छतीसगढ़ में गोबर गौठान की राजनीति गर्माने लगी है। देश का पहला राज्य होगा जिसमें गोबर में भी विपक्षी दल ने घोटाला खोजने का काम शुरू कर दिया है। भाजपा ने यह बीड़ा सरकार के कार्यकाल के अंतिम वर्ष यानी चुनावी वर्ष में बड़ी शिद्दत से उठा लिया है। पूरे प्रदेश की हर विधानसभा में यह एक अभियान की तरह चल रहा है। बड़े छोटे सभी नेता कार्यकर्ता रोज एक या उससे अधिक गौठान में जा रहे हैं। कह रहे हैं कि यहां कोई व्यवस्था नहीं है,सब गड़बड़ी है। अखबारों में उनकी खिंचाई फ़ोटो के साथ समाचार भाजपा नेताओं के हवाले से छप रहे हैं। 1300 करोड़ के घोटाले का आंकलन भी कर लिया गया। आरोप भी इसी आंकड़े के साथ छतीसगढ़ सरकार पर चिपका दिया गया। मजेदार बात यह है कि साढ़े चार साल बाद ये आरोप चुनावी वर्ष में लगाए जा रहे हैं। कितना असर डालेंगें या नहीं डालेंगें इसका अनुमान लगाना भी अभी मुश्किल है। जानकर लोगों का कहना है कि देर हो गई है। यही काम भाजपा को दो वर्ष पहले ही शुरू कर लेना था। अब जनता इसे बहुत अधिक गंभीरता से लेगी, एसी संभावना जरा कम लगती है। कहा गया कि भाजपा की आदर्श संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के “कुछ” सदस्य गोबर गौठान व गौवंश की रक्षा के लिए वर्तमान सरकार को धन्यवाद देने सशरीर सीएम हॉउस गए। उन्होंने सीएम से भेंटकर उन्हें सीधे इस कार्य के लिए बधाई दी थी। आरएसएस संस्था में एक बात तो है कि अच्छे को अच्छा व बुरे को बुरा बोलने का साहस है। जो सही करे वो उसे सही कह देते हैं। विचारों व संस्कृति की रक्षा के लिए समर्पित यह संस्था सही काम व बुरा काम में अपने पराए का भेद नहीं करती।अब ऐसा क्या हो गया कि इस चुनावी वर्ष में गौठान का काम खराब हो गया। शायद चार साल ठीक रहा होगा, इसलिए विपक्ष चुप रहा होगा। एकाध बार विधानसभा में किंचित प्रश्नोत्तरी में विरोध दर्ज जरूर किया गया ,लेकिन इतनी गंभीरता से नहीं लिया गया , जिसकी चर्चा प्रदेश में या अखबारों में हुई हो। जो सद्गुण किसी सेवा भावी संस्था में होता है वह सदगुण राजनीति में नहीं होता। भाजपा ने जो तरीका अपनाया है, हमें तो लगता है कि यह फार्मूला कारगर भी हो सकता है। वह तब होगा जब जहां जहां गौठानों में बेहतर काम हो रहा है, उसकी तारीफ भी की जाए। साथ ही जहां खराब हो रहा है, वहां की आलोचना सकारात्मक ढंग से सरकार की आंख खोलने की शैली में हो। ताकि सरकार उस पर ध्यान दे सके, आम जनता पर असर भी हो। यह काम दो साल पहले किया जाता तो बहुत असर पड़ता। लोग कहते हैं कि विपक्ष अपनी सही भूमिका निभा रहा है। सकरात्मक प्रयास के बाद भी अगर अब तक खराबी वाले गौठानों में स्थिति नही सुधरती, तो आज के हो रहे प्रयासों में वजन होता। राजनीति के आसपास रहने वालों व उसे समझने वालों का मत है कि अनेक मुद्दों पर राजनीति करने के बाद विपक्ष ने समझ लिया कि शांति के टापू छतीसगढ़ में ये उग्र सोच वाले मुद्दे कम प्रभाव डाल रहे हैं। कर्नाटक चुनाव ने नया मुद्दा दिया है। सरकार का भ्रष्टाचार। विपक्ष ने कांग्रेस को इसी मुद्दे पर जब कर्नाटक के चुनाव जीतते देखा तो छतीसगढ़ में अपनी रणनीति बदल दी। अब भ्रष्टाचार मुद्दा बनाया है। जनता के सामने सरकार को बदनाम करने का साधन खोजना शुरू किया गया। ध्यान गोबर-गौठान पर आकर टिक गया है। रणनीति सही है। गोबर-गौठान पर सवाल उठा कर विपक्ष सही खेल खेल रहा है। देर से ही सही विपक्ष ने अब वर्तमान सरकार के गांव-गरीब-किसान व ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुधार की सटीक राजनीति पर वार करना प्रारम्भ किया है। सफलता संदिग्ध भले ही हो पर रणनीति तो सटीक है। अखबारों में प्रचार का ढंग बदलना होगा। अपने नेताओं के खुद के बयानों व फ़ोटो के अखबारों में छपने का प्रभाव कम पड़ेगा। आये दिन टीवी डिबेट में आपको कांग्रेस के प्रवक्तागण छाती ठोक कर चुनौती दे रहे हैं कि हम चलते हैं आपके साथ , अगर कहीं भी घोटाला साबित हुआ तो वे इस्तीफा दे देंगे। उनकी चुनौती स्वीकार कर उन्हें बुलाइये उनके साथ जाकर दिखाइए कि कहां 1300 करोड़ की गड़बड़ी है। पत्रकारों को भी साथ ले जाइए आपके बयानों से नहीं जब स्वस्फूर्त अखबार नवीस देखेंगें और प्रतिनिधि के नजरिये से छपेगा तो ज्यादा सही व जनप्रभावी होगा। अन्यथा प्रदेश की जनता तो रोज आप लोगों के भ्रष्टाचार के आरोप प्रत्यारोपों को देख-सुन कर कन्फ्यूज़ हो ही रही है। सोचती है कि दोनों ही बेईमान हैं ,तो आखिर ईमानदार है कौन? एक खतरा भी है कि अगर जनता ने अपने मानस पटल पर यह बैठा लिया कि सभी अगर एक ही शैली से शासन चलाते हैं तो भ्रष्टाचार तो सामान्य बात हुई। तब क्या होगा जरा गंभीरता से सोचें।