Home बाबू भैया की कलम से शंकराचार्य ने बताया समाधान शराबबंदी के लिए पीना छोड़ दो

शंकराचार्य ने बताया समाधान शराबबंदी के लिए पीना छोड़ दो

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छत्तीसगढ़ सरकार के लिए शराबबंदी का वायदा गले की फांस बना हुआ है।कहा जाता है कि वह राजा लोकप्रियता हासिल करता है जो जनता की दैनंदिनी दिनचर्या में कम से कम हस्तक्षेप करता है।जीवन को अपने ढंग से जीने की आजादी प्रदान करता है।प्रजातंत्र की मूल मंशा भी यही मानी गई है। इतिहास में दफन अनेक राजतांत्रिक राजा-महाराजाओं व बादशाहों के किस्से इस मामले में दर्ज हैं। जिन्होंने जनता के जीवन में उनकी इच्छा व उनकी धार्मिक आस्थाओं में चोट पहुंचाने की कोशिश की तो उनका हश्र क्या हुआ।चाहे वो औरंगजेब, मो.तुगलक, चंगेज खान, सिकन्दर से लेकर हिटलर, मुसोलिनी व कोई अन्य हों या अंग्रेजी शासनकाल का काला साम्राज्य हो। 1947 में आजादी के बाद भारतवर्ष में प्रजातंत्र को भारत की जनता ने अपनाया।लगा अब इन सबसे हट कर कुछ अलग ही आने लगा है।आया भी पर जैसे जैसे हम आजादी के वर्षों को भोगते हुए अपने प्रजातांत्रिक शासकों के साथ आगे बढ़े तो सत्ता(तख्ते-ताऊस) का नशा चढऩा शुरू हुआ।बिना सुरक्षा के जनता के बीच बिंदास विचरण करने वाले नेता अपने कर्मों के कारण अब 20-20 कमांडो के बीच अपनी सुरक्षा के बाद भी सुरक्षित नहीं हैं। अपने जीवन की सुरक्षा के लिए चिंतित दिखाई दे रहे हैं।कोई दूसरा रास्ता नहीं मिल रहा तो प्रजातंत्र में राजाओं की तरह जनता पर अपनी मंशा थोपने का काम वोट पाने के चक्कर में शुरू कर रहे हैं। मुफ्त की रेवड़ी जिसे कहा जा रहा है वो राजनेताओं के घर के पैसे से नहीं बल्कि जनता के टैक्स के पैसे, उन्हें मदद के रूप में जनहित में लौटाने की प्रक्रिया मानी जानी चाहिए।यह जरूर कि मदद जरूरत मंदों को ही मिले यह तय होना चाहिए।कानून बनाने की शक्तियां होने के कारण सरकारें अब बंदिशों के सहारे भी वोट लेने की सोचने लगी है।जनता को सरकारों के बंदिशों के निर्णयों से अपनी प्रजातांत्रिक आजादी घुटती सी नजर आने लगी है। कभी कभी तो ऐसा भी सोचने लगी है कि क्या हम सच में अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुए हैं , या यह सिर्फ अहसास मात्र है ? इतनी बंदिशें इतने अवरोध और ऊपर से हर चीज मंहगाई के मार से ग्रस्त है। देश की जनता सोचती है कि अब आखिर विकल्प है क्या ? प.जवाहरलाल नेहरू से ,लाल बहादुर शास्त्री,गुलजारीलाल नंदा (दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री) इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरणसिंह,राजीव गांधी,विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर,पी.व्ही.नरसिम्हाराव,अटल बिहारी बाजपेयी,एच.डी.देवेगौड़ा , इंद्र कुमार गुजराल, मनमोहन सिंह, और अब नरेंद्र मोदी के रास्ते पर चल रहा यह महान देश भारतवर्ष, कभी भी महंगाई से निजात नहीं पा सका, ना गरीबी से ऊपर ही उठ पाया। बल्कि इस नए दौर में तो महंगाई के समर्थन करने वाले अंध भक्त भी देखने को मिल रहे हैं , जो कभी नहीं थे। यह जरूर इस देश ने देखा कि अनेक प्रधानमंत्रियों ने अपना नाम पैदा करने करोड़ो का जनधन लुटाया। आज भी लुटा रहे हैं, लेकिन अपने कोष से धन के दुरुपयोग को जनता रोक नहीं पाती। बंदिशों की कितनी बात की जाए , कितनी नहीं? कौन दोषी-कौन नहीं? इसी पचड़े में देश की जनता को कोई और दूसरा विचार आ ही नहीं पाता। किसी एक घटना को जेहन में दबा देने के लिए अन्य घटनाओं की इतनी परतें एक के ऊपर एक ऐसे जमा दी जाती हैं कि मूल समस्या गहरे दफन हो जाती हैं। जनता के लिए बस एक ही शब्द कहने को बच जाता है। बस “भारत भाग्य विधाता” कहा जाए। यानी भारत की जनता का भाग्य विधाता के ही हाथ है, जो इसे चला रहें हैं। महंगाई,पेट्रोल के दाम,अनाज व तेल के दाम अनेक घटनाएं जनता को याद ना आये। उसके जेहन में सिर्फ अनेक दूसरे-दूसरे प्रश्न उठते रहें ,और वो इसमें ही उलझता रहे। मूल समस्या से उसका ध्यान बंटा रहे। इसके रास्ते सरकारों के नुमाइंदे आसानी से निकाल लेते हैं। देश में यही परिदृश्य लंबे समय से दिखाई दे रहा है। कोई कुछ कर सके, यह स्थिति भी नही है। सरकारें यह क्यों नहीं सोचती कि इसी जनता के दिये मतों से ही वे सरकार में हैं। जनता के जीवन के सफर में कम से कम बाधा व हस्तक्षेप रहे, इसका ख्याल क्यों नहीं रखतीं? जैसे ही सरकारें बन जाती हैं, बंदिशों का दौर शुरू हो जाता है। अरे भाई जनता को अपनी भलाई स्वयं निर्धारित करने दीजिए। देश की दो तीन सरकारों ने शराब बंदी की, क्या परिणाम हुआ? जाने समझे बगैर क्यों छतीसगढ़ में शराबबंदी को वायदे में शामिल किया गया। यह समझ कोई नहीं पाया। अब जाकर सरकार को इसका हर पक्ष समझ में आ रहा है। दिनों दिन बयान बदल रहे हैं। भाजपा हो या कांग्रेस या कोई अन्य सब जानते हैं ,शराबबंदी का सच क्या है। इस आदिवासी बाहुल्य राज्य में यह झटके में करना असंभव ही नहीं,नामुमकिन है। सच वो है जो कल ज्योतिष्पीठाधीश्वर शकराचार्य महाराज अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने कहा कि शराबबंदी के लिए कानून बनने की बाट क्यों जोह रहे हैं? उसका सीधा सा हल है कि जो शराबबंदी चाहते हैं वे शराब पीना स्वयं से ही छोड़ दें। कानून नहीं बना रहे , इसलिए सरकार से नाराज होने से हल नहीं है। खुद शराब पीना छोड़ दें तत्काल समाधान हो जाएगा। शंकराचार्य जी ने सच कह दिया मानना ना मानना आपका काम है। यानी आप शराबबंदी चाहते हैं तो तत्काल छोड़ दें। कानून से नहीं यह समस्या दृढ़ इच्छाशक्ति से सुलझेगी। शंकराचार्य जी की बात आप समझे कि नहीं? ना समझे वो………?