Home बाबू भैया की कलम से हमने नहीं तूने किया से बलौदाबाजार हिंसा का नहीं होगा समाधान

हमने नहीं तूने किया से बलौदाबाजार हिंसा का नहीं होगा समाधान

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बलौदाबाजार जैसी हिंसक घटना शायद ही भारत वर्ष भर में कहीं घटी हो। बेहद शर्मनाक घटना। जितनी निंदा की जाए कम है। निंदा लेकिन किसकी की जाए। उन लोगों की जो वहां इक_ा हुए थे। अपनी बात कहना चाहते थे। या उनकी जिन्होंने इन्हें इकठा करने बाकायदा पोस्टर सोशल मीडिया में डाल कर आंदोलन का आव्हान किया। या उनका जो दलगत वोट पॉलिटिक्स की वजह से भीड़ को नेतृत्व देने की होड़ कर रहे थे। सब जानते समझते हैं कि जिस सतनामी समाज का आंदोलन था ,उसके बीच नेता बनने का लोभ ना भाजपा और ना कांग्रेस और ना ही अन्य दल के नेता संवरण कर पाते हैं। सभी दल के नेतागण अपने दल की राजनीति चमकाने उस भीड़ में किसी ना किसी रूप में शामिल थे , यह कोई इनकार नहीं कर सकता। सोशल मीडिया में वायरल वीडियो में सब साफ दिखाई दे रहा है। दलों के नेता खुद इससे इनकार नहीं कर पा रहे हैं।लेकिन एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप धडल्ले से कर रहे हैं। सरकार से जुड़े लोगों पर उंगली उठाई जाती है तो कहा जाता है,सरकार हमारी है। हम खुद की सरकार को बदनाम करने का काम क्यों और किसलिए करेंगें। नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत कहते हैं कि सरकार भाजपाइयों को बचाने का प्रयास कर रही है। पूर्व मुख्य मंत्री भूपेश बघेल कहते हैं कि सिर्फ कांग्रेस के नेताओं व कांग्रेसियों को बेवजह टॉरगेट किया जा रहा है। घर घुस कर पुलिस द्वारा मारपीट की जा रहा है। बघेल ने सरकार से मांग की है कि अब तक कितने और कौन लोगों को गिरफ्तार किया गया है ,उसकी सूची पूरी पारर्दर्शिता के साथ सार्वजनिक की जाए। दोनों नेताओं का कहना है कि घटना साय सरकार की नाकामी, प्रशासन की पूरी लापरवाही,और लचर कानून व्यवस्था का परिणाम है। कानून व्यवस्था सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार को अपनी कमी व लापरवाही को स्वीकार करना चाहिए और मुख्य मंत्री को इस्तीफा देना चाहिए। यह भी कहा गया कि जांच का दायरा व बिंदु भी ऐसे तय किये गए हैं ,जिसमें सरकारी तंत्र को जांच के घेरे से बचाने का प्रयास साफ झलकता है। मनखे मनखे एक समान का भाव रखने वाले सन्त घासीदास बाबा के अनुयायी सतनामी समाज के पवित्र गुफा में जैत खम्भ को तोड़ा गया। इतनी गंभीर घटना को सरकारी तंत्र ने व उसके खुफिया विभाग ने सामान्य रूप से देखा, ऐसा ही पूरी घटना को एकनजर में देखें तो साफ लगता है। सरकार-प्रशासन-खुफिया तंत्र कैसे नहीं समझ पाए की घटना यह रूप भी ले सकती है। जबकि बाकायदा पम्पलेट के माध्यम से एक संस्था ने खुले आम सतनामी समाज के लोगों को आह्वान किया कि विरोध प्रदर्शन का हिस्सा बनें। अब सबसे बड़ा संदेह तो उन्हीं पर जाना चाहिए , जिन्होंने यह आह्वान करके भीड़ जुटाई। भीड़ वह भी सतनामी समाज की, जो वोट बैंक का बहुत बडा हिस्सा प्रदेश में हो। यही समाज है जो एकजुटता के साथ किसी भी दल का साथ दे दे तो पासा पलट सकता है। ऐसे समाज का जमावड़ा एक जगह पर हो और वहां बोलने का मौका हो तो कौन से दल का नेता होगा जो इस मौके को गवाएंगा। भाजपा हो या कांग्रेस या कोई और दल का नेता वो बिन बुलाए ही वहां पहुंच जाएगा। अपनी पार्टी की विचारधारा के साथ समाज को अपने पक्ष में करने के लिए हर संभव शाम -दाम-दंड-भेद की नीति के आधार पर अपनी बात वहां मजबूती से रखेगा ही।
कहा यह भी जा रहा है कि किन्ही तत्वों ने असामाजिक तत्वों को षड्यंत्र की तहत भीड़ का हिस्सा बनाने भेज दिया गया और यह हिंसा हो गई। आश्चर्यजनक यह है कि हजारों की भीड़ में चंद असामाजिक तत्व घुस गए और उन्होंने भीड़ को उत्तेजित करने में सफलता पा ली तो फिर दलों के नेता किस काम के रहे। धिक्कार है ऐसे नेताओं पर जो तवे पे रोटी सेंकना तो अच्छे से जानते हैं,लेकिन रोटी को जलने से नहीं बचा पाते। वे किसी भी दल के हों लेकिन अपनी नेतृत्व क्षमता को अपने भीतर झांक कर आंकना चाहिए। उन्हें सोचना चाहिए कि उनमें बचाने व स्थिति को नियंत्रित करने की क्षमता नहीं है तो किस बात के नेता। किस काम का उनका नेतृत्व। ऐसे सब लोगों को जो वहां मौजूद रहे उनको सारा सच मालूम है फिर सिर्फ आरोप प्रत्यारोप क्यों। सच सबको स्वीकार करना चाहिए,गलती किसी की भी हो स्वयं की भी हो तो बाहर आनी चाहिए। नेता व नेतृत्वकर्ता तो उसी को कहते हैं।
शासन को विचारना होगा हमारा यह कैसा प्रशासन है जो जनता की तासीर को इतना भी नहीं समझ पाया कि ,वो क्या चाह रहा है, क्या सोच रहा है। प्रशासन सरकार तक स्थिति की वास्तविकता व जैत खम्भ की घटना को क्यों सही ढंग से नहीं पहुंचा पाया। लम्बे अंतराल तक गरमा गरमी चलती रही। अनेक बैठकें हुई। मांगे सामने आई। उस पर फैसला क्यों नहीं हो पाया। प्रशासन समाधान तक क्यों नहीं पहुंच पाया,निराकरण क्यों नहीं हो पाया। जिसके कारण सरकार को आज अपने बचाव में आने की जरूरत पड़ी। मंत्रीगणों को आरोप प्रत्त्यारोप पर उतरना पड़ा। खयाल रहे आरोप प्रत्त्यारोप का होना मूल घटना के तथ्यों से भटकाव का कारण भी बनता है। हमने वीभत्स झीरम हत्याकांड से सबक लेना चाहिए। जिसमें घटना के तत्काल बाद राजनीतिक आरोप प्रत्यारोपों की झड़ी लगा दी गई थी। किसी ने कहा कि मुख्यमंत्री रमनसिंह ने हत्या करवाई है। किसी ने उंगली अजीत जोगी पर उठाई। किसी ने शंका कवासी लखमा पर की। किसी ने कहा ऐसा क्यों, वैसा क्यों नहीं हो सकता। किसी ने कहा सबूत मेरी जेब में है। किसी ने कहा जांच में सच सामने आ जाएगा। कुल मिलाकर मामला आज तक उलझन में फंसा है। वैसी ही स्थिति इस मामले की ना हो इस बात का ध्यान रखना होगा। भले ही कोई हताहत नहीं हुआ हो लेकिन घटना उससे कम भी नहीं है। सैकंडों वाहन फूंक दी गई। कलेक्टर व एसपी कार्यालय को सरेआम जला दिया गया। करोड़ों की हानि हुई। भरपाई किससे होगी। भले ही गृह मंन्त्री ने कह दिया हो कि भरपाई आरोपियों से की जाएगी। ऐसे बयान आते तो देखें हैं , लेकिन छत्तीसगढ़ में कभी ऐसी वसूली देखी तो नहीं है। आगे देखा जाएगा गृह मंत्री सच बोलते हैं या सिर्फ कोरी बयानबाजी है। भाजपा सरकार ने कलेक्टर व एसपी को ना सिर्फ वहां से हटाकर बल्कि आईएएस व आईपीएस को सस्पेंड भी करके एक प्रकार से अप्रत्यक्ष रूप से यह इशारा किया है की गलती किसी की नहीं है गलती इन दोनों अफसरों की है। क्योंकि आईएएस व आईपीएस अफसर की किसी बेहद गंम्भीर व प्रमाणित तथ्यो के प्रकट हो जाने पर ही स्पेंड करने की कार्यवाही की जाती है। प्रचलन तो यही है। कुल मिलाकर कोशिश यह होनी चाहिए कि भविष्य में कभी ऐसी घटना की पुनरावृति न हो।