हिमांचल प्रदेश के चुनाव निपटने के पहले एक चर्चा हमारे प्रदेश में चली थी कि क्या मोहन मरकाम प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाएंगे या रहेंगें ? इसी बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को हिमांचल प्रदेश में चुनाव ऑब्ज़र्वर के रूप में नियुक्त कर दिया गया वे वहां व्यस्त हो गए। छतीसगढ़ के इस भावी परिवर्तन की चर्चा लगभग बंद सी हो गई। संगठन में बदलाव का इंतजार कर रहे लोगों ने समझ लिया कि हिमांचल प्रदेश के परिणाम आने के बाद ही अब कुछ संभव है। जैसे ही हिमांचल के परिणाम आये और वहां कांग्रेस की सरकार बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ वैसे ही चर्चा चल पड़ी कि अब प्रदेश संगठन में बदलाव हो सकता है। हिमांचल में भूपेश बघेल के छतीसगढ़ मॉडल के प्रचार ने जादू कर दिया। राजनीति में कद व पद का बड़ा महत्व माना जाता है। पद तो पहले से ही बड़ा है ही, भूपेश बघेल को हिमांचल के चुनाव की सफलता ने और वहां मुख्यमंत्री के चयन करवाने में उनकी भूमि का के चलते उनका राष्ट्रीय नेतृत्व की नजर में कद भी और बढ़ गया है, यह मानने वालों की बड़ी संख्या है। छतीसगढ़ में जीत के बाद 2018 में कौन बनेगा मुख्यमंत्री की कवायद में बाजी मारने वाले भूपेश बघेल ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। प्रदेश के बड़े बड़े दिग्गजों को पीछे छोड़ते हुए वे काफी आगे बढ़ गए। अनेक उतार चढ़ाव देखते हुए वे आज राष्ट्र व राज्य में अच्छी प्रतिष्ठा पा चुके हैं। आज की स्थिति में छतीसगढ़ का कोई भी निर्णय भूपेश बघेल को छोड़ कर करने की बात असंभव सी लगने लगी है। हर मायनों व प्रत्येक फ्रेम में कांग्रेस हाई कमान की नजर में भूपेश बघेल ने अपना अग्रणी स्थान बना लिया है। अब उन्हें पहले की तरह हाई कमान के पास तक पहुंचने के लिए किसी बिचौलिए या माध्यम की कोई जरूरत नहीं रहती है। वे जो बात हाई कमान तक पहुंचना चाहते हैं। जिस भाषा व मायनों में पहुंचना चाहते हैं, स्वयं पहुंचा सकते हैं। इस बदली राजनैतिक परिस्थितियों में प्रदेश का निर्णय एकतरफा हाई कमान कर ले, यह लगता नहीं है। यह भी सच है कि इन दिनों में मोहन मरकाम ने भी हाई कमान से अपनी नजदीकियां कायम की हैं। जिस तरह भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने उनको महत्व दिया वह भी बड़ा महत्वपूर्ण है। प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी समाज से हैं। उन्हें हटाया गया तो आदिवासी समाज का सदस्य ही अध्यक्ष बनेगा यह राजनैतिक विश्लेषकों की राय है। मरकाम ने प्रदेश अध्यक्ष रहते बहुत काम किया है। खास कर बस्तर क्षेत्र में माहौल बनाने का काम किया है, मेहनत की है। यह माना जा रहा है कि इन बातों को भी प्रदेश अध्यक्ष का चयन करते समय विचार में रखना होगा। एक बात और कि दोनों दलों की प्रारम्भिक चुनावी कवायद देख कर यह लगभग दिखाई देने लगा है कि आने वाले चुनाव में ओबीसी व आदिवासी वर्ग पर दलों का मुख्य लक्ष्य केंद्रित होगा। भाजपा ने दो बड़े पदों पर प्रदेश में संबसे अधिक जनसंख्या होने के आधार पर ओबीसी कार्ड खेला है। दोनों पदों पर अरुण साव व नारायण चन्देल के रूप में ओबीसी नेताओं को तवज्जो दी है। दोनों ने मेहनत भी करना शुरू कर दिया है। अब कांग्रेस में उम्मीद की जा रही है कि संगठन में बदलाव होगा। यह भी साफ दिखाई दे रहा है कि किसी भी नियुक्ति के निर्णय में अबकी बार भूपेश बघेल की मर्जी का सबसे बड़ा रोल रहेगा। हाई कमान भी चुनावी वर्ष के पूर्व कोई जोखिम नहीं उठाना चाहेगी। दोनों ही बातें अपनी अपनी जगह प्रभाव डालेंगी। देखने वाली बात होगी कि मोहन मरकाम ही रिपीट होते है या भूपेश बघेल की पसंद का कोई नेता इस पद पर काबिज होगा। चुनावी टिकट वितरण के दौर में प्रदेश अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके मद्दे नजर मुख्य मंत्री व प्रदेश अध्यक्ष का तालमेल बहुत महत्वपूर्ण तथ्य होता है। मुख्यमंत्री कभी नहीं चाहेंगे कि प्रदेश अध्यक्ष ऐसा हो जिसके बीच तालमेल का हो।