लोग पहले ही कह रहे थे। कांग्रेस तो इस बात को खुल कर कह चुकी है। भाजपा छतीसगढ़ में भी हिन्दू-मुस्लिम के बीच खाई खोदकर साम्प्रदायिक राजनीति की ओर ध्यान केंद्रित करेगी। सात राज्यों के अगले चुनावों में भाजपा के प्रचार के दौरान हिन्दू अचानक फिर खतरे में आ जायेगा। छतीसगढ़ व अन्य राज्यों में अपने इसी एजेंडे पर भाजपा ने अपना काम भी शुरू भी कर दिया है। छतीसगढ़ से इसकी शुरुवात नारायणपुर जिले से हो चुकी है। धर्मांतरण के मुद्दे को फिर एक बार हवा दी गई है। वहां लगी चिंगारी को चुनाव के पहले तक धीरे धीरे हवा देते हुए आग के रूप में तब्दील करने की तैयारी होगी। नेताओं के आरोप प्रत्यारोपों से तो यही प्रतीत होता है। प्रदेश सरकार को भी खुफिया विभाग ने इसी मुद्दे पर सतर्क किया है। कहीं भी कुछ भी घट सकता है। इस दल के अनुसांगिक संगठन के लोग टिड्डी दल की भांति फैल कर ,खास कर आदिवासी क्षेत्रों में अपने हिन्दू इतिहास व परम्पराओं को जीवित करने में जुट गए हैं। अभी इस मामले में कबीर के धाम के बाद नारायण की पुरी में मिली सफलता ने उत्साह दोगुना कर दिया है।आग भड़का दी गई है। विस्तार होगा यह पूरी संभावना है। यही रिपोर्ट प्रदेश खुफिया विभाग ने सरकार को दी है। सरकार ने ज्यादा देरी न करते हुए 1987 से बोतल में कैद रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) के जिन्न को फिर से बाहर निकाल कर जिलों के मुखियाओं के पास खुला छोड़ दिया है। जिन्न के लिए आदेश है कि जिसे भडकाते देखे, उसे अपने घेरे में ले लिया जाए। एक अजूबा जो किसी को समझ नहीं आ रहा है। शायद कभी समझ आएगा भी नहीं। धर्मांतरण तो मध्यप्रदेश शासन काल से आज तक निरंतर जारी है। देश में भी जारी है। कभी कम कभी ज्यादा यह शुरू ही रहता है। संविधान के अनुच्छेद 24-25 के द्वारा धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। उसमें लिखा गया है कि अंत:करण की और धर्म के अबाध रूप से मानने ,आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता- लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के रहते हुए,सभी व्यक्तियों को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने ,आचरण करने,प्रचार करने का सामान हक होगा। एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह दलील दी गई थी कि प्रचार करने के अंतर्गत धर्म परिवर्तन का अधिकार है। न्यायलय ने इस दलील को अस्वीकार कर दिया। तब मध्यप्रदेश व उड़ीसा राज्य ने विधान पारित करके किसी व्यक्ति का बलपूर्वक ,कपटपूर्वक,या लालच देकर धर्म परिवर्तन करना दंडनीय अपराध बना दिया गया। इस अधिनियम को बाद में अरुणाचल प्रदेश ने भी अपनाया। दरअसल के .सी .नियोगी की अध्यक्षता में गठित समिति ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। कहा गया था कि ईसाई मिशनरी बल व कपट द्वारा धर्म परिवर्तन करने में लगे हुए हैं। इसी नियोगी कमेटी के रिपोर्ट को आधार बना कर राज्यों ने यह अधिनियम बनाए थे। वास्तव में देखा जाए तो धर्मांतरण राष्ट्रीय समस्या है और इस पर केंद्रीय कानून बनाना चाहिए। ऐसा भी नहीं है कि केंद्र स्तर पर इसके प्रयास नहीं हुए। ओम प्रकाश त्यागी ने 1977 में इन अवांछित गतिविधियों को रोकने के लिए एक विधेयक लोक सभा में प्रस्तुत किया था। यदि यह विधेयक पारित हो जाता तो सम्पूर्ण भारत में लागू हो जाता। कुछ तत्वों ने इस विधेयक के विरुद्ध बहुत शोर मचाया। ऐसा लगा मानों ईसाई धर्म पर प्रतिबंध लगाया जा रहा हो। लोक सभा के विघटन के साथ ही यह विधेयक व्यपगत हो कर ठंडे बस्ते में चला गया। तब से आज तक यह मुद्दा हिंदुत्व जगाने के राजनैतिक साधन के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। लगता तो यही है कि कोई इस समस्या का स्थायी हल नहीं करना चाहता। हमारे छतीसगढ़ के निर्माण के बाद स्व.अजीत जोगी पर धर्मांतरण के मामले में सर्वाधिक हमले किये गए। भाजपा को फायदा भी हुआ। उसकी ऐसी सरकार बनी की 15 साल तक बनी रही। धर्मांतरण तो तब भी चलता रहा लेकिन 15 साल उसकी चर्चा से भाजपा ने पूरी तरह परहेज किया। क्यों किया ? 2018 में फिर कांग्रेस की सरकार आई है। बोतल से जिन्न रूपी मुद्दा बाहर निकाल लिया गया है। चर्चाएं फिर शुरू हो गईं हैं। तेजी से हवा में फैलाया जा रहा है। आश्चर्य तो इस बात का है कि भाजपा की 15 साल सरकार रही लेकिन किसी ने नहीं सोचा कि मध्यप्रदेश – उड़ीसा-अरुणाचल की तरह अपना इस पर कानून बना लिया जाए। केंद्र में अपनी सरकार है, केंद्रीय कानून बनवा लिया जाए। कांग्रेस व भाजपा दोनों ने ध्यान नहीं दिया। कांग्रेस कह सकती है कि यह उनका एजेंडा ही नहीं है। कुल मिला कर जनता को यह समझ में आने लगा है कि धर्मांतरण का निदान कोई नहीं चाहता। लगता है कि सभी इस समस्या को जिंदा रखना चाहते हैं। समस्या रहेगी तो भाजपा को ही ज्यादा होगा। वर्ग भेद से हिदुत्व जागता है और भाजपा इसे जगा कर रखना भी चाहती है, हिदुत्व जागेगा, हिन्दू एक होगा। यही ध्रुवीकरण उसे सत्ता पर बनाए रखेगा। अब तो केंद्र ने भी कह दिया कि सात राज्यों के चुनाव जीतना जरूरी है। इसके लिए हिदुत्व व अपनी विरासत को बताना जरूरी है। चुनाव के केंद्र में यही मुद्दे होंगें। देखिए आगे आगे होता है क्या ?