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मामला आस्था का है

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भारतीय इतिहास में 22 जनवरी को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। अयोध्या में जब रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी, उसे समय जो लोग अयोध्या में थे , वे तो बड़भागी थे ही, लेकिन देश के करोड़ों लोग टीवी पर उसका सीधा प्रसारण देखकर भी धन्य हो रहे थे। अपने घरों में कुर्सी या पलंग-चारपाई पर बैठे लोग ऐन प्राण प्रतिष्ठा के मुहूर्त के समय सम्मान खड़े होकर रामलला की अद्भुत छवि निहारने लगे। किसी की आँखों से अश्रु प्रवाहित होने लगे, कोई जयश्री राम के नारे लगाने लगा, कोई मगन होकर नाचने लगा, कुछ लोग आपस में एक-दूसरे से गले मिलकर बधाई देने लगे। गोया भारत ने ओलंपिक खेल में स्वर्ण पदक प्राप्त कर लिया हो। नि:संदेह ये तमाम लोग भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता नहीं थे । ये लोग सनातनी राष्ट्र के निवासी हैं। इन सब को पता था कि आज जो प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, वह किसी सामान्य मंदिर में विराजने वाले प्रभु की प्राण प्रतिष्ठा नहीं है; यह 500 साल पहले ध्वस्त उनकी अस्मिता की पुनर्स्थापना है चूँकि रामजन्म भूमि आंदोलन में वर्षों से संघर्षरत भाजपा के प्रधानमंत्री की उपस्थिति में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम हुआ है, तो स्वाभाविक था कि इसका कुछ लाभ तो भाजपा को ज़रूर मिलता ही मिलता। यही कारण है कि विपक्ष परेशान भी है कि इस बार भी उन्हें सत्ता का स्वाद चखने से वंचित रहना पड़ सकता है। लेकिन विपक्ष को यह भी विचार करना चाहिए कि देश के करोड़ों लोग भाजपा के सदस्य नहीं हैं। उनकी केवल राम में आस्था है, उनका सनातन से अनुराग है, इसीलिए वे प्राण प्रतिष्ठा के दिन इतने अभिभूत थे। और ऐसे सनातन राष्ट्र में रहते हुए विपक्ष के कुछ नेता सनातन को डेंगू, मलेरिया, एड्स और न जाने क्या-किया कह कर अपमानित करते रहे। इस तरह वे करोड़ों हिंदुओं का भी अपमान ही कर रहे थे । अतीत के जख्मों पर मरहम लगाना बहुत जरूरी है। और यह अच्छी बात है कि अनेक मुस्लिम बंधु इस सच्चाई को समझ रहे हैं। इसलिए वे भी जयश्री राम कहने से परहेज नहीं करते। वे भी अयोध्या जाकर रामलाल के दर्शन कर रहे हैं। कुछ मुस्लिम महिलाओं ने प्राण प्रतिष्ठा के दिन घर के बाहर दिए भी जलाए । क्योंकि उनको पता है कि आज हम मुस्लिम ज़रूर हैं लेकिन चार- पाँच सौ साल पहले हमारे पूर्वज हिंदू ही थे। किसी कारणवश वे धर्मांतरित हो गए, तो क्या हम अपनी जड़ को भूल जाएं? ठीक है, अब हमारी उपासना-पद्धति बदल गई है लेकिन हमारे आराध्या तो वही हैं! इंडोनेशिया एक मुस्लिम राष्ट्र है। लेकिन वहां जाकर देखिए तो भारतीय संस्कृति चारों ओर दिखाई देती है । भगवान की बड़ी-बड़ी मूर्तियां विभिन्न चौराहों पर नजर आ जाती हैं। उन देश का प्रवास करते हुए मैंने यह खुद देखा। वहां आज भी रामलीला होती है। थाईलैंड जैसा देश आज भी राम से अपने आप को जोड़ कर रखता है। भारत के प्रति पूरी दुनिया में जो श्रद्धाभाव दिख रहा है, इसका लाभ इस देश की अर्थव्यवस्था को भी मिलेगा। अयोध्या अब एक बड़े तीर्थ स्थल के रूप में उभर रही है । इससे वहां का जनजीवन भी लाभान्वित होगा। वहां के लोग समृद्ध होंगे। उनके बहाने यह देश समृद्ध होगा। आज करोड़ों का मंदिर बना है। कल को उसे मंदिर की करोड़ों की आय से अस्पताल भी बनेंगे, शिक्षा संस्थान भी बनेंगे। यह बात सुनने में अच्छी लगती है लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि सिर्फ दवा के सहारे हमारा जीवन नहीं चलता । उसे दुआ की भी जरूरत होती है। मंदिर थके- हारे जीवन को आस्था- विश्वास की दवा देते हैं। एक टूटा हुआ मन लेकर आदमी मंदिर जाता है और सफलता की कामना के साथ खड़ा होता है।