एक फेक खबर के गंभीर परिणाम ने हरेक राष्ट्रभक्त व्यक्ति को गंभीरता से सोचने को मजबूर कर दिया है। घटना पिछले दिनों एक सिरफिरे की एक अदद पोस्ट की है। जिसमें उसने अपने पागलपन के कारण एक राज्य को भारी नुकसान पहुंचाने का काम किया। पोस्ट तमिलनाडु में काम करने आये बिहारी मजदूरों के बारे में थी। उसने शूट करके बनाई एक फेक वीडियो पोस्ट कर दी , जिसमें लिखा कि चेन्नई में बिहारी कामगारों को पीटा जा रहा है,मारा जा रहा है। मजदूरों को जान के लाले पड़ गये हैं। मजदूर पलायन कर रहे हैं। उनकी जान खतरे में है। इस खबर ने देश के साथ दुनिया को भी सोचने को मजबूर किया। नफरत की कट्टर राजनीति से उपजी यह पोस्ट राज्य और देश को कितना नुकसान पहुंचा सकती है। शायद उस पोस्ट करने वाले को पता था या नहीं कह नहीं सकते,लेकिन यह तो माना जाना चाहिए कि यह कट्टरवाद का पागलपंथ ही है। चर्चा है कि दक्षिण में हिंदी भाषी लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। हिन्दी भाषियों को वहां अनेक प्रकार का अपमान सहना पड़ता है।दक्षिण भाषी लोग देश के हिंदी भाषी को अपना नहीं मानते। चेन्नई में किसी से कुछ पूछो तो या तो अनमने भाव से जवाब देंगे या अनसुनी करके आगे बढ़ कर एक प्रकार से हिंदी भाषियों का अपमान ही करते हैं। अनुभव करने वाले अनेक लोगों ने यह बात बताई ,कि वहां बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। खैर ये तो हुई सुनी सुनाई बातों की चर्चा। असल मुद्दा ये है कि जो फेक वीडियो जारी किया गया उससे राज्य का किस प्रकार नुकसान हुआ। आज के अखबार में प्रकाशित समाचार देख कर यह आसानी से समझा जा सकता है। परम्परागत ढंग से हर साल लाखों की संख्या में देश के अन्य भागों से हिंदी भाषी मजदूर देश भर के विभिन्न राज्यों में कमाने खाने जाते हैं। खास कर बिहारी व छत्तीसगढिय़ा मजदूरों की भारी मांग है। क्योंकि ये लोग ज्यादा मेहनत कश होते हैं। छत्तीसगढिय़ा का तो सीधे सादे व ईमानदारी में पहला नम्बर माना जाता है। बिहारी मजदूर को कड़ी मेहनत में माहिरता हासिल है। उस वीडियो के प्रभाव में आकर होली दीवाली के समय अपने गांव लौट कर त्योहार के बाद सब फिर से वापस अपने काम पर पहुंचने लगते हैं। इस बार ऐसा नहीं हुआ। हुआ यह कि वीडियो के प्रचार ने शायद मजदूरों को डरा दिया है। लगभग दो लाख प्रवासी मजदूर काम पर नहीं लौटे। चेन्नई के हवाले से छपी खबर में लिखा है कि राज्य के कोयम्बटूर व त्रिपुर की अनेक गारमेंट फैक्टरियां मजदूरों के बिना सूनी पड़ी हैं। गारमेंट के साथ राज्य की अनेक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स के हब भी बंद पड गये हैं। लगभग 50 हजार छोटी बड़ी फैक्टरियों के उत्पादन पर भारी असर पड़ा है।चेन्नई की होटल इंडस्ट्रीज में भी भारी प्रभाव पड़ा है। 10 हजार के करीब होटल पर असर पड़ा है। गारमेंट के क्षेत्र में इन मजदूरों की उपस्थिति 60 प्रतिशत होती है। वहीं होटल,रेस्तरां,कैफ़े व बेकरी के बिजनेस में ढाई लाख प्रवासी मजदूर काम करते हैं। फेक वीडियों में दिखाए गए मजदूरों पर हमले के दृश्य मजदूरों को आज भी भयभीत कर रहे हैं। हालांकि शासन ने अनेक सकारात्मक प्रयास इस दिशा में किये हैं। प्रभावित कंपनियों के मानव संसाधन विभाग के अधिकारी फ़ोन करके मजदूरों को सुरक्षा की गारंटी दे रहे हैं ,लेकिन मजदूरों का भरोसा नहीं जम रहा है। खास कर उत्तर भारतीय मजदूर वापसी से कतरा रहे हैं। मालिकों का कहना है कि उत्पादन जारी रखना मुश्किल हो रहा है।उनका यह भी कहना है कि प्रवासी मजदूरों के बिना उत्पादन की कल्पना भी नहीं की जा सकती । इधर मजदूर चेन्नई छोड़ केरल ,कर्नाटक का रुख कर रहे हैं। स्थिति विषम हो रही है। चेन्नई में उड़ीसा,उत्तर प्रदेश, झारखंड व पश्चिम बंगाल के मजदूर कमाने जाते थे। सभी की रोजीरोटी का नुकसान हो रहा है। हरेक को सोचना होगा कि मात्र एक व्यक्ति की कट्टरवादी सोच राज्य व देश को कितनी भीतरी व गहरी चोट पहुंचा सकती है। यह हर उस संस्था को सोचना चाहिए जो देश में नफरत व जातिवादी तथा धार्मिक कट्टरता की सोच से काम कर रही हैं। इस घटना ने तो यही सीख दी है। कोई माने या ना माने। कहा भी गया है ,कि नहीं मानेंगें तो होई है वही जो..?