Home बाबू भैया की कलम से चुनावों में मातृशक्ति की बढ़ती ताकत, सतर्क होते राजनैतिक दल

चुनावों में मातृशक्ति की बढ़ती ताकत, सतर्क होते राजनैतिक दल

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भारत की महिलाएं सबल बन रहीं हैं। इसमें अब किसी को कोई शक नहीं है। चुनाव दर चुनाव महिलाओं की बढ़ती ताकत अब साफ नजर आने लगी है। अधिकांश सीटों पर पुरुष से अधिक वोट प्रतिशत यह दर्शाता है कि अबला कही जाने वाली महिलाएं अब स्वयं ही सबल बन चुकी हैं। अपने वोट की कीमत को अच्छी तरह समझने लगी हैं। घर के पुरुषों के इशारे पर वोट डालने वाली महिलाएं ,अब अपनी पसंद को तरजीह देने लगी हैं। अनेक चुनावों के परिणाम इसकी गवाही देते हैं। राजस्थान व हरियाणा जैसे अनेक राज्यों में चेहरे भले ही घूंघट में ढंक कर जाती हों पर अपनी बुद्धि को पर्दे के पीछे सजग रखना उन्होंने सीख लिया है। परम्परागत पहनावे में वोट देने जाती महिलाओं को देख कर अब कोई नहीं बता सकता कि वो अब तक की मान्य परम्पराओं को तोडऩे जा रही हैं। यानी अपने घर के बुजुर्गों -मुखियाओं से परम्परागत ढंग से मिलने वाले कहां वोट देना है के निर्देश की परम्परा तोड़ती दिखाई दे रही हैं। निर्देश की जगह उन्होंने अपने मन की सुनना शुरू कर दिया है। वह जानने लगी है विधानसभा व लोक सभा के चुनाव में मूल अंतर क्या है। विधानसभा में अपनी समस्याओं को दूर करने व लोकसभा में राष्ट्र के निर्माण के साथ राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान होता है। शिक्षित से लेकर अंगूठा लगा कर काम चलाने वाली महिलाओं ने भी अब देश की नब्ज पकडऩा सीख लिया है। उन्हें समझ में आने लगा है कि कौन सा डॉक्टर कहां अच्छा इलाज कर सकता है। हमारे राज्य की बीमारी कौन और राष्ट्र की बीमारी कौन ठीक कर सकता है। देश के पिछले परिणाम इसकी तस्दीक कर भी रहे हैं। 2019 के चुनावों में मात्र 0.16 प्रतिशत मत अधिक देकर महिलाएं पुरुषों से आगे निकल गई। भारतीय महिलाओं ने देश के राजनैतिक परिदृश्य में अपना खासा स्थान बना लिया है। सरकारों के साथ राजनैतिक दलों ने भी इस बढ़ती ताकत को अच्छी तरह समझ लिया। महिलाओं को तब से मिल रही अहमियत का दायरा दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। महिलाओं को मुफ्त में नगद राशि देने की हर कोई पेशकश करता दिखाई दे रहा है। भारत का राजनैतिक परिदृश्य तेजी से महिलाओं पर केंद्रित हो रहा है। राज्य सरकारें हों ,केंद्रीय सरकार हो ,या राज्य स्तरीय या राष्ट्र स्तरीय राजनैतिक दल हों ,सभी महिलाओं को भारी तवज्जो देने में जुटे हैं। देश भर में शायद ही कोई ऐसी जगह शेष हो जहां मातृशक्ति ने अपनी वोट की ताकत का भान न कराया हो। प्रत्येक दल अब मान रहा है कि सत्ता पाना है तो महिलाओं को महत्व देना ही होगा। एक तरह से ये कहा जाए तो अतिशियोक्ति नहीं होगी कि महिलाएं सत्ताधारी दलों की रीढ़ बन गई हैं। हमारे छत्तीसगढ़ में भी देखें तो महिलाओं को प्रतिमाह 1000 की योजना ने प्रदेश में भाजपा की सरकार बना दी। अब लोक सभा में कांग्रेस भी एक लाख देने की बात कर रही है तो भाजपा भी अनेक लोक लुभावने वायदे महिलाओं से कर रही है। लगता है अब सत्ता तक पहुंचने का रास्ता महिलाओं को खुश करने से ही मिल सकता है। युवा महिलाएं अपनी अलग सोच से सरकारों को समर्थन देती है। उनके मन में अपनी समस्याओं के समाधान की सोच होती है। दोनों की सोच ही देश में महिलाओं की इस मौन क्रांति को समर्थन देती दिखाई दे रही है। महिलाओं को अपनी वोट की ताकत की समझ बनी है। राजनीतिज्ञों को भी महिलाओं के वोट की ताकत की जानकारी तो थी पर वे आंख मूंदे पुरुष प्रधान समाज की सोच से जकड़े हुए थे। उनकी आंखें भी अब पूरी तरह खुल चुकी हैं। अब सभी राजनैतिक दल महिलाओं की हालत सुधारने के कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान देने लगी हैं जो इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि उनके वोटों की कितनी अहमियत है। यह भारतीय मातृशक्ति के लिए चुनावी राजनीति का स्वर्णिम युग माना जाना चाहिए।