Home मेरी बात शंकराचार्य की दो टूक !

शंकराचार्य की दो टूक !

30
0

पिछले दिनों पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने रायपुर प्रवास के दौरान मीडिया से चर्चा करते हुए रायपुर में कुछ महत्वपूर्ण बातें कहीं । उस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है। उन्होंने तीन चार मुद्दे उठाए। उन पर फिर कभी अपनी बात रखूँगा, फिलहाल एक मुद्दे पर ही यहां बात करना चाहता हूँ। उन्होंने दो टूक कहा कि ”नक्सलवाद को पनपने देने में पक्ष और विपक्ष के राजनेताओं का सहयोग है । ये लोग अगर नक्सलियों से हाथ मिलाना बंद कर दें,तो नक्सलवाद खत्म हो जाएगा। हालांकि उनका यह आरोप पूरी तरह से सच नहीं है। मुझे नहीं लगता कि कोई भी राजनेता चाहेगा की नक्सलवाद पनपता रहे। नक्सलियों ने जिस क्रूरता के साथ बड़े-बड़े नेताओं और सुरक्षाकर्मियों की हत्याएं की हैं, उसे देखते हुए यह आरोप लगा देना कि नक्सलियों को राजनेताओं का सहयोग मिल रहा है, अती होगी। हाँ,मैं यह मानता हूँ कि नक्सलवाद को खत्म करने की दिशा में हमारे राजनेता गंभीर नहीं रहे। पन्द्रह साल तक भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। वह भी उदासीन रही और वर्तमान कांग्रेस सरकार भी केवल बयानबाजी तक सीमित है । जबकि सरकार को निरंतर सुझाव दिया जाता रहा है कि नक्सलियों के साथ वार्ता करनी चाहिए,यह वार्ता त्रिपक्षीय वार्ता भी हो सकती है, जिसमें सत्तापक्ष के नेता रहें, विपक्ष के लोग भी रहें, नक्सली भी रहे और सामाजिक कार्यकर्ता भी। आखिर कोई बड़ी बात नहीं कि नक्सल समस्या खत्म न हो। नक्सलियों के जो मुद्दे हैं, उन मुद्दों पर बात हो ।उनका समाधान हो, तो बात खत्म हो जाएगी। लेकिन नक्सलियों को सिर्फ माफिया बनकर राज करना है तो यह अलग बात है। आज भी नक्सली बस्तर में आतंक फैला रहे हैं। ग्रामीणों की पिटाई कर रहे हैं ।मुखबिरी के शक में लोगों की हत्या कर रहे हैं। सुरक्षा व्यवस्था में तैनात जवानों की मौका पाते ही उनकी जान ले रहे हैं। नक्सलवाद का यह एक वीभत्स से चेहरा है जिसे फौरन से पेश्तर खत्म करने की आवश्यकता है। अगर शंकराचार्यजी राजनेताओं पर आरोप लगा रहे हैं तो उन्हें आत्ममंथन करना चाहिए कि ऐसी नौबत क्यों आई। क्यों लोग राजनेताओं पर शक कर रहे हैं ।इसका सबसे बड़ा कारण यही है राष्ट्रीय समस्या पर गंभीरतापूर्वक ध्यान ही नहीं दिया जा रहा। देश में हिंदू-मुसलमान का झगड़ा कोई समस्या नहीं है । यह तो स्थाई सिर दर्द है जो आजादी के बाद से लगातार बना हुआ है। इसे भी हमें झेलते रहना होगा, लेकिन नक्सलवाद को अब झेलना कठिन होता जा रहा है। बस्तर के विकास कार्य रुके हुए हैं। झारखंड में भी यही हालत है। नक्सली विकास के विरोधी हैं क्योंकि उन्हें पता है अगर सड़कें बन जाएंगी, आवागमन होने लगेगा, कारखाने खुलेंगे तो बस्तर का जनजीवन निरंतर खुशहाल होता चला जाएगा ।आज बस्तर के सुदूर गांव में रहने वाले आदिवासी भाई-बहनों को बाजार आकर सौदा-सुलफ़ करने के लिए घंटों पैदल चलना पड़ता है ।उन रास्तों पर पाँच दिन तक पदयात्रा करके मैंने और मेरे कुछ पत्रकार मित्रों ने सन 2014 में ही अनुभव किया था।ऊबड़ खाबड़ रास्तों या नालों को पार करके किस विषम स्थिति में हमारे आदिवासी बंधु बस्तर के हाट बाजार तक पहुंचते होंगे। अगर सड़कें बन जाएंगी, तो आदिवासी बंधु वाहनों के जरिए बाजार तक पहुंच सकेंगे। वनोपज बेच सकेंगे। लेकिन अभी यह संभव नहीं है। सिर्फ नक्सलियों के कारण। इसलिए ऐसे विकास विरोधी नक्सलियों का खात्मा बहुत जरूरी है। हालांकि कुछ नक्सली आत्मसमर्पण भी कर रहे हैं ,लेकिन इसकी रफ्तार बहुत कम है। जो आत्मसमर्पण कर रहे हैं ,उनके भीतर मनुष्यता के संस्कार अंकुरित होते हैं। उन्हें पश्चाताप होता है कि वे बेवजह निर्दोषों का खून बहा रहे थे
हमें यह काम नहीं करना चाहिए । लेकिन जिनके हृदय में अभी भी पशुता व्याप्त है, वे सब नक्सलवाद से जुड़े हुए हैं, हत्या कर रहे हैं और सोचते हैं कि क्रांति हो रही है। अब समय आ गया है कि हम सब आदरणीय शंकराचार्य के आरोपों पर गंभीरतापूर्वक विचार करें और जितनी जल्दी हो सके नक्सलवाद को खत्म करने के लिए पहले तो संयुक्त सम्मेलन बुलवाएं, जिसमें हर दल के लोग शामिल हो ।उन सब से सुझाव आमंत्रित किए जाएं और हर दल के प्रतिनिधि एकत्र होकर नक्सलियों से बात करने के लिए बस्तर जाए। वहां जाकर नक्सलियों से पूछे तो सही कि पार्टनर! तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है ? जितनी जल्दी है यह कार्य संपन्न हो सके, उतना अच्छा है । नक्सलवाद खत्म होगा, तो छत्तीसगढ़ के हर नागरिक को प्रसन्नता होगी। पूरे देश को खुशी होगी ।शंकराचार्य जी को तो खैर होगी ही होगी।