देश के ही क्या पूरे दुनिया के हिन्दू इस वक्त ÓरामराजÓ के आने की कल्पना में डूबे हुए हैं। आज किसी को भी कुछ और सोचने की फुरसत नहीं है, देश -दुनिया के हिंदुओं में ऐसा माहौल बना हुआ है। अखबार देख लें या टीवी चैनल्स सभी ओर रामभक्ति की बौछार हो रही है। कुछ अखबार व चैनल तो राममय वातावरण को विस्तार देने खबरों का सीरियल सा चला रहे हैं। कमी है तो सिर्फ एक बार और ‘रामायणÓ सीरियल चलाने की है। जिसकी लोग प्रतीक्षा व अपेक्षा कर रहे थे। खबरों में गीता प्रेस गोरखपुर की भी चर्चा हो रही है ,जहां प्रतिदिन रामचरित मानस की हजारों प्रतियां छापी जा रहीं है ,लेकिन कम पड़ रही हैं। यानी देश दुनिया में रामचरित मानस को प्राप्त करने लोग लालायित दिखाई पड़ रहे हैं। क्या गरीब क्या अमीर सबको पता पड़ चुका है कि 22 जनवरी 2024 यानी आज से ठीक चंद दिनों बाद अयोध्या में एक ऐसा ऐतिहासिक आयोजन सम्पन्न होगा, जिसे पूरी दुनिया अनन्त काल तक याद करेगी। यह भी याद करेगी कि इस का निर्माण चाहे किसी ने भी किया हो। उद्घाटन इस देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी ने किया था। आने वाले युगों को यह भी पता चलेगा कि अनेक लोगों,धर्माचार्यों व पंडितों ने इसका विरोध व बहिष्कार भी किया था। इसके साथ ही यह भी कि भारत की एक राजनैतिक पार्टी कांग्रेस के नेताओं ने इसे राजनैतिक प्रयोजन मान कर जाने से इनकार किया था परन्तु अपने सदस्यों पर जाने की बंदिश नहीं लगाई थी। उनके आमंत्रित नेताओं ने कहा था कि अगर कोई जाना चाहता है उस पर रोक नहीं है। यह भी कहा कि हिन्दू धर्म के ध्वजवाहक प्रमुख संत शंकराचार्यों ने राममंदिर के उद्घाटन के तरीके को धर्म के विपरीत कहा है। और यह भी कि हमें कहीं कोई संदेह .नहीं है कि यह भारतीय जनता पार्टी व आरएसएस से प्रेरित वोटों की राजनीति करने वाला आयोजन है,इसलिए आमंत्रित कांग्रेस नेतृत्व इस कार्यक्रम में नहीं जाएगा। देश दुनिया के हिन्दू धर्मानुयायियों के प्रेरणा स्रोत प्रभु श्री राम का मंदिर धर्म के साथ राजनीति का केंद्र बन गया है। दुनिया के हिंदुओं में राम की आस्था अक्षुण्ण है। राजनीति के दांव पेंचों ने आस्था को दो अलग अलग विचारों में बांटने का काम किया है। सच किसका और झूठ किसका यह सोचना बाद की बात है। इस प्रसंग से समस्त रामभक्त दुखी हैं।
राम कब भाजपा के हो गए किसी को समझ में नहीं आया। बुद्धिजीवियों का मत है राम सबके हैं। इस मुद्दे की चर्चा तो 500 वर्षों से जारी थी अनेक उत्तर चढ़ाव मंदिर-मस्जिद विवाद के दौर में आये लेकिन इस तरह का राजनैतिक प्रसंग नहीं बना,जैसा आज देखा जा रहा है। जनचर्चा चलती रही,वाद विवाद चलते रहे। जब राम मंदिर बनाने ‘मंदिर वहीं बनायेंगेंÓ के गंभीर नारे के साथ देश के एक राजनैतिक दल की शीर्ष राजनैतिक ताकतें रथयात्रा में निकाली। दूसरी राजनैतिक ताकतों ने इसमें बाधा पहुंचाई। यहां से ही यह प्रसंग राजनीतिक रंग में रंग दिया गया। यह लड़ाई अब वर्चस्व की लड़ाई में तब्दील हो चुकी है। इसमें किसी को भी यह शक नहीं है कि राममंदिर की बड़ी जंग भारतीय जनता पार्टी व आरएसएस के विचारों की छांव में बीजेपी के नेतृत्व में ही लड़ी गई। हिन्दू एकता का माध्यम भी यही मंदिर बना है। हिन्दू वोटों को एक मंच पर पहुंचाने का काम भी अप्रत्यक्ष रूप से राम मंदिर निर्माण के आह्वान ने ही किया है। भले ही जिन्होंने आह्वान किया था वे सब आज राममंदिर उद्घाटन के चेहरे नहीं हैं। उन्हें मार्गदर्शक मंडल में सम्मान दिया गया है। अब नए डायनामिक चेहरे की जरूरत थी, जिसकी हिन्दू धर्मावलंबियों में जबरदस्त स्वीकार्यता हो। एक मंच तक आये हिन्दू मत मंच पर लंबे समय तक बने रहें।आज ऐसा चेहरा भी भाजपा के पास है और माहौल भी है। राममंदिर का उद्घाटन इसी प्रेरणा से प्रेरित दिखाई दे रहा है।
हिन्दू धर्म के सर्वोच्च पद पर पदासीन शंकराचार्यों के विचारों को भी सोशल मीडिया में तरह तरह के तर्कों से काटा जा रहा है। आदि शकराचार्य की बनाई हिन्दू एकता व देश की एकता की कल्पना के मायने बदलने के लिए यह युग बेताब दिखाई दे रहा है। क्या देश के धार्मिक विचार दो धाराओं में विभक्त हो जाएंगे। आम हिन्दू इस बात से चिंतित दिखाई दे रहा है। क्या अब धार्मिक की जगह ‘राजनैतिक धर्माचायोÓ के युग का पदापर्ण हो रहा है। प्रबुद्ध लोगों का कहना है कि प्रजातंत्र में भले ही प्रधान मंत्री देश के मुखिया हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि धर्म के क्षेत्र में शंकराचार्यों का ही सर्वोच्च पद इस देश की मान्यताओं में मौजूद है। उनकी अनदेखी करके धर्म प्रतिष्ठा लोक मानस में नहीं बस सिर्फ पार्टी समर्थकों में ही सम्भव होगी। यह लोगों का अपना मत है लेकिन धर्म के वर्तमान प्रवाह में बह रहे रामभक्त इस प्रकार की किसी बात को राममंदिर के उद्घाटन के ऊपर अपने मानस में स्थान देने को तैयार नहीं दिख रहे है। आने वाले समय में राममंदिर की स्थापना को प्रभु श्रीराम को उनका घर वापस दिलाने के रूप में प्रचारित करके 2024 में दिल्ली के अपने मजबूत गढ़ को अजेय बनाने की दिशा में भारतीय जनता पार्टी ‘इंडिया’ के घेरे से बहुत आगे जाने को बेताब है। परिणाम भविष्य के गर्भ में है। इंतजार सबको है।