़ते गया,परिणाम में सुनामी दिखाई दे गई।बड़ी संख्या में महिलाओं ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। युवाओं की भी नाराजी वोटों के रुझान में दिखाई दे रही हैं,किसानों ने जरूर कांग्रेस कहें या भूपेश पर भरोसा जताया है यह दिख रहा है,लेकिन इसमें भी मोदी की गारंटी में किसानों के लिए किए 20 वायदों ने सेंध मारी है, यह दिख रहा है। कुल जमा 35 सीटों में से धमतरी व भिलाईनगर के अतिरिक्त सभी सीट ग्रामीण इलाके की ही जीती है। जहां जहां स्थानीय प्रशासन में कांग्रेस के मेयर हैं लगभग सभी जगह मात मिली है। यानी यह दर्शाता है कि निगम के कार्य व वहां का नेतृत्व करने वाले नेताओं से लोगों की नाराजी रही। खास कर नजर डालें तो रायपुर ही देख लें , सातों सीटों पर पहली बार भाजपा काबिज हुई है। कांग्रेस के मेयर रहते शहर में यह स्थिति क्यों बनी इसके कारण जानने समझने की जरूरत है। बहरहाल भाजपा ने बहुमत की सरकार बनाने का रास्ता तैयार कर लिया है। आजकल में मुख्यमंत्री कौन होगा यह स्पष्ट हो जाएगा। भारी भरकम योजनाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी अब भाजपा पर आ गई है। पहले ही महीने धान खरीदी का अपने ही कार्यकाल का दो साल का बकाया बोनस 25 दिसम्बर को ही देने का वायदा पूरा करना है। साथ ही इसीमाह से महतारी वंदन योजना की तहत प्रति शादीशुदा महिला को 1000 रुपये उनके खाते में डालने का वायदा हर हाल में पूरा करना है।धान की खरीदी 3100 में 21 क्विंटल प्रति एकड़ करनी है। एकमुश्त भुगतान करना है। यह तत्काल करने योग्य वायदे हैं। लोगों की नजर इन्हीं विषयों पर है कि यह वायदा सही तरीके से पूरा होता है या नहीं ? बाकी वायदों में समय सीमा तय नहीं है। इसके लिए समय का इन्तजार करने जनता तैयार भी होगी।