Home मेरी बात पुलिस का मानवीकरण हो

पुलिस का मानवीकरण हो

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दिल्ली से दो दिन डॉ. वैदिक भाषा साहित्य सम्मान लेकर रायपुर पहुंचा और एयरपोर्ट से सीधे महासमुंद के लिए प्रस्थान किया, जहाँ मुझे दो जुझारू वीरों का सम्मान करना था । यह आयोजन एक तीसरे जुझारू व्यक्तित्व डॉ विमल चोपड़ा ने आयोजित किया था। आप पूर्व निर्दलीय विधायक भी है। पेशे से बड़े नामी चिकित्सक ल। उन्होंने जब मुझसे कहा कि आपको कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आना है तो अपने आप को रोक नहीं सका। थकान के बावजूद वहाँ पहुँचा। मैं हमेशा ऐसे लोगों के साथ खड़ा रहता हूँ,जो अन्याय के विरुद्ध लड़ते हैं। डॉ चोपड़ा भी वर्षों से यही करते रहे हैं। वे खुद अन्याय का विरोध करते हुए पुलिस अत्याचार के शिकार हुए हैं। उनके लिए मैं कलम चलता रहा हूँ। जिन दो वीरों का सम्मान होना था, उनमें एक राजेश चौधरी हैं, जिसने चार लोगों की हत्या के पांच आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे भिजवाया । पति-पत्नी और दो मासूम बच्चों की बहुत ही घिनौने तरीके से हत्या की गई थी। अपराधी अब आजीवन कारावास की सजा भोग रहे हैं । यह भयंकर नृशंस हत्याकांड कुछ वर्ष पूर्व हुआ था, जिसमें पुलिस ने सिर्फ एक व्यक्ति को आरोपी बनाकर मामले की फाइल बंद कर दी थी। लेकिन राजेश ने कहा, इसमें और भी लोग शामिल हैं। राजेश लगे रहे । आंदोलन करते रहे। पूरा परिवार उनके साथ था । इस बीच पुलिस के एक अधिकारी ने, पुलिस वालों ने तरह-तरह से प्रताडि़त भी किया लेकिन राजेश ने हार नहीं मानी और अंतत: कोर्ट ने हत्या के पांच दोषियों को आजीवन कैद की सजा सुनाई। दूसरे वीर अरविंद मिश्रा हैं,जो सागौन प्लांट के जनक कहे जाने वाले मनीराम के परिवार को दस एकड़ जमीन दिलवाने की लड़ाई वर्षों से लड़ रहे हैं। मनीराम जी के नाम पर हरिहर छत्तीसगढ़ मनीराम सम्मान भी दिया जाता है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि उनके परिजनों को सरकार द्वारा वादा करने के बावजूद अब तक दस एकड़ जमीन नहीं दी गई, जिसकी लड़ाई अरविंद मिश्र लगातार लड़ रहे हैं। ऐसे दो लोग का सम्मान की परिकल्पना विमल चोपड़ा ने की तो मैं भला कैसे इंकार कर सकता था। महासमुंद के स्वाध्याय मंडल में सैकड़ो लोगों की उपस्थिति में दोनों का सम्मान हुआ। राजेश चौधरी की बातें सुनकर मैं बहुत भावुक हो गया। बोलते वक्त गला रुँध गया। कुछ समय मुझे रुकना पड़ा। पुलिस के लोग कितने निर्मम हो सकते हैं, इसका पता एक बार फिर राजेश चौधरी की बातों से लगा। जिस परिवार के लोगों की हत्याएँ हुई, उस परिवार को न्याय दिलाने के लिए एक व्यक्ति लड़ रहा है लेकिन उसे तरह-तरह से हतोत्साहित किया जाता रहा, पर उसने हिम्मत नहीं हारी। इसलिए मैंने अपने भाषण में अंत में कहा कि भारतीय पुलिस के डीएनए में अभी भी अंग्रेजों का खून बह रहा है। जब तक इसकी धमनियों में भारतीयता का, लोकतंत्र का ,करुणा का खून नहीं बहेगा, तब तक पुलिस में सुधार संभव नहीं है। राजनीति और प्रशासन के अमानवीय चरित्र पर मैंने जमकर पीड़ा व्यक्ति। हम और कुछ कर भी नहीं सकते। दुर्भाग्य से सिस्टम ही ऐसा बना हुआ है जो बदलना चाहिए। भारतीय पुलिस का जब तक मानवीकरण नहीं होगा, उसमें लोकतंत्र का करुणा का रक्त प्रवाह नहीं होगा, पुलिस के अत्याचार लगातार जारी रहेंगे। मैं यह देख कर भी चकित हो जाता हूँ कि हमारी सत्ता कैसे विवेक शून्य हो जाती है । जिस पुलिस अफसर प्रताडऩा का आरोप लगाया जाता है, उसे ही बाद में अच्छे पद पर बिठा दिया जाता है। क्यों? पुलिस अफसर की बर्बरता सिद्ध होने के बावजूद उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती