Home बाबू भैया की कलम से जो है वो तो हइये है, सिर्फ सरकार बदली

जो है वो तो हइये है, सिर्फ सरकार बदली

39
0

वही कानून व्यवस्था,वही रेत माफिया,वही कोल माफिया,वही राइस मिल माफिया ,वही महादेव एप, वही शराब का धंधा,(अहाता प्लस में), वही का वही ,जैसा का वैसा चलता हुआ सिस्टम। कुछ तो नहीं बदला, बस बदली है तो सरकार। तब कांग्रेस की भूपेश बघेल की सरकार गद्दी पर बिराजमान थी। अब विष्णुदेव साय की भाजपा सरकार गद्दी पर बैठी है। कद काठी व कर्म प्रभाव के साथ मंत्रीगणों में विभागों का बटवारा। नए लोगों को भारी भरकम विभाग , और पुराने चेहरों को सम्मानजनक विभाग बांट दिए गए।काबिल व्यक्तित्व के धनी विजय शर्मा को प्रदेश की कानून व्यवस्था की नब्ज पकड़ा दी गई। पहली बार विधायक पद पाया। गृह विभाग जैसा वजनी व तनाव देने वाले विभाग की जिम्मेदारी मिली। सर पर ओले पड़े वाली कहावत चरितार्थ होने लगी। रोज हिंसा करने वाले ,पूरे देश की व्यवस्था को ना मानने वाले नक्सलियों को ललकारने की जगह पुचकारने का काम कर बैठे। कह दिया हम जहां कहो बात करने तैयार हैं। मुख्य धारा में आ जावो। इधर बात करने की पेशकश की उधर सुरक्षा बलों ने नक्सलियों का मुठभेड़ में व्यापक संहार करना शुरू किया। बात चर्चा के स्थान पर टकराव पर आकर टिक गई। अनेकों नक्सली मारे गए। आपसी चर्चा की जगह मुक़ाबले की बात शुरू हो गई। मुकाबले का सिलसिला बरसात में भी जारी है। पूरा मुकाबला नक्सलियों पर केंद्रित सा हो गया। इधर प्रदेश में रोज चाकूबाजी,अनैतिक कर्म,शराब खोरी,महिलाओं से चैन स्नेचिंग,मारपीट,लूट,घरेलू हिंसा और हत्याओं की घटनाओं के साथ, अनेक घटनाओं को असामाजिक तत्व बेखौफ अंजाम दे रहे हैं। वह भी खास कर जहां सरकार का ठिकाना(राजधानी) है। राजधानी कांप रही है,महिलाएं खौफ में हैं,कोई बाहर जाए तो घर के लोग उसके वापस आते तक अनचाही आशंका से पीडि़त रहते हैं। तब ताम्रध्वज साहू थे तो भी यही हाल था। अब भी वही हाल है। तब यही चैन स्नेचिंग, हत्याएं,मारपीट,घरेलू हिंसा,आये दिन चाकूबाजी,लूट,महिलाओं से छेडख़ानी, अनैतिक कर्म के मामलों की खबरों से अखबार अटें पड़े रहते थे। आज भी वही हाल है। अखबार उठाओं तो सबसे बड़ी खबर इसी तरह की घटनाओं से बनी दिखती थी। तब और अब में कुछ अंतर अगर दिखाई देता है तो यह कि तब नक्सल मुठभेड़ की खबरें कभी कभार ही आती थी। नक्सल वारदत भी कम दिखाई पड़ रही थी। अब बहुत बढ़ रही हैं। वहीं यह भी की मुठभेड़ में रिकॉर्ड संख्या में नक्सल मारे भी जा रहे हैं। लोगों का कहना है ,तब सरकार हमलावर नहीं थी। अब हमलावर भी हैं। एक तरफ बातचीत की पेशकश,दूसरी तरफ हमला भी चल रहा है। कहा भी जाता है की एक्शन का ही रिएक्शन होता है।
इधर निचले स्तर पर हो या ऊंचे, भ्रष्टाचार अपने स्तर पर तब भी कायम था, अब भी कायम है। इसका सबूत भले ही नहीं दिया जा सके पर जो इस भ्रष्टाचार को स्वयं भोग रहे हैं।सभी स्तर पर दैनंदिनी अहसास कर रहे हैं। उन्हें तो सरकार बदलने का अहसास भी इस मामले में नहीं हो पा रहा है। जो चल रहा था वही अब भी चल रहा है। किसी भी स्तर पर कुछ भी बदला नहीं जा सका है। तब की सरकार पर भाजपा हमलावर हुआ करती थी यहाँ तक कि भ्रष्टाचार के आरोपों का ऐसा नैरेटिव गढा गया कि, कांग्रेस की मजबूत दिख रही सरकार ही जाती रही।वर्तमान सरकार की वही आलोचना ,आरोप प्रत्त्यारोप ,उन्हीं शब्दों के साथ, कांग्रेस कर रही हैं। आज की हो या तब की सरकार इस विषय पर कुछ करना भी चाहे तो कुछ कर नहीं पाई। ईडी -आयकर-सीबीआई ने प्रदेश में बहुत कुछ किया। बड़े बडे चेहरों को जेल की दीवार के पार पहुंचा दिया। क्या इतने भर से शराब बिक्री में घपला,कोयला में कमीशन,लेव्ही चावल में कमीशन,रेत माफियाओं से सांठगांठ बंद हो गया। क्या राम राज्य आ गया। सब तरफ सब ठीक ठाक हो गया। आज भी सब चल रहा है बस कहीं कहीं पर चेहरे बदल रहे हैं। सरकार बदली है सिस्टम तो वही का वही है। उसका काम करने की राह भी वही है, घुड़सवार भर तो बदला है, घोड़ा तो वही है और उसी चाल से चल रहा है। जिस चाल में चलने की आदत उसे है। घुड़सवार कितना ही रास खींच ले उसे फर्क पडऩे वाला नहीं है। सिस्टम समय की नजाकत देख कर अपनी चाल धीमी जरूर कर लेता है, पर अपना तय रास्ता नहीं छोड़ता। उन्नीस-बीस का फर्क भर दिखाई पड़ जाय तो, सिस्टम की मेहरबानी। लंबा समय गुजर गया प्रजातंत्र को अपनाए हुए। कितने सपनों के साथ लोग सत्ता में आते देखे। अपवाद छोड़ सभी को कमोबेश सिस्टम में ढलते ही देखा है। लड़ते हुए अपवाद ही देखा है। जो थोड़ा बहुत लडऩे का प्रयास करते भी हैं। उन्हें मुख्य धारा के किनारे बैठने मजबूर कर दिया जाता है। ये अजीबो गरीब मजबूरी आज देश-प्रदेश के राजनीतिज्ञों में लडऩे की क्षमता को घटा रही है और बहती गंगा में हाथ……., के लिए मजबूर बना रही है। सिस्टम से मुकाबला ,नक्सल समस्या,भ्रष्टाचार, हो या माफियाओं से मुकाबला जैसी समस्यायों का निदान एक संस्था के बस की बात नहीं। यह सबके सामूहिक प्रयास से संभव हो सकने की आशा की जा सकती है। सिर्फ सरकार बदलने पर आरोप प्रत्त्यारोपों से यह नहीं हो पायेगा। अगर वास्तव में समाधान खोजना है तो किसी की गिरेबान में हाथ डालने के पहले अपने अपने गिरेबान में पहले झांक कर देखना होगा। वो भी पूरी ईमानदारी के साथ। तो ही कुछ सही समझ में आएगा और तभी कुछ उम्मीद की जा सकती है। अन्यथा जो है वो तो हइये है। यही कहा जाएगा कि होइ है वही जो राम ……..