भले ही मजबूरी में साथी दलों के खास करके टीडीपी व जदयू के सहयोग से ही केंद्र में नरेन्द्र मोदी ने सरकार बनाई है। मंत्रिमंडल गठन में साफ दिखाई दे रहा है कि उन्होंने अपनी कोर टीम को बरकरार रखने में किसी प्रकार का समझौता नहीं किया।अपने प्रमुख साथियों राजनाथ सिंह,अमित शाह, नतिन गडकरी, निर्मला सीतारमन, एस.जयशंकर, पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान, अश्विनी वैष्णव को प्रमुख वही विभाग दिए जिनमें वे दूसरे कार्यकाल की सरकार में काबिज थे। कुछ के विभाग में तो और विभाग भी जोड़ दिए। अपने कोर ग्रुप में इजाफा करते हुए,प्रमुख विभागों के साथ शिवराजसिंह चौहान व पुराने विश्वस्त साथी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा तथा मनोहर लाल खट्टर को भी बड़ा विभाग देकर जोड़ लिया। मध्यप्रदेश में लोकप्रियता के चरम पर रहे शिवराज मामा के लिए देश में लाखों की नजर थी कि मुख्यमंत्री ना बनाकर उनके लिए अप्रिय स्थिति पैदा करने वाले अमित शाह व नरेंद्र मोदी की जोड़ी केंद्र में उनके साथ न्याय करेगी या नहीं। जनता की चाह को हाई कमान ने अपमानित नहीं किया। किसान पृष्ठभूमि से जुड़े शिवराज मामा को कृषि के साथ ग्रामीण विकास-किसान कल्याण विभाग दे दिया। बर्षों से न्याय की आस में निरंतर अपमानित हो रहे देश के किसानों से न्याय करने का अहम जिम्मा भी उन्हें सौंप दिया है। अब यह अलग बात है कि पिछले कार्यकाल की अमित-नरेंद्र की जोड़ी ने जिस प्रकार से किसानों से चर्चा के दौरान हस्तक्षेप किया वैसा ही फिर हो तो मामा के लिए भी किसानों को न्याय दिलाना खास कर एमएसपी तय करना कठिन होगा। लेकिन अगर उन्हें फ्री हैंड दिया गया तो निश्चित ही वे इसका कोई ना कोई सकारात्मक हल ढूंढ लेंगें। किसान नेताओं को भी उनकी पोस्टिंग से कुछ उम्मीद जरूर जागी होगी। नए मंत्रिमंडल पर एक नजर डालें तो साफ परिलक्षित होता है कि सारे प्रमुख विभाग भाजपा ने अपने हाथ में रखे हैं। पुराने साथियों सर्वानंद सोनोवाल,प्रल्हाद जोशी,गिरिराज सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया,भूपेंद्र यादव,गजेंद्र सिंह शेखावत,किरेन रिजिजू,हरदीपसिंह पुरी, डॉ. मनसुख मांडविया,राव इंद्रजीत सिंह ,डॉ. जितेंद्र सिंह,अर्जुनलाल मेघवाल , व अन्य अनेक पुराने राज्य मंत्रियों को भी स्थान दिया। तीसरी बार की एनडीए की सरकार में भी नरेन्द्र मोदी की सरकार की छाप बरकरार रखते हुए भाजपा का परचम ऊपर रख कर सहयोगी दलों को संकेत दे दिया है। सरकार भले ही एनडीए की बनी हो लेकिन ताकतवर नरेंद्र मोदी ही रहेंगें। चलेगी भी अमित शाह-नरेंद्र मोदी की ही। दबाव की राजनीति वे चलने नहीं देंगें। ना ही अपने एजेंडे में कोई खास परिवर्तन करेंगें। हालांकि अभी तो यह अनुमान ही लगाया जा रहा है,आगे आगे देखना होगा कैसे कैसे,क्या क्या होता है। सरकार जैसे जैसे आगे बढ़ेगी वैसे वैसे साफ होता जाएगा कि गठबंधन की सरकार किस दिशा में जाएगी। नेतृत्व के रंग-ढंग चाल-चरित्र ,बोल-चाल में कितना परिवर्तन आता है। ध्यान सबका उसी पर है। अपने सलाहकार मंडल के बुजुर्ग नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी के साथ अन्य दलों के वरिष्ठ नेताओं देवेगौड़ा, कांग्रेस के मनमोहन सिंह व पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से आशीर्वाद लेकर उन्होंने यह जताने का काम किया है कि वे अब नए अवतार में परिवर्तित होकर काम करेंगे। शायद अब मोदी की सरकार की जगह एनडीए की सरकार ले लेगी ऐसी सबको उम्मीद है।
नई सरकार के सामने चुनौतियां भी कम नहीं इन चुनौतियों से निपटने सरकार की स्थिरता ना सिर्फ कायम रहे बल्कि दिखनी भी चाहिए। अभी तो टीडीपी सरकार को अपने घोषणा पत्र में प्रदेश के मुस्लिम समाज से किये गए वायदों का हिसाब भाजपा नेतृत्व के साथ मिलकर देना होगा। इसमें कोई बीच का रास्ता निकलना बहुत मुश्किल है। या तो भाजपा नेतृत्व इसको चुपचाप बरदास्त करे। जो शायद संभव ना हो पायेगा। भाजपा यह भी कह सकती है कि यह राज्य का अपना निजी मामला है। अधिकांश बुद्धिजीवियों का मानना है कि रास्ते तो निकलेंगें। सरकार भी स्थिर रहेगी।इसका जनता व भाजपा के समर्थकों पर क्या व कैसा असर होता है। यह भी देखा जाना होगा। इसके अलावा भी आंध्र प्रदेश अपने राज्य को विशेष दर्जा दिलाना चाहेगा। उसका क्या हल निकाला जाएगा। यह देखने की बात होगी। बिहार भी बहुत सी बातों पर अडिग है। जातिगत जनगणना की उसने घोषणा ही कर दी है,कैसे होगी। फिर विशेष राज्य का दर्जा की मांग बिहार की भी है। विभाग वितरण से टीडीपी व जेडीयू खुश हैं या नहीं यह अभी बाहर नहीं आया है। ऊपरी तौर पर लगता तो ऐसा ही है कि सब ठीक है। विभागों का वितरण निश्चित रूप से प्रधानमन्त्री का अपना विशेषाधिकार है। गठबंधन की राजनीति का लेकिन अपना कर्तव्य होता है कि एक दूसरे से सहमति के साथ निर्णय हों। किसी प्रकार की शंका-कुशंका न रहे। सरकार बंधन में रहे यह भी सहयोगी चाहते हैं। लगता नहीं कि नरेंद्र मोदी अपनी फितरत बदल कर बंधन में रहना पसंद करेंगें। अब तक एकतरफा एम की छत्रछाया में चलती आ रही राजनीति अचानक दो एन पर केंद्रित हो गई है। इस बंधन को तोड़ कर भाजपा अपना कार्यकाल बिना दबाव महसूस किये ,अपने हिदुत्व के एजेंडे के साथ कैसे पूरा करती है। इस पर पूरे भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व की नजर है। देखे क्या होता है।