धीरे-धीरे ही सही, इस देश में आत्म गौरव, आत्मसम्मान और अपनी श्रेष्ठ परंपराओं के प्रति आदर का भाव विकसित होता जा रहा है। यह संतोष की बात है। वरना तो बीच में ऐसा दौर भी आया कि इस सनातन राष्ट्र के लोग इस बात को भूल ही गए थे कि वे किस देश में रह रहे हैं और इस देश की महान परंपरा क्या है। जो राष्ट्र अपने अतीत को भूल जाता है, वह धीरे-धीरे नष्ट होने लगता है। भारत में तथाकथित आधुनिकता के कारण आज भी ऐसे अनेक लोग हैं, जो अतीत को नकारते हैं और वर्तमान के सत्य को स्वीकार करके उसी में जीने की कोशिश करते हैं। लेकिन ऐसे लोग इस बात को भूल जाते हैं कि आज जो वर्तमान है, वह अतीत की कोख से उपजा है। कोई पेड़ अचानक पेड़ नहीं बनता। उसकी जड़ जमीन के भीतर होती है, जिसके सहारे वह विशालकाय पेड़ बनता है । देश भी एक हरा-भरा वृक्ष है और उसकी जड़ अतीत है, और वह अतीत गौरवशाली है। हम लाख आधुनिक बन जाएँ लेकिन हमें या नहीं भूलना चाहिए कि इसस राष्ट्र की संस्कृति, सभ्यता कितनी महान रही है। तभी तो भारत देश विश्व गुरु कहलाता रहा है। पूरी दुनिया के अनेक देश जब पिछड़े हुए थे, बदहाल थे, तब अपना देश शैक्षणिक क्षेत्र में काफी आगे था। यहॉ दूध-घी की नदियां बहा करती थीं। लेकिन जैसे-जैसे इस देश में आक्रमणकारी आते गए, इस देश की संस्कृति, महानता क्रमश: नष्ट होती गई। देखते-ही-देखते यह देश सदियों तक गुलामी का दंश भोगते-भोगते भूल ही गया कि वह क्या था। इसी किसी बात को याद दिलाते हैं तो राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने सौ साल पहले लिखा था, हम कौन थे क्या हो गए/ और क्या होंगे अभी/ आओ विचारें आज मिलकर/ये समस्याएं सभी। इस कविता के परिपार्श्व में उन्होंने बताने की कोशिश की है कि हम कौन थे, यानी विश्व गुरु थे, मगर अब क्या हो गए हैं, मतलब अभी गुलाम होकर अपने जीवन मूल्यों से कटते जा रहे हैं , इसलिए वे कहते हैं कि समय आ गया है कि जो वर्तमान की विसंगतियां हैं,उस पर हम विचार करें। अब धीरे-धीरे लोग समझ रहे हैं। यही कारण है कि 26 दिसंबर को केंद्र सरकार ने दो महान छोटे साहबजादों के बलिदान को याद करते हुए वीर बाल दिवस घोषित किया है। यहां यह बताना बहुत जरूरी है कि ये वीर बालक कौन थे। 26 दिसंबर वह काला दिन है, जब गुरु गोविंद सिंघ जी के दो पुत्र बाबा जोरावर सिंघ जी (आठ वर्ष) और बाबा फतेह सिंघ जी (पाँच वर्ष) की शहादत हुई थी। इन दोनों नन्हें वीर बालकों अपनी जान देना मंजूर किया, मगर अपना धर्म बदलना स्वीकार नहीं किया। पंजाब के सरहिंद के नवाब नीच वजीर खान ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को फतेहगढ़ साहिब की बेहद ठंडे बुर्ज में कैद कर लिया था और बाद में दोनों को बच्चों से कहा कि तुम इस्लाम धर्म कबूल कर लो! तो बच्चों ने इंकार कर दिया। उनके द्वारा दृढ़ता पूर्वक मना कर दिया, बस यही दुहराते रहे, जो बोले सो निहाल सतश्री अकाल! वजीर खान ने बच्चों को खूब धमकाया, डराया पर वीर बालक नहीं डरे तो दोनों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया। ऐसे महान शहीद बच्चों की याद में अगर वीर बाल दिवस मनाया जाता है तो यह अच्छी बात है। हालांकि सिख समुदाय के कुछ लोगों का मानना है कि इसे वीर बाल दिवस के बजाय वीर साहिबजादा या वीर बाबा दिवस करना चाहिए था, वह ज्यादा सही होता। बहरहाल, एक अच्छी शुरुआत तो हुई है। इसी बहाने गुरु गोविंद सिंघ के बच्चों की शहादत को याद तो किया जाएगा ।गुरु गोविंद सिंघ जी के अन्य दो बच्चे भी धर्म की राह पर शहीद हो गए थे। बाबा अजीत सिंघ और बाबा जुझार सिंघ मुगल सेना से लड़ते हुए पहले ही शहीद हो गए थे और दो नन्हे बच्चे जिंदा चुनवा दिए गए। 26 दिसंबर उन्हीं महान बच्चों की याद में अब मनाया जाने लगा है। दिवस का नामकरण कुछ भी हो लेकिन उसको मनाने के पीछे की भावना बहुत बड़ी है। इस दिवस के बहाने गुरु गोविंद सिंघ के चारों पुत्रों के बलिदान को याद किया जाना जाता रहेगा और नई पीढ़ी को उनके बारे में पता चलेगा। आज के बच्चों को यह संदेश मिलेगा कि किसी भी तरह के अन्याय के विरुद्ध बच्चों को हस्तक्षेप करना चाहिए। अन्याय के सामने सिर नहीं झुकाना, भले ही हमें अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े। इस तरह का बलिदान करने वाले इतिहास में शहीद के रूप में याद किए जाते हैं। आज हम गुरु गोविंद सिंघ जी के चारों बच्चों को महान शहीद के बालक के रूप में ही याद करते हैं। इन बच्चों के साथ-साथ हम गुरु गोविंद सिंघ जी की महानता का भी स्मरण करते हैं।