नरेंद्र मोदी की अगुवाई में 2014 में सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने हाल ही में अपने कार्यकाल के नौ साल पूरे किए। भाजपा सरकार के नौ साल की सफलता का इस साल होने वाले 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव पर कितना असर पड़ेगा, ये देखना दिलचस्प होगा। इसके साथ 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव भी भाजपा के कार्यकाल का मूल्यांकन करेंगे। हाल ही में इन 9 राज्यों में से एक राज्य कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और पार्टी प्रमुख ने कई रैलियां की। अंतिम दिनों में तो पार्टी ने अपनी हिंदूवादी छवि को सामने रखकर जय बजरंगबली का नारा तक लगवाया। लेकिन, बात जमी नहीं और भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। 2018 में जिस निर्वाचित कांग्रेस सरकार को भाजपा ने ऑपरेशन लोटस के तहत हासिल किया था, वापस कांग्रेस को सौंपना पड़ी। गौर करने वाली बात है कि पिछले साल उत्तर प्रदेश में पार्टी ने अपनी हिंदू वादी छवि और भगवान श्रीराम के नाम पर सत्ता में वापसी की थी। लेकिन, कर्नाटक में बजरंगबली का नारा लगवाने के बावजूद पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। इसका सीधा सा मतलब है, कि अब मतदाता हिंदुत्व की लहर पर सवार नहीं है। केंद्र की जगह राज्य के मुद्दे और वहां की परिस्थितियों और अपनी समस्याओं को देखकर ही वो वोट देता है। प्रधानमंत्री और पार्टी केंद्र में अपने 9 साल के राज्य शासन के दौरान किए गए तमाम कार्यों को जनता तक पहुंचाने में जुटे हैं। लेकिन, इस साल होने वाले 9 राज्यों के चुनाव, जिनमें कर्नाटक का परिणाम आ चुका है और शेष रहे मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय,नागालैंड और मिजोरम के चुनाव होना बाकी है। वहां के चुनाव नतीजे अगले लोकसभा चुनाव के लिए चुनौती बनेंगे या भाजपा का रास्ता साफ करेंगे, ये अभी देखना है। लेकिन, कर्नाटक से हुआ इसका आगाज भाजपा के लिए सुखद नहीं रहा। इससे पहले 2022 के अंत में हुए चुनावों में जहां भारतीय जनता पार्टी को अपने शासित एक राज्य हिमाचल प्रदेश से हाथ धोना पड़ा था। इस साल की शुरुआत में उसने अपने शासित एक राज्य कर्नाटक को भी खो दिया। जिन राज्यों में चुनाव होना है, उनमें छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, तो तेलंगाना में टीआरएस की सरकार। इन्हीं तीनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की बड़ी चुनौती है। यहां शासित सरकारों पर अपना कब्जा करने की। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में भी 2018 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को शिकस्त खानी पड़ी थी। लेकिन, कांग्रेस से बगावत करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों के बल पर यहां शिवराज सिंह चौहान दोबारा सत्ता पर काबिज हो गए। कांग्रेसी यहां अपनी सरकार को पुन: हथियाने के लिए जोड़-तोड़ में जुटी है। वह भी उस समय, जब यहां शासित भारतीय जनता पार्टी सरकार में अंदरुनी कलह जोरों पर है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व कैलाश जोशी के पुत्र और सरकार में मंत्री रहे दीपक जोशी का भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर कांग्रेस में शामिल होना और कई भाजपाई नेताओं के पार्टी छोडऩे के कयासों के बीच कांग्रेस, गुटबाजी के बावजूद सरकार में आने को लालायित है। वहीं कर्नाटक के पड़ोसी राज्य तेलंगाना में भी जहां टीआरएस की सरकार है विधानसभा चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावनाएं है।