Home इन दिनों ये सवाल इतिहास हमेशा पूछेगा…

ये सवाल इतिहास हमेशा पूछेगा…

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इसमें दो राय नहीं कि 28 मई 2023 को नवनिर्मित संसद भवन का उद्घाटन प्रसंग एक साथ कई इतिहास बनाने वाला है। ये इतिहास वैचारिक संकल्पबद्धता का, उसे दरकिनार करने का, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का, क्षुद्र और दीर्घकालीन राजनीति का, श्रेय न लेने-देने का और ऐसा करने न देने का श्रेय लेने का, हिंदुत्व की परिभाषा में सभी समुदायों के फिट होने का, स्वतंत्र भारत के एक और अनूठे वास्तुशिल्प के लोकार्पित होने का और इस बात को पुनर्परिभाषित करने का कि लोकतंत्र का वास्तुशिल्पीय स्वरूप क्या हो तथा यह भी क्या नई वास्तु भारत के डेढ़ सौ करोड़ नागरिकों के मनोभाव को प्रतिबिंबित करने में सक्षम है? बेशक सवाल कई हैं। नए संसद भवन का उद्घाटन महज एक रस्म अदायगी नहीं है, जिसे किसी ने भी निभा दिया। यह भावी पीढ़ी को सौंपी जाने वाली लोकतांत्रिक विरासत है, जिसके राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं को लेकर आने वाली नस्लें सवाल करती रहेंगी। यह उन चुनिंदा वास्तु शिल्पों में से है, जिसे हमने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अंगीकार करने के बाद बनाया है। अब यह लगभग तय है कि लोकतंत्र में निहित असहमति के सम्मान के मूल्य के बरखिलाफ नए संसद भवन के लोकार्पण समारोह में कांग्रेस और उसके नेतृत्व में 20 विपक्षी दल इस ऐतिहासिक आयोजन का बहिष्कार करेंगे। हालांकि नए संसद भवन के औचित्य, आवश्यकता वास्तुशिल्प को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं, लेकिन फिलहाल जिस बात को विरोध का मुद्दा बनाया जा रहा है, वो है देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बजाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों इसका लोकार्पण कराना। नए संसद भवन के लोकार्पण का बहिष्कार प्राथमिक तौर पर क्षुद्र राजनीति लगती है, लेकिन इसका संदेश गहरा और दूरगामी होगा। इसे केवल विपक्षी एकता की एक और कोशिश अथवा कर्नाटक चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस की बढ़ती आक्रामकता के तौर पर ही देखना सही नहीं होगा। जहां तक तकनीकी तौर पर संसद भवन के उद्घाटन की बात है तो प्रधानमंत्री को उतना ही अधिकार है। वैसे भी जब मोदीजी हर वंदे मातरम् ट्रेन को हरी झंडी दिखा रहे हैं तो ये तो संसद भवन का मामला है, उस संसद भवन का, जिसके वो नेता हैं और करोड़ों हिंदुओं के आदर्श हैं। लिहाजा यह उद्घाटन इस मायने में भी ऐतिहासिक है क्योंकि यह भव्य भवन एक हिंदू राजपुरुष द्वारा देखे गए सपने, एक हिंदू वास्तुशिल्पकार द्वारा डिजाइनीकृत, हिंदुत्व विचारधारा के पुरोधा की जयंती पर उद्घाटित, हजारों हिंदू श्रमिकों (जिनमें कुछ दूसरे धर्मों के भी हो सकते हैं) के हाथों निर्मित व भारत के विश्व गुरू बनने के मंगलाचरण का महाघोष करता स्थापत्य है। ऐसे स्थापत्य के लोकार्पण के लिए मोदी से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता। जहां तक कांग्रेस की बात है तो संसद भवन के लोकार्पण के बहाने वो जो मोदी विरोध का नरेटिव खड़ा करना चाहती थी, उसमें उसे आंशिक सफलता ही मिली है। क्योंकि 17 ऐसे विरोधी दल इस समारोह में शामिल हो रहे हैं, जिनके लिए मोदी समर्थन से ज्यादा कांग्रेस विरोध महत्वपूर्ण है तथा जो लोकतंत्र के इस नए मंदिर के उद्घाटन को दलीय दुराग्रहों से ऊपर उठकर देख रहे हैं। यानी विपक्ष भी पूरी तरह एक नहीं है।