Home बाबू भैया की कलम से विधायकों की दिल्ली यात्रा बनाम भूपेश का बयान

विधायकों की दिल्ली यात्रा बनाम भूपेश का बयान

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भाजपा के 14 विधायक की प्रधानमंत्री से दिल्ली में मुलाकात के विषय पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का टोटका काम कर गया ? विधायक किस लिए जा रहे थे। यह तो उन्हीं सब को मालूम होगा ,लेकिन तरह तरह के कयास लगने शुरू हो गये थे। राजनीति के बड़े धुरंधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को अंदाज लग गया कि भाजपा के विधायकों की यह राजनैतिक यात्रा किसी हाल में उनके पक्ष में नहीं है। उन्होंने अपनी आला कमान के पक्ष समर्थन में अपनी सूरत जाने की राजनैतिक यात्रा से पहले रायपुर में राष्ट्रीय प्रभाव वाला एक धांसू बयान देकर अपनी चाल चल दी। उन्होंने कह दिया कि यह हमारे द्वारा अगले वित्तीय वर्ष में किसानों की मदद करने के लिए प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदने की घोषणा पर रोडा अटकाने जा रहे हैं। अगर प्रदेश के भले के लिए जाते तो साढ़े चार साल क्या कर रहे थे। बताया कि केंद्र ने हमारी एथेनाल बनाने के कारखाना लगाने की अनुमति नहीं देकर अड़ंगा लगाते हुए कहा था कि आप को अनुमति देंगे पर आपको हमारे एफसीआई से चावल लेकर बनाना होगा। हमारा प्रदेश धान का कटोरा वाला क्षेत्र है। हम चाहते हैं कि हमारे किसानों का शेष बचत धान का भी उपयोग हम करें। लाभ हमारे किसानों को हो। केंद्र सरकार ऐसा नहीं चाहती। प्रदेश के विकास को बाधित करते हुए, हमारे हक का पैसा जो हमें मिलना चाहिए वो भी नहीं दे रहे। पुरानी पेंशन योजना के लिए कर्मचारियों की जमा राशि लौटाने से इनकार कर दिया। और भी बहुत सी योजनाओं का हमारा हक का पैसा केंद्र सरकार रोक कर बैठी है। प्रदेश में जब से हमारी सरकार बैठी है ,तब से केंद्र की भाजपा सरकार छतीसगढ़ से असहयोग कर रही है। तब ये विधायक व भाजपा सांसदगण क्यों पीएम से प्रदेशहित की बात करने हमारे साथ दिल्ली चलने को तैयार क्यों नहीं हुए। कोई रुचि नहीं दिखाई। हमेशा प्रदेश में हमारी उप्लब्धियों का विरोध किया। प्रदेश की किसान हितैषी हमारी गंभीर योजनाओं का मखौल उड़ाया। हम पहले से 2500 से ज्यादा में धान खरीद कर किसान व ग्रामीणों की जेब में पैसा दे रहे हैं। हम उससे आगे जाकर और लाभ किसानों को देने के लिए प्रति एकड़ 20 क्विंटल खरीदने की घोषणा करते हैं तो ये परेशान होकर प्रधानमंत्री से गुहार करने जा रहे है कि इसे कैसे भी रोका जाए। ये आरक्षण को और कितना अटकाया जा सकता हैं। यह पूछने और सलाह लेने चुनावी वर्ष में दिल्ली जा रहे है। किसान का 20 क्विंटल ना ले सकें इसके लिए ये दिल्ली जाने तत्पर हैं। मुख्यमंत्री का यह राजनैतिक बयान साफ इशारा करता है कि ये विधायक किसानों के लाभ को रोकने का काम करने प्रधानमंत्री के पास जा रहे हैं। इन आरोपों में सच्चाई कितनी है, ये तो हम नहीं बता सकते, लेकिन राजनैतिक रूप से इसे राजनैतिक बयानबाजी का मास्टर स्ट्रोक कहा जा सकता है। वो इस मायने में कि मुख्य मंत्री के इस बयान का स्वरूप राष्ट्रीय था। सूरत जाने के समय के बयान को राष्ट्रीय न्यूज़ बनना ही था। यह बयान भी साथ में प्रमुखता से शामिल हो गया। असर पीएमओ पर भी पड़ा होगा। विधायक गण कह रहे थे कि उन्होंने सत्र के समय भेंट की इच्छा जताई थी। अब प्रधान मंत्री के बुलावे पर जा रहे हैं। प्रधानमंत्री का बुलावा कहने से ही पीएमओ ने विचार किया हो कि यह भेंट कहीं किसानों पर विपरीत असर ना डाल दे। कहीं यह प्रचार ना कर दिया जावे कि पीएमओ प्रदेश की किसान हितैषी योजनाओं में कहीं अड़ंगा डाल रही है ? नफा नुकसान के आंकलन के साथ ही संभवत: प्रधान मंत्री कार्यालय ने कर्नाटक चुनाव की व्यस्तता की बात कह कर खुद के बुलावे के बाद भी इस मुलाकात को रोकना ही ठीक समझा हो। चुनावी वर्ष में किसी प्रकार का रिस्क लेने से बचना चाहिए। इसी सोच ने शायद इस मुलाकात पर पानी फेर दिया हो। हालांकि भाजपा नेताओं के पास इसका जवाब जरूर होगा। सियासत में जो पहले बाजी मार ले वही सिकंदर होता है। राजनैतिक बयान की दौड़ में प्रदेश के मुख्यमंत्री बाजी मार ले गए ,यह कहा जा सकता है। अब भाजपा कौन सा कदम उठाती है जिसे वह जनता की नजर में खासकर किसानों की नजर में वर्तमान सरकार की ग्रामीण आधारित योजनाओं से आगे जाती दिखे, यह देखने वाली बात है। अभी तक तो ऐसा नजर नहीं आ रहा है सिर्फ भष्ट्राचार के आरोप लगाने से चुनावी वैतरणी पार लगाना मुश्किल लगता है। कोई ठोस मुद्दा ढूंढना होगा जो अब तक हासिल नही हुआ है।