राष्ट्रपिता महात्मा गांधी शहादत के पचहत्तर साल पूरे हो गए। गांधी विश्व के ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व थे जिनसे अनेक देशों ने प्रेरणा ली और उनके बताए रास्ते पर चलकर ही आजादी का संघर्ष किया। दुर्भाग्य की बात है कि गांधी जी की हत्या कर दी गई। उग्र राष्ट्रवाद की दुखद प्रवृत्ति के रूप में नाथूराम गोडसे ने गांधी को गोली मार दी ।उसे अपने कर्मों की सजा मिली। उसे फांसी पर लटका दिया गया। गांधी जी को मारने वाला तो मर गया मगर गांधी अब तक जिंदा है। जब तक यह दुनिया रहेगी, तब तक गांधीजी जीवित रहेंगे। उनके विचार हमेशा पूरी दुनिया को दिशा देते रहेंगे। गांधी के चिंतन-मनन को, गांधी के नवाचार को हर कोई मानता है। यही कारण है कि दुनिया के अनेक देशों ने गांधी पर डाक टिकट जारी किए। विश्व में सर्वाधिक मूर्तियां गांधी की ही लगी। इसका मतलब साफ है कि गांधी ने पूरी दुनिया को अपने कर्म से प्रभावित किया। हिंसा के बरअक्स अहिंसा का रचनात्मक अस्त्र लेकर गांधी ने जो आंदोलन किया, वह एक कीर्तिमान बन गया। आजादी की लड़ाई के दौरान जो क्रांतिकारी कभी हिंसा का सहारा लेकर आंदोलन कर रहे थे,उनको भी यह बात समझ में आई कि हिंसा से हम आजादी की लड़ाई नहीं जीत सकते इसीलिए उन्होंने भी वैचारिक युद्ध की राह पकड़ी। शहीद-ए-आजम भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों ने असेंबली में बम फेंककर आजादी का नारा बुलंद किया। लेकिन बम फेंकते हुए उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि कोई जनहानि ना हो। वे केवल बहरों को अपनी बात सुनाना चाहते थे, और उन्होंने अपनी बात सुनाई। पूरे देश ने उनकी बात सुनी। गांधीजी की अहिंसा आज भी हमारा मार्गदर्शन करती है। आज भी जब कभी आंदोलन करना होता है, तो लोग गांधीजी के रास्ते पर ही चलते हैं। सत्याग्रह करते हैं। अनशन करते हैं और मांगें मनवाने की कोशिश करते हैं। सात्विक तरीके से आंदोलन करके सरकार से अपनी मांग बनवाने की कोशिश गांधीवाद है। मगर दुर्भाग्य देखिए कि निहत्थे आंदोलनकारियों पर भी इस देश के पुलिस लाठी और गोली चलाती है। बिल्कुल अंग्रेजों की तरह। तब मेरे जैसे नागरिक को बड़ी पीड़ा होती है कि क्या इसी दिन के लिए हम आजाद हुए थे कि अपनी मांगों को मनवाने के लिए हमें भी अंग्रेजों के समय की तरह लाठी और गोली खानी पड़ेगी? कितना दुर्भाग्यपूर्ण दौर है कि इस देश का नागरिक कहने को आजाद हो गया है,मगर जो व्यवस्था ह
यानी सिस्टम वही है। अंग्रेजों की तरह। इसे बदलना होगा। अगर सही मायने में गांधी जी को हम श्रद्धांजलि देना चाहते हैं, तो हमारे सिस्टम को शपथ लेनी चाहिए कि हम किसी भी आंदोलनकारी पर लाठी नहीं चलाएंगे। गोलियां नहीं दागेंगे।ठीक है कि व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस की आवश्यकता है। उसके हाथ में लाठी भी रहे लेकिन उसका इस्तेमाल लोगों को नियंत्रित करने के लिए हो, लोगों के सिर फोडऩे के लिए नहीं ।कई बार पुलिस बेवजह आंदोलनकारियों को परेशान करती है। फिर लोग उत्तेजित होकर तोडफ़ोड़ करने लगते हैं,पुलिस को मजबूरी में लाठी-चार्ज करना पड़ता है। और कई बार अनावश्यक रूप से गोली भी चलानी पड़ती है। गांधीजी की शहादत के पचहत्तर वर्ष पर हम सब का संकल्प होना चाहिए कि हमारा पूरा सिस्टम अहिंसा के रास्ते पर चलकर के लोकतंत्र में होने वाले आंदोलन का सम्मान करे। और किसी भी आंदोलनकारी पर किसी तरह की हिंसक कार्रवाई न हो। अगर हम आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज करते हैं, उन पर गोली चलाते हैं तो समझना चाहिए कि यह आंदोलनकारियों पर नहीं महात्मा गांधी पर हमला है। उनके विचारों की हत्या है। गांधी जी का नाम लेकर आज भी सत्ताधीश ‘राजÓ कर रहे हैं। ये लोग वे गांधी को जीने का केवल ढोंग करते हैं। वक्त पडऩे पर अपने विरोधियों पर दमन-चक्र चलाते हैं। उनका सिर फोड़ते हैं। उन्हें जेलों में बन्द देते हैं। यह सीधे-सीधे गांधी का अपमान है। इस पाखंड से हर सत्ता देशों को ऊबरना चाहिए। देश में सुख-शांति, साम्प्रदायिक सद्भावना, सदाचार, नैतिकता इत्यादि गांधीजी के रास्ते पर चलकर ही अर्जित की जा सकती है।