Home मेरी बात बच्चों के अभ्युदय के लिए एक अनोखी पहल

बच्चों के अभ्युदय के लिए एक अनोखी पहल

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रायपुर से लगभग तीस किलोमीटर दूर अछोटी नामक गाँव में एक अभिनव विद्यालय कुछ वर्षों से संचालित है : अभिभावक विद्यालय। इसे अभ्युदय संस्थान संचालित करता है।अभ्युदय संस्थान की परिकल्पना महान विचारक चिंतक डॉक्टर ए नागराज जी ने की थी। उन्होंने अपने विचार को जीवन विद्या मिशन नाम दिया। उन्होंने अपना एक दर्शन विकसित किया, जिसे नाम दिया मध्यस्थ दर्शन, जिसमें लोग आपस में सह-अस्तित्व की भावना के साथ मिलजुल कर रहें। नागराज जी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन मिशन बहुत सुंदर ढंग से काम कर रहा है। सबसे पहले इसकी शुरुआत अमरकंटक से हुई। फिर अछोटी एक बड़ा केंद्र बना। वर्षों पहले विदेश से पढ़ कर आए कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर संकेत ठाकुर ने अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर अछोटी ग्राम में सन 1999 में संस्थान की शुरुआत की थी। 31 मार्च को अभिभावक विद्यालय का वार्षिकोत्सव था। डॉ. संकेत के आग्रह पर पत्रकार मित्र समीर दीवान के साथ मैं भी वहां पहुंचा। मैं अभिभूत था यह देख कर कि एक गांव में इतना सुंदर विद्यालय चल रहा है । विद्यालय के बच्चों की सांस्कृतिक प्रस्तुति और व्यावहारिक जीवन का कुशल प्रशिक्षण देख कर खुशी हुई। गांधी जी ऐसा ही गांव चाहते थे, जहां बच्चों के लिए शैक्षणिक व्यवस्था हो और गाँव अपनी ज़रूरत की चीज़ें खुद पैदा करें। उन्हें शहर का मुँह न देखना पड़े। इस मिशन के तहत शिक्षा का मानवीकरण किया गया है। अध्ययन करने वाले बच्चों को व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। वे ज़रूरत की कुछ उपयोगी चीजों का खुद निर्माण भी कर रहे हैं। जैविक कृषि कार्य कर रहे हैं, सब्जी उगा रहे हैं। गोपालन का कार्य भी हो रहा है, तो अध्ययन भी। यह भी प्रेरणा की बात है कि अभ्युदय संस्थान के आवासीय परिसर में कुछ परिवार शहरी जीवन का मोह त्याग कर मिलजुल बड़े प्रेमभाव से रहते हैं । सामूहिक रूप से खेती-बाड़ी और अन्य कार्य करते हैं। इसी परिवार की कुछ बहने और भाई पहले से लेकर दसवीं तक के बच्चों को पढ़ाते भी हैं। जीवन विद्या मिशन का लक्ष्य यही है कि मानव जाति एक रहे। ईश्वर एक है। धरती एक है । और मानव धर्म भी एक है। कहीं कोई भेद नहीं होना चाहिए। विद्यालय के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हुए स्वरोजगार की ओर भी उन्मुख हो रहे हैं,ताकि उन्हें रोजगार के लिए भटकना न पड़े । विद्यालय इस बात का ध्यान रख रहा है कि बच्चों में एक वैश्विक दृष्टि विकसित हो। जाति-धर्म से ऊपर उठकर प्राकृतिक वातावरण में वे पलें बढ़ें। आज संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, तनाव बढ़ रहा है। अकेलापन एक अभिशाप की तरह दिखाई दे रहा है। इन सभी विसंगतियों को तोडऩे के लिए अभ्युदय संस्थान बेहतर काम कर रहा है। वहां छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ के बाहर के कुछ परिवार आकर श अस्तित्व की भावना के साथ बड़े मजे से रह रहे हैं । ये सब भाग्यशाली हैं कि प्राकृतिक जीवन जी रहे हैं। संस्थान में समय-समय पर शिविर भी लगाए जाते हैं, जहां भाग लेने वाले को यही शिक्षा दी जाती है कि बहुत अधिक धन का मोह नहीं करना चाहिए । विलास पूर्ण जीवन जीने से बेहतर यह है कि हम कम से कम खर्चे में जीने की कोशिश करें। प्राकृतिक जीवन से जुड़ कर ही हम स्वस्थ रह सकते हैं। यहाँ लोग शहरों के प्रदूषण से दूर सुंदर सुखद जीवन यापन कर रहे हैं। अभ्युदय संस्थान की शुरुआत बहुत छोटे रूप में से शुरू हुई थी लेकिन आज अभ्युदय संस्थान के अभिभावक विद्यालय में दसवीं तक की पढ़ाई होने लगी है। कल जो सांस्कृतिक कार्यक्रम मैंने देखा, उसे देखकर दंग था। कार्यक्रम में प्रस्तुत सारे गीत संगीत शिक्षिकाओं ने तैयार किए थे। बच्चों ने भी पूरे आत्मविश्वास के साथ सुंदर आकर्षक प्रस्तुतियां दीं।कार्यक्रम में आसपास के गांव के सैकड़ो अभिभावक उपस्थित हुए। यह विद्यालय पूरी तरह से गैर सरकारी है। इस विद्यालय का अनुसरण करके सरकार को भी अपने विद्यालय संचालित करने चाहिए। यह विद्यालय बहुत हद तक प्राचीन गुरुकुल परंपरा स्मरण कराता है। ऐसे विद्यालय अब दुर्लभ होते जा रहे हैं।